अक्षय गोजा
भोगा हमेशा बाहर, अंदर भी देख लें
पोखर में तैरते थे, समंदर भी देख लें
अपने हो गए ग़ैर तो अपना नहीं कोई
रहने को है मकान, कभी घर भी देख लें
मंदिर-मँडल के बाद चला कोई भूमंडल
आगे क्या है, वहीं, लो, चुकंदर भी देख लें
सोचा सदा शरीर से, न विवेक से कभी
पाई बहुत सजा, परमेश्वर भी देख लें
भोगा हमेशा बाहर, अंदर भी देख लें
पोखर में तैरते थे, समंदर भी देख लें
अपने हो गए ग़ैर तो अपना नहीं कोई
रहने को है मकान, कभी घर भी देख लें
मंदिर-मँडल के बाद चला कोई भूमंडल
आगे क्या है, वहीं, लो, चुकंदर भी देख लें
सोचा सदा शरीर से, न विवेक से कभी
पाई बहुत सजा, परमेश्वर भी देख लें
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