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शिवानी की कहानियाँ : नारी का आत्मबोध

- डॉ० जगतसिंह बिष्ट

साठोत्तरी हिन्दी कथा साहित्य में शिवानी अत्यन्त चर्चित एवं लोकप्रिय कथाकार रही हैं। नारी संवेदना को अत्यन्त आत्मीयता एवं कलात्मक ढंग से चित्रित करने वाली शिवानी की दो दर्जन से अधिक कथाकृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इन रचनाओं में 'कालिन्दी','अपराधिनी', 'मायापुरी', 'चौदह फेरे', 'रतिविलाप','विषकन्या','कैजा', 'सुरंगमा', 'जालक', 'भैरवी', 'कृष्णवेली', 'यात्रिक', 'विवर्त्त', 'स्वयंसिद्धा', 'गैंडा', 'माणिक', 'पूतोंवाली', 'अतिथि', 'कस्तूरी', 'मृग', 'रथ्या', 'उपप्रेती', 'श्मशान', 'चम्पा', 'एक थी रामरती', 'मेरा भाई', 'चिर स्वयंवरा', 'करिए छिमा', 'मणि माला की हँसी' आदि प्रमुख हैं। इन्होंने उपन्यास, लघु उपन्यास और कहानियों के सृजन के द्वारा साठोत्तरी हिन्दी कथा को पर्याप्त समृद्धि प्रदान की है। इनकी अधिकांश कहानियाँ लघु उपन्यासों, संस्मरण रचनाओं और अन्य विषयक लेखों के साथ संगृहीत है। 'रति विलाप', 'चिर स्वयंवरा', 'करिए छिमा', 'उपप्रेती', 'स्वयंसिद्धा', 'कृष्णवेली', 'मणि माला की हँसी', 'पूतों वाली', 'माणिक' आदि रचनाओं में शिवानी की कहानियाँ प्रकाशित हैं। शिवानी की पहली कहानी 'कृष्ण कलि' १९३८-३९ में प्रकाशित हुई किन्तु यह कहानी बंगला में लिखी हुई थी। इनकी हिन्दी कहानी का लेखन का आरम्भ ÷जमींदार की मृत्यु' से हुआ। यह कहानी सन्‌ १९५१ ई० में धर्मयुग में प्रकाशित हुई थी। अपने लेखन के आरम्भ के संबंध में शिवानी का कहना है : 'लेखन का तो यह है कि मैं कालेज के जमाने से लिखती थी। १९५१ में जब मेरी छोटी बेटी इरा पैदा हुई, तब 'धर्मयुग' में मेरी पहली कहानी प्रकाशित हुई। उस कहानी का नाम था 'जमींदार की मृत्यु'। १९३८-३९ में मैंने बंगला में भी कहानी लिखी थी।'' तब से लेकर मृत्यु पर्यन्त वे कहानी लेखन में व्यस्त रहीं।
शिवानी की कहानियों में पर्याप्त विविधता है क्योंकि इनके कहानी साहित्य का कथ्य ग्राम्यांचल से लेकर महानगरी जीवन के विविध प्रकार के सरोकारों से सम्बद्ध है। फिर भी इनकी कहानियाँ प्रायः नारी केन्द्रित ही रही हैं। इनकी कहानियों में मुख्यतः कस्बाई, नगरीय एवं महानगरीय जीवन से सम्बद्ध मध्यम वर्गीय नारी चरित्रों की संख्या अधिक है। किन्तु इनकी कहानियों में चित्रित नारी-चरित्र आर्थिक रूप से सम्पन्न होने पर विविध प्रकार के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक एवं धार्मिक विडम्बनाओं की विवशता को झेलती दिखाई देती हैं। वस्तुतः इनकी कहानियों में नारी की विवशता पुरुषजन्य परिलक्षित होती है।
