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छूता फिसलता जीवन

तेजेन्द्र शर्मा

ग्यारह महीने के पैरी ने आज अपना पहला कदम चला।
अपने आप को संभाल नहीं पा रहा था। वह दौड़ा, और बस गिरने ही वाला था कि मैंडी ने भाग कर उसे अपनी बाहों में भर लिया.. ..अपनी गोदी में बिठा लिया। आज पहली बार उसे महसूस हुआ कि वह पैरी की मां है। पैरी की संभावित चोट ने उसके भीतर की औरत को जैसे आज अचानक जीवित कर दिया था।
मैंडी - यानि कि मंदीप ब्रार ! हाउंसलो सेंट्रल स्टेशन के निकट बुलस्ट्रोड एवेन्यू के एक घर में जन्मी, पली, बड़ी हुई। आज उसी घर में रह कर घुटती है, सोचती है और जीवन उसे छूता, छोड़ता आगे बढ़ जाता है। कभी उसके मन में भी भावनाओं का प्रबल तूफ़ान रहा करता था।
उस तूफ़ान का नाम था जेम्स – उसके अपने भाई कमलजीत का दोस्त। जेम्स सप्ताह में दो दिन तो उनके घर ही रात का खाना खाता था। भारतीय चटपटा खाना उसकी कमज़ोरी थी। चुप चुप रहने वाला जेम्स, अपनी अनकही बातों से भी मैंडी के दिल को बहुत कुछ कह जाता था। मैंडी स्वयं भी नहीं समझ पा रही थी कि प्यार एकतरफ़ा है या फिर जेम्स भी उसके प्रति ऐसी ही कोमल भावनाएं अपने दिल में समाए है। जेम्स ने कभी भी मैण्डी पर यह साफ़ नहीं किया कि उसका मन क्या कहता है।
मैण्डी के मन की बात मैण्डी के दिल दिमाग़ और आत्मा, सभी सुन चुके थे। वह शाम को बन संवर कर जेम्स की प्रतीक्षा करती जैसे कोई ब्याहता अपने पति के दफ़्तर से आने पर करती है। पढ़ी लिखी माडर्न मैण्डी अचानक जेम्स के मामले में एक भारतीय ग्रहणी बन जाती। मेज़ के दूसरी ओर से उसे खाना खाते देखती, निहारती और आलौकिक सुख का आनंद लेती।
जेम्स मैण्डी की बात समझा या नहीं, लेकिन उसकी मां ज़रूर सब कुछ समझ गई। "नीं रुढ़ जाणिये, मैं तेरे सारे चाले वेख रही हां। अपणे मन चों ऐ गल्ल कढ्ढ दे। मैं तेरा ब्याह उस गोरे नाल नहीं करणा। मोये खसमां नू खाणे, गां दा मीट खांदे ने। तू आपे सुधर जा, नहीं तां किसे दिन तेरी गुतड़ी घुमा छडांगी।"
कमलजीत भी अपनी बहन की भावनाओं से परिचित था। औरों के मामले में दख़ल देना उसकी आदत में शामिल नहीं था। कई बार तो मां को ही समझाने बैठ जाता। मैंडी बस मां और भाई की बातचीत सुनती और मुस्कुरा भर देती। उसने कुछ ख़ामोश निर्णय तक ले डाले थे। आवश्यक्ता पड़ने पर वह उन फ़ैसलों पर अमल करने को भी तैयार थी। जैसे उसने सोच लिया था कि अगर जेम्स चाहेगा तो वह उसके साथ घर छोड़ कर भाग जाएगी। किन्तु जेम्स के लिए मैंडी की भावनाओ का कोई अर्थ नहीं था। न तो मैंडी उसके सपनों की रानी थी, न ही वह उसके मन में मैंडी के लिए प्रेम जैसी कोई भावना थी। कहने को उसकी अपनी एक गर्ल फ़्रेण्ड थी। लेकिन उसके लिए भी प्रेम जैसी कोमल भावना उसके दिल में नहीं थी। जेम्स के लिए गर्लफ्रेण्ड़ का अर्थ था सेक्स!..बस और अधिक सेक्स।
