अक्षय गोजा
हो मृत्यु-नींद तो क्या, जीवन की प्यास तो है
लेंगे जनम दुबारा, यही विश्वास तो है
पतझड़ हमेशा दुख से भरपूर हमने पाया
सुखकर बसंत की भी जाने क्यों आस तो है
तिल भर भी जगह न मिलेगी बढ़ती भीड़ को फिर
फ़िलहाल खैरियत यह, जरा आवास तो है
किस राह, किस दिशा में ये भागती है दुनिया
पर भाग-दौड़ में भी जीवन-आभास तो है
युद्ध-विभीषिका से दिल काँपता धरा का
फिर अवतरित होगा प्रभु, पूर्ण विश्वास तो है
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हो मृत्यु-नींद तो क्या, जीवन की प्यास तो है
लेंगे जनम दुबारा, यही विश्वास तो है
पतझड़ हमेशा दुख से भरपूर हमने पाया
सुखकर बसंत की भी जाने क्यों आस तो है
तिल भर भी जगह न मिलेगी बढ़ती भीड़ को फिर
फ़िलहाल खैरियत यह, जरा आवास तो है
किस राह, किस दिशा में ये भागती है दुनिया
पर भाग-दौड़ में भी जीवन-आभास तो है
युद्ध-विभीषिका से दिल काँपता धरा का
फिर अवतरित होगा प्रभु, पूर्ण विश्वास तो है
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