शिवानी कृत 'जिलाधीश', 'अपराजिता', 'उपहार', 'केया', ÷गूंगा', 'गहरी नींद', 'निर्वाण' कहानियाँ एक जैसी हैं। यद्यपि इन कहानियों की नारी चरित्र आर्थिक रूप से सम्पन्न, आत्म निर्भर, सुघड़ और शिक्षित है। फिर भी कहानीकार शिवानी ने इन्हें विविध प्रकार की समस्याओं के बीच नारी जीवन की विवशता का बोध कराते चित्रित किया है। इनकी 'जिलाधीश' कहानी की पात्रा सुमन अत्यन्त प्रतिभा सम्पन्न, शिक्षित और आत्मनिर्भर होते हुए भी, आम विवाह योग्य कन्याओं की भाँति अपने आस-पास के नारी समाज के विवाह सम्बन्धी यक्ष प्रश्नों से गुजरती चित्रित हुई है। इतना ही नहीं उसे भी आए दिन रिश्तों की चर्चा और विफलता के दंश का भोग करना पड़ता है इससे भी बढ़कर आम निर्बल और असहाय आम लड़की की भाँति जिलाधीश जैसे अपरिमित अधिकार संपन्न पद पर आसीन होने पर भी, कहानीकार शिवानी ने उसे शारीरिक शोषण की शिकार होती चित्रित किया है। वस्तुतः इनकी जिलाधीश कहानी की नायिका सुमन सब प्रकार से सम्पन्न होते हुए भी नारी होने के आत्मबोध से गुजरती चित्रित है : ''वह यदि पुरुष होती तो क्या उसके इतने दिनों की एकाग्र कौमार्य साधना एक ही अभिशप्त रात्रि की करवट के साथ ऐसे व्यर्थ हो उठती है? बहुत होता तो उसे लूट पाटकर, यह दस्यु उसके प्राण ही हर लेता, किन्तु उसे तो वह प्राण न लेकर भी निष्प्राण छोड़ गया था।''२ उसकी विवशता इतना ही नहीं है। एक बार बलात्कार की शिकार हो जाने पर भी रणधीर उसे कहाँ छोड़ने वाला है? अंततः कथा नायिका सुमन अत्यन्त विवश होकर दस्यु से विवाह कर लेती है। कहने का आशय यह है कि इस कहानी लेखिका ने जिलाधीश जैसे उच्च पद पर आसीन सुमन को आम नारी की भाँति मौन, विवश और शक्तिहीन दर्शाया है। शिवानी कृत 'अपराजिता' कहानी की पात्रा आरती भी कई बातों में 'जिलाधीश' कहानी की नायिका सुमन की भाँति आम नारी की ही तरह चित्रित है। उससे भी नारी जीवन की दुर्बलताओं के बावजूद, वह अपनी अद्भुत संघर्ष क्षमता के बल पर विषम परिस्थितियों को अनुकूल बनाती चित्रित हुई है। इनकी 'दो बहनें' कहानी की नारी पात्राएं जया और विजया उसकी 'जिलाधीश' कहानी की पात्र सुमन की भाँति चित्रित हुई है। इस कहानी की दोनों नारी पात्राएं आर्थिक रूप से सम्पन्न, आत्मनिर्भर और शिक्षित है। यद्यपि 'दो बहनें' कहानी की पात्राएं अपनी आर्थिक संपन्नता, प्रतिभा, शिक्षा और आत्मनिर्भरता के बल पर कठिन से कठिन समस्या का समाधान कर सकती है, किन्तु लेखिका ने इस कहानी की पात्र जया को सामान्य नारी की भांति विविध सामाजिक परिस्थितियों के कारण टूटती चित्रित किया है। वस्तुतः यह नारी का नारी होने का आत्मबोध नहीं तो और क्या है? कहना यह है कि कभी विवाह न करने की दृढ़ संकल्पी प्रौढ़ा, जया के एकाएक केशव के संपर्क से, उसके मन में अकाल कुम्लाई हार्दिकताएं, किस प्रकार प्रेम के मादक रंगों में डूबती उतरती चित्रित हुई है। वे निश्चित ही