मैंडी तो अपने सपनों में बहुत आगे तक निकल गई थी। जेम्स उसके लिए केवल एक नाम नहीं था, वह उसके लिए जीने का प्रयाय बनता जा रहा था।
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ट्रैक सूट पहने मैंडी बायरन पार्क में जॉगिंग कर रही थी। मन में कहीं एक चाह सी भी उठ रही थी कि काश! ऐसे में कहीं से जेम्स आ जाए-- तो शाम कितनी रंगीन बन सकती है। आसमान में हलके हलके बादल, बायरन पार्क की हरियाली, पेड़ों की पत्तियों में पतझड़ के ख़ूबसूरत रंग और उसके हाथों में जेम्स के हाथ!.. क्या रोमांस का अर्थ इससे अधिक रोमांटिक हो सकता है? .. पास ही कुछ लड़के फ़ुटबॉल खेल रहे थे, उनमें जेम्स को ढूंढने का प्रयास कर रही थी। मन ही मन वाहे गुरू से प्रार्थना कर रही थी।

प्रार्थना स्वीकार हो गई। सामने पार्क के गेट से जेम्स भीतर आता दिखाई दिया। डूबते सूरज के झुरमुटे में भी वह जेम्स को पहचान गई। एकदम ग्रीक देवता सा लग रहा था। …लपकी ! "हाय जेम्स!"
"हाय मैंडी!" जेम्स ने ज़रा खुली आवाज़ में कहा। मैंडी के घर में तो शर्माता ही रहता था।
आज मैंडी भी अचानक मिली प्रसन्नता के कारण जैसे हवा में तैर रही थी, "कैसे हो जेम्स?"
"मैं ठीक, लेकिन तुम यहां क्या कर रही हो?"
"तुम्हारा इंतज़ार!" झेंप सी गई मैंडी।
"रीयली!"
अब क्या कहती मैंडी। दोनो साथ साथ चलते पार्क के चक्कर लगाने लगे। अब तक मैंडी ने पार्क की गतिविधियों की ओर ध्यान ही नहीं दिया था क्योंकि उसकी आंखें तो अन्जाने मे जेम्स की प्रतीक्षा जो कर रही थीं। जेम्स के आ जाने के बाद उसकी निगाह पार्क की अन्य गतिविधियों पर भी टिकने लगी। अचानक एक छोटा सा वायुयान जेम्स के पैरों के पास आ कर गिरा। जेम्स चौंका। अपने को बचाता हुआ घबराहट में दो चार कदम पीछे को हटा। इधर उधर देखा। एक काला लड़का हाथ में रिमोट कंट्रोल लिए उनकी तरफ़ बढ़ा आ रहा था, "वट द फ़क्स वाज़ दैट?" जेम्स का गुस्सा उसकी आवाज़ से साफ़ ज़ाहिर था।
उस काले लड़के ने ख़ास जमैकन लहजे में जेम्स को कहा, "सॉरी मैन, आई डिडंट मीन टु हर्ट यू। " और बात को रफ़ा दफ़ा कर दिया।
मैंडी अचानक उत्पन्न हुई स्थिति से गड़बड़ा सी गई थी। उसे डर था कि जेम्स कहीं उस काले लड़के से भिड़ न जाए। कहीं उनकी शाम इस हादसे की भेंट न चढ़ जाए। उसने जेम्स के गुस्से को शांत किया और उसे ले कर आगे को बढ़ गई। अभी तक मैंडी सहज नहीं हो पाई थी। एक वृक्ष की ओट में एक युवा जोड़ा चुम्बन में लिप्त दिखाई दिया। मैंडी के बदन में जैसे सिहरन की एक लहर सी दौड़ गई। अचानक उसके हाथ की पकड़ का दबाव जेम्स के हाथ पर बढ़ गया। जेम्स ने मैंडी की ओर देखा, वह झेंप गई।
दोनों साथ साथ चलते पार्क के उस कोने तक आ गये जिसके साथ कब्रिस्तान सटा था।
"जेम्स, यह जगह रात के वक्त कितनी डरावनी लगती है न?"
'वेल, मुझे तो कभी भी ऐसा नहीं लगा। -- मुझे तो हमेशा ऐसा महसूस होता है कि यहां लोग गहरी नींद में सो रहे हैं। और किसी भी तरह का शोरगुल उनकी नींद में ख़लल नहीं डाल सकता।'
'तुम कभी इस कब्रिस्तान के भीतर गये हो?'
'हां, तीन बार। लेकिन दिन के वक्त। अपनों को गहरी नींद सुलाने।'
'आई फ़ील सो रोमांटिक अबाउट इट! चलो, मुझे भी दिखाओ न।' मैंडी मचल पड़ी।
जेम्स ने विचित्र सी नज़रों से मैंडी को देखा और उसका हाथ पकड़ कर कब्रिस्तान के भीतर हो लिया।
मैंडी अलग अलग कब्रों पर लिखे नाम और इबारतें पढ़ रही थी। कई कब्रें तो सवा सौ साल से भी अधिक पुरानी थीं।--- कहीं फूलों के गुलदस्ते दिखाई दे रहे थे। 'जेम्स क्या वे सभी लोग यहां दफ़न हैं जिनके बारे में यहां लिखा है?'
'नो मैंडी, कभी कभी यहां केवल प्लाक लगा देते हैं। जैसे किसी की मौत समुद्र में हो गई और शव नहीं मिला, तो दफ़न करना संभव नहीं होता न।'
'हाऊ रोमांटिक जेम्स! तुम लोगों में मरने के सैंकड़ों साल बाद भी एक फ़ीलिंग ऑफ़ अटैचमैंट रहती है कि तुम्हारा कोई अपना ज़मीन के इस टुकड़े के नीचे मौजूद है। शायद इसीलिए तुम्हारे यहां आत्मा का कांसेप्ट ज्यादा ऑथेंटिक लगता है। हमारे यहां तो सीधे आग के हवाले कर देते हैं, और दो ही मिनट में सब कुछ जल कर राख!'
जेम्स को जैसे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। वह किसी सोच में डूबा था।
मैंडी कभी उस तितली को देखती जो कभी किसी कब्र के फूलों पर जा बैठती कभी किसी पर मंडराने लगती। उसे महसूस हो रहा था कि पिछले जन्म में वह ज़रूर किसी ईसाई परिवार का हिस्सा रही होगी। उसे हमेशा आग से बहुत डर लगता है। कब्र अगर कभी खुदे तो उसके गहनों से कोई भी पहचान सकता है कि यह ख़ूबसूरत गहने पहनने वाली मंदीप कौर ब्रार थी!..'वाऊ! हाऊ ग्रेट!'
'जेम्स तुम जानते हो आगरे के ताजमहल में शाहजहां और मुमताज़ महल एक दूसरे के अगल बगल सो रहे हैं। ... मेकिंग लव इन प्रेज़ेन्स ऑफ़ दीज़ ग्रेट सोल्स मस्ट बी ए ग्रेट फ़ीलिंग!'
जेम्स ने कोई जवाब नहीं दिया, बस उसके हाथ की पकड़ मैंडी के हाथ पर और भी सख्त होती गई।
'जेम्स इट पेंज़, मुझे दर्द हो रहा है।'
जेम्स के चेहरे के भावों पर कोई परिवर्तन नहीं हुआ। अचम्भित खड़ी मैंडी अब डरने लगी थी। उसने जेम्स का ऐसा रूप पहले कभी नहीं देