- डॉ० राजेश कुमार
चौदह तिथि फरवरी मास की, तुमने रचना
भेजा अपना दिव्य सँदेसा प्रेम-भाव का
मुझको * लगता है रचना अब तुमसे बचना
मुश्किल है * देखा है मैंने द्वेष-घाव का
दिल में कहीं निशान नहीं है * आज तुम्हारे
भावों को मैंने पहचाना है *तुम मेरे
आत्मा की पवित्र ध्वनि हो * हम बनें सहारे
दीनों के, दुखियों के * तोड़ें छोटे घेरे,
जिनमें बँधना ठीक नहीं है * मानवता को
प्यार करेंगे * कहीं राह में भूला भटका
मिल जाए तो मदद करेंगे * दानवता को
नष्ट करेंगे * जीवन की उन्नति का खटका
मन में कभी न पालें हम आगे बढ़ जाएँ *
जीवन-पथ के पथिकों को हम गले लगाएँ *
चौदह तिथि फरवरी मास की, तुमने रचना
भेजा अपना दिव्य सँदेसा प्रेम-भाव का
मुझको * लगता है रचना अब तुमसे बचना
मुश्किल है * देखा है मैंने द्वेष-घाव का
दिल में कहीं निशान नहीं है * आज तुम्हारे
भावों को मैंने पहचाना है *तुम मेरे
आत्मा की पवित्र ध्वनि हो * हम बनें सहारे
दीनों के, दुखियों के * तोड़ें छोटे घेरे,
जिनमें बँधना ठीक नहीं है * मानवता को
प्यार करेंगे * कहीं राह में भूला भटका
मिल जाए तो मदद करेंगे * दानवता को
नष्ट करेंगे * जीवन की उन्नति का खटका
मन में कभी न पालें हम आगे बढ़ जाएँ *
जीवन-पथ के पथिकों को हम गले लगाएँ *
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