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गुड्डी

सी.आर.राजश्री


एक गरीब किसान की लड़की,
गुड्डी नाम की थी वह प्यारी,
दस साल की उम्र वाली,
भोली,सुन्दर और चुलबुली।
भाई था एक उसका प्यारा,
घर में सबका राजदुलारा,
नटखट, नन्हा, खूब न्यारा,
खेलता रहता दिन भर सारा।
दोनों गाँव के स्कूल में पढ़ते,
साथ-साथ है सदा रहते,
गुड्डी पढ़ती थी पाँचवी में,
और उसका भाई चौथी में।
गुड्डी थी भाई से भी होशयार,
पढ़ने लिखने में बहुत तेज तर्रार,
पर पढ़ने में उसे समय नहीं मिलता,
काम काज में दिन व्यस्थ रहता।
जब भी बैठती वह पढ़ने को,
कुछ न कुछ काम माँ बताती करने को,
गुड्डी जब कहती भाई से करने को,
गुस्सा करते बाबूजी, दौड़ते मारने गुड्डी को।
बाबूजी से डर कर गुड्डी,
उठ जाती पढ़ाई से तभी,
माँ के संग काम में लग जाती,
मन नही मन कुढ़ कर रह जाती।
कहते बाबूजी नाराज होकर,
पढ़-लिख कर क्या बनेगी कलेक्टर,
ब्याहना है तुझे सब कुछ गिरवी रखकर,
क्यों मैं तेरी पढ़ाई में खर्च करुँ दिल खोलकर।
बेटा मेरा है काफी होनहार,
जो संभालेगा मेरा यह घर संसार,
पढ़ाई तो उसकी है बहुत जरुरी,
दिन-रात करुँगा, मैं इसलिए मेहनत मजदूरी।
क्या बेटी होना इतना बड़ापाप है,
सोचती गुड्डी, मेरे भी तो है कुछ अरमान,
क्या वह कभी पूरी हो पाएगा?
या शायद वह अधूरा ही रह जाएगा।
पूछती गुड्डी माँ से ऐसा क्यों होता है,
मुझे भी क्यों नहीं पढ़ने दिया जाता है,
चुप रह जाती माँ क्या करती बेचारी,
इस मासूम से सवाल का उत्तर न दे सकने की लाचारी।
माँ सोचती, गुड्डी सच ही तो कहती है,
बेटी है तो क्या हुआ, क्या उसमें कमी है,
दोनों की पैदाइश में एक-सा दर्द तो होता है,
समझ में नहीं आता फिर भी ऐसा फर्क क्यों किया जाता है?
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Lecturer in HIndi
Dr.G.R.Damodaran College of Science
Avanashi Road
Ciombatore
TamilNadu
South India
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Comments

seema sachdeva said…
क्षमा चाहूंगी लेकिन आपकी कविता का विषय जितना अच्छा है उतनी सफाई से आप लिख नही पाए ,कविता पढ़ने से लगता ही नही कि कविता पढी जा रही है ,गद्य लगा |माना कि कविता मी गेयता का गुण अनिवार्य नही है लेकिन फ़िर भी आपने जिस लय से शुरू की उसे निभा नही पाए

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