सामान्य नारी के हृदय की दुर्बलता ही व्यक्त करती है। इसके अतिरिक्त इस कहानी में कहानीकार शिवानी ने प्रेमी केशव के द्वारा दूसरी जगह विवाह करने के बाद जया के अंतर्मन की पीड़ा, दैन्यता और विवशता का अत्यन्त मार्मिक अंकन किया है : '' देखा दीदी कमीने को? आवेश से कांपती विजया ने जब जया की ओर देखा, पर दूसरे ही क्षण वह स्तब्ध रह गई। दीदी के रक्तहीन चेहरे पर लिखी उस लिपि को उस तीक्ष्ण बुद्धि की स्वामिनी ने स्पष्ट पढ़ लिया, जिसे वह पिछले बीस दिनों से पढ़ने का असफल प्रयास कर रही थी।
पहले दीदी के बटुए में केशव का रूमाल मिला था, वही परिचित सुंगध और वही धारियाँ।
फिर दीदी के पलंग के नीचे दो-तीन सिगरेट के अधजले टुकड़े।''३
शिवानी कृत 'उपहार' कहानी की नायिका नलिनी भी आत्मनिर्भर, आर्थिक रूप से संपन्न और शिक्षित होने पर भी पुरुष के सम्मुख अत्यन्त लाचार और विवश चित्रित हुई है। इस कहानी में उसके नारी होने की विवशता कई बार व्यक्त हुई है। टे्रन यात्रा में लुट जाने पर उसके अंतर्मन की लाचारी और विवशता नारी होने के बोध को दर्शाता है। इस कहानी में नारी की विवशता और लाचारी को दर्शाने वाला अंश दृष्टव्य है : ''क्षण भर को भी मैं अवश पड़ी रही, हाय मेरे गहने, मेरे गहने, मेरे रूपए, नई साड़ियाँ। मैं दोनों हाथों में मुंह छिपाकर बिलख उठी। 'यही डिब्बा है माथुर साहब, यही चेन खींची गयी है।' मैं उठने की चेष्टा कर रही थी कि रेलवे के कर्मचारियों और उत्सुक यात्रियों से मेरा डिब्बा भर गया। मुझे अपने विचित्र पेटीकोट परिधान का स्मरण हो आया......मैं लज्जा से लाल पड़ गई, तेज प्रकाश में बीसियों पुरुष चक्षुओं को उत्सुक दृष्टि से मुझे गिद्धों की भाँति नोचने लगी।''४ इतना ही नहीं, इस घटना के बाद, उसे अपने पति की शंकाग्रस्तता का सामना करना पड़ता है। फलतः उसे पति की सहानुभूति के बदले घोर घृणा एवं अपमान का घूँट पीना पड़ता है। पति के प्रति लोग त्याग एवं समर्पण की पर्याय नलिनी के अंतर्मन की विवशता, तब व्यक्त होती है। जब उसका पति उसे अत्यंत विवश अवस्था में छोड़कर घर का त्याग करता है। इसके अतिरिक्त उसे समाज की कुदृष्टि का भी सामना करना पड़ता है। किन्तु वह इन विपरीत परिस्थितियों से हारती नहीं अपितु संघर्षरत नारी के रूप में चित्रित है, फिर भी पति की बराबर याद उसके चारित्रित दुर्बलता, नारी होने की विवशता को दर्शाता है। इसी प्रकार शिवानी की 'गहरी नींद' कहानी की उमा यादव एवं ÷निर्वाण' कहानी की मनोरमा भी सब प्रकार से संपन्न होने पर भी जहाँ गहरी नींद कहानी की पात्रा व्याभिचारी पति से मुक्ति के लिये आत्महत्या करके अपनी विवशता तथा नारी होने के बोध से ग्रस्त है, वही निर्वाण कहानी की मनोरमा शिक्षित एवं आर्थिक रूप से सम्पन्न परिवार की सुविधाभोगी होने पर भी अपने परिवार की परवाह किए बिना धूर्त बाबा के अंधविश्वासों में आकर घर छोड़ती है।
शिवानी की 'केया' कहानी भी शिक्षित आत्मनिर्भर और उच्चवर्गीय नारी जीवन की विडम्बना को व्यक्त करती है। यद्यपि कहानी की पात्र नलिनी मध्यमवर्गीय परिवार से सम्बद्ध है। वह पढ़-लिखकर डॉक्टर बनना चाहती है, किन्तु उसके पिता आर्थिक रूप से सम्पन्न अपने मित्र के क्रूर एवं कुरूप लड़के से उसका विवाह कर देता है। वह विरोध तो अवश्य करती है किन्तु उसका विरोध प्रदर्शन अत्यन्त शिथिल होने के कारण सफल नहीं हो पाता। फलतः अपने अंतर्मन में विवशता को झेलने के लिये बाध्य होती चित्रित हुई। विवाह के उपरांत उसका डॉक्टर बनने का स्वप्न तो पूरा हो जाता है, किन्तु वह अपने पति के अमानवीय व्यवहार और चरित्रहीनता की पीड़ा को बिना विरोध के झेलती चित्रित हुई है। क्योंकि उसमें अपने पति के प्रति विरोध करने की क्षमता नहीं है। यहाँ तक कि घर की नौकरानी को पति के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पाकर भी वह न तो नौकरानी पर बिगड़ती है और न ही पति से किसी प्रकार की शिकायत करती है। वस्तुतः कौन ऐसी पत्नी होगी जो ऐसी परिस्थितियों में चुप बैठी रहेगी? स्पष्ट है कि पति के अमानवीय और चरित्रहीनता को बर्दाश्त करने वाली नारी आत्मिक दुर्बलता की शिकार नहीं तो और क्या कही जाएगी। इसके अतिरिक्त केया कहानी की पात्रा नलिनी का एक और दूसरा चरित्र तब उभरकर सामने आता है, जब उसका मरणासन्न प्रेमी सचिनदेव वर्मन का पत्र प्राप्त होता है। जिसमें वह अपनी प्रेमिका नलिनी का मृत्यु पूर्व एक बार दर्शन करना चाहता है। अपने पति की अमानवीयता के प्रति किसी भी प्रकार का विरोध न करने वाली नलिनी, चुपचाप प्रेमी को देखने घर से निकल पड़ती है। नारी के इस रूप को क्या कहा जाएगा? प्रतीत होता है कि हो न हो, यह निश्चित ही नारी का नारी होने का बोध अवश्य कहा जा सकता है। यही बोध संभवतः इस कहानी की पात्रा नलिनी के विरोध को कहीं कमजोर करता है कहीं चुपचाप सहन की विवशता और कहीं नारी हृदय की अपार करूणा के उफान को व्यक्त करता है।
शिवानी ने 'चिर स्वयंवरा', 'मास्टरनी', 'विप्रलब्धा', 'शायद', 'गजदंत', 'गूंगा' जैसी कई कहानियाँ भी लिखी हैं। जिनमें प्रेम व्यापार की विफलता से संत्रस्त नारी मन की पीड़ा का मार्मिक अंकन हुआ है। इन कहानियों की अधिकांश नारी पात्राएं भी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर, पढ़ी लिखी मध्यमवर्गीय जीवन से सम्बद्ध हैं। फिर भी इन कहानियों की नारी पात्राएं अकेले ही प्रेम व्यापार की असफलता जन्य पीड़ा को झेलती परिलक्षित होती है। इन कहानियों में पुरुष पात्र हृदयहीन और अवसरवादी चित्रित हुए हैं। कतिपय कहानियों में मध्यमवर्गीय जीवन की धनलोलुपता, रूढ़िवादिता, प्रदर्शनप्रियता और अहमन्यता, प्रेम की विफलता के कारण बनते चित्रित हुए हैं। प्रेम व्यापार का निरूपण करने वाली शिवानी की कहानियों की नारी पात्राएं भी नारी होने के बोध से ग्रसित हैं। अपने प्रेमी का बंचना के प्रति, इन कहानियों की नारी पात्राएं किसी प्रकार का विरोध नहीं करती। यही कारण है कि ये पात्राएं शिवानी की कहानियों की प्रेम-व्यापार में ठगी और अपरिमित कष्ट पाती चित्रित हुई हैं। प्रेम व्यापार पर आधारित शिवानी कृत स्वयंवरा कहानी की पात्रा रजनीदी, यद्यपि शिक्षित, आत्मनिर्भर मध्यमवर्गीय जीवन से सम्बद्ध हैं किन्तु नारी जीवन की दुर्बलता के कारण पचास वर्ष तक अविवाहित जीवन जीने के बाद प्रेम व्यापार में उलझ जाती है। लेखिका ने पचास वर्ष की रजनीदी के प्रेम व्यापार और दाम्पत्य जीवन में बँधने की उमंगों का मार्मिक चित्रण किया है। वह आम तरूणी के समान ही विवाह बंधन की हार्दिकताओं से युक्त चित्रित हुई है। वस्तुतः पेशे से अधिक आत्मनिर्भर और पचास वर्ष की रजनीदी के मन में परिणय सूत्र बंधन का रोमांस ! नारी का नारी होने का ही बोध कराता है। वहीं इस कहानी में रजनी दी के असफल रोमांसजन्य वेदना का अत्यन्त मार्मिक और यथार्थ चित्र दृष्टव्य हैं: ''अपने विचित्र रोमांस की करूण कहानी सुना, रजनी दी एकदम निढ़ाल होकर फिर आराम कुर्सी में पसर गई।
उसकी आँखें बन्द थीं और ललाट पर पसीना झलकने लगा था।
'आखिर बस कितने बजे आती है रजनी दी?' मैंने डर-डर कर पूछा। न जाने कैसा भुतहा बंगला लगने लगा था वह मुझे। उसकी नित्य की संवरी गृहस्थी में जैसे शत-सहस्त्र मक्खियाँ भिनभिनाने लगी थीं। बिना लगा बिस्तर, पूरे कमरे में फैले प्रेम पत्र और आराम कुर्सी पर मुर्दा सी पड़ी स्वयं गृहस्वामिनी! उलझी जटाएं, धंसी आँखें और दंतहीन मुख!''५ इनकी 'मास्टरनी' कहानी में भी असफल प्रेम का निरूपण हुआ है। इसमें छद्म प्रेम और नारी जीवन की दुर्बलता का यथातथ्य चित्रण हुआ है। इसीलिए तो इस कहानी की पात्र राजेश्वरी अपने प्रेमी सुधीर के द्वारा दूसरी जगह विवाह करने पर किसी प्रकार का प्रतिकार नहीं करती और आजीवन अविवाहित जीवन के अभिशाप को भोगती चित्रित हुई है। कहना यह है कि प्रेमी द्वारा छलने पर किसी भी प्रकार का विरोध न करना नारी का नारी होने का बोध नहीं तो और क्या है? इसी प्रकार शिवानी कृत 'गूंगा' कहानी की कृष्णा, 'गजदंत' कहानी की निम्नी, 'शायद' कहानी की कुसुम और 'विप्रलब्धा' कहानी की निम्नी भी असफल प्रेम व्यापार और उससे उत्पन्न विडम्बनाओं को भोगती चित्रित हुई है।
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि प्रेम व्यापार पर आधारित शिवानी की कहानियों में असफल प्रेम का ही निरूपण हुआ है। फलतः इन कहानियों में असफल प्रणय व्यापार से उत्पन्न हताशा, कुंठा, अकेलेपन के संत्रास को झेलती नारी पात्राओं का अत्यंत मार्मिक चित्रण अधिक मिलता है। इन कहानियों में चित्रित नारी पात्राएं शिक्षित और आत्मनिर्भर होने पर भी प्रेमी के प्रति किसी भी प्रकार का विरोध प्रकट नहीं करती। बल्कि विविध प्रकार की सामाजिक कठिनाईयों के बीच संघर्ष करती हुई उदात्त प्रेम की प्रतिमूर्ति परिलक्षित होती है। वहीं दूसरी ओर इन कहानियों में पुरुष पात्र नारी के समान न तो किसी प्रकार की कठिनाई झेलते चित्रित हुए हैं और न ही उसमें प्रेम की उदात्तता दिखाई देती है। कहना यह है कि प्रेम प्रसंगों पर आधारित इनकी कहानियों की नारी पात्राएं भी नारी होने के बोध से ग्रस्त है; इसीलिये तो शिवानी की कहानियों में प्रेम की विफलता से उत्पन्न नारी के मन की लाचारी का मार्मिक अंकन हुआ है। विविध प्रकार की सामाजिक रूढ़ियों, लोक विश्वासों, मध्यमवर्गीय जीवन की अर्थलिप्सा और अहमन्यता, प्रदर्शनप्रियता के कारण लेखिका की नारी पात्राएं रोमांस की असफलताजन्य कष्ट भोग के लिये विवश चित्रित हुई हैं। शिवानी की मास्टरनी कहानी की राजेश्वरी सामाजिक रूढ़ियों और लोक विश्वासों, विप्रलब्धा कहानी की निम्नी, शायद कहानी की कुसुम और गूंगा कहानी की कृष्ण मध्यमवर्गीय अहमन्यता और प्रदर्शनप्रियता तथा गजदंत कहानी की निम्नी मध्यमवर्गीय अर्थलिप्सा के कारण ही असफल प्रेमजन्य पीड़ा भोगती है।
शिवानी ने 'श्राप', 'दादी', 'लाटी', 'दो स्मृति चिन्ह', 'सौत', 'पिटी हुई गोट', 'चीलगड़ी', 'माई', 'शिबी', 'नथ' जैसी कहानियां लिखी है जिनमें उन्होंने मध्यम एवं निम्न वर्गीय जीवन से सम्बद्ध विविध प्रकार की समस्याओं का दंश भोगती नारी पात्राओं का अत्यन्त मार्मिक अंकन किया है। इनकी 'श्राप' कहानी की पात्र दिव्या ससुरालियों की दहेज लिप्सा की आग में भेंट चढ़ती; 'सौत' कहानी की नीरा पति-पत्नी के बीच तीसरी स्त्री की उपस्थिति से ग्रस्त; 'तीन कन्या' की बेबी समाज की रूढ़िग्रस्तता के कारण अपने मंगेतर प्रतुल को खोने की अपरिमित यंत्रणा को झेलती; 'चन्नी' कहानी की चन्नी चाची, ताइयों, चचेरी बहिनों और पति की उपेक्षा तथा प्रताड़ना से पीड़ित; 'चीलगाड़ी' कहानी की पात्र विमाता के अमानवीय व्यवहार, रुग्ण पति के दुर्व्यवहार, वैधव्य, चरित्रहीनता, दुर्बलता, जेठानियों और देवर की अमानवीय हरकतों, 'पिटी गोट' कहानी की चंदो पति के हाथों पिटी हुई गोट की भांति कष्ट पाती; 'लाटी' कहानी की बानो भी आंचलिक जीवन के नाना प्रकार के कष्टों को झेलना और पति की उपेक्षा, 'फिरबे की? फिरबे' कहानी की लक्ष्मी और लछुली लोक विश्वासों एवं लोक रूढ़ियों; 'दो स्मृति चिन्ह' कहानी की बिन्दु विजातीय विवाह एवं पति के असमय मृत्यु; 'माई' कहानी की रुक्की पिता के कठोर अनुशासन, पति के अमानवीय व्यवहार एवं माई बनने की विवशता आदि का मार्मिक अंकन हुआ है।
वस्तुतः शिवानी के कहानी साहित्य के कथ्य एवं शिल्प की दृष्टि से पर्याप्त विविधा है। क्योंकि इनके कहानी साहित्य के काव्य के अन्तर्गत कुमाऊँ के आंचलिक जीवन से लेकर छोटे-बडे नगरों समेत महानगरीय जीवन का विस्तार है। यही कारण है कि इनकी कहानियों में विविध स्थानों के जीवन संदर्भों का निरूपण पर्याप्त हुआ है। कहना यह है कि जिस रचनाकार का अनुभव क्षेत्र जितना व्यापक होता है, उसकी रचनाओं में जीवनगत विविधता सर्वाधिक दिखाई देती है। इस मामले में शिवानी का कहानी साहित्य पर्याप्त समृद्ध रहा है। मूल रूप से कुमाऊंनी कुलीन ब्राह्मण पिता और गुजराती और अन्य भारतीय भाषाओं की विदूषी माँ, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के धर्मोपदेशक दादा, विश्व कवि रविन्द्रनाथ टैगोर के सानिध्य में शांति निकेतन में दीक्षा और विविध क्षेत्रों का भ्रमण कुछ ऐसी बातें थीं जिन्होंने इनकी कहानी साहित्य को कथ्य को समृद्धि दी है। इस दृष्टि से शिवानी के कहानी साहित्य के कथ्य में विविधता एवं विस्तार होना स्वाभाविक भी है। इनके कहानी साहित्य की विविधता और विस्तार के अनुरूप, इनकी कहानियों में विविध वर्गीय एवं क्षेत्रीय जीवन संदर्भों पर आधारित नारी चरित्रों को चित्रित होने का अवसर मिला है। यही कारण है कि इनकी कहानी साहित्य में जिलाधीश जैसी पर्याप्त अधिकार सम्पन्न सुशिक्षित नारी चरित्र भी हैं और 'करिए छिमा' एवं 'शिबी' जैसी निम्नवर्गीय जीवन संदर्भों पर आधारित कहानियां भी है जिसकी नारी चरित्र अशिक्षित एवं विपन्न है, किन्तु इनकी कहानियों में चित्रित प्रत्येक वर्ग एवं परिवेश की नारी आर्थिक दबाव से मुक्त दिखाई देती है और वे पर्याप्त सुघड़ी चित्रित हुई है। आर्थिक रूप से सम्पन्न, आत्मनिर्भर एवं सुघड़ होने पर भी शिवानी की कहानियों के नारी चरित्र विषम परिस्थितियों में घिरती एवं समझौता करती चित्रित हुई हैं। उनमें संघर्ष करने की क्षमता कम दिखाई देती है। संघर्ष के बजाय टूटती एवं अपरिमित वेदना का दंशपान करती दिखाई है। वस्तुतः आर्थिक रूप से संपन्न आत्म निर्भर, शिक्षित एवं दायित्व पूर्ण पदों पर आसीन लेखिका के कहानी साहित्य में चित्रित नारी की विवशता एवं उसमें उत्पन्न पीड़ा और क्षोभ नारी के आत्मबोध को व्यक्त करता है। एक ऐसा आत्मबोध जो प्रकृति प्रदत्त है और किसी न किसी रूप में नारी की शारीरिक संरचना और सामाजिक विडम्बनाओं पर केन्द्रित है। कतिपय कहानियों में नारी का यह आत्मबोध अत्यंत असहजता की भी प्रतीति कराता है।
संदर्भ :
१. मणिमाला की हँसी (शिवानी : शब्द-शब्द कहानी); पृ० १८
२. करिए छिमा (जिलाधीश); पृ० ३३
३. करिए छिमा (दो बहनें); पृ० ५६
४. वही (उपहार); पृ० ६२
५.चिर स्वयंवरा (चिर स्वयंवरा); पृ० १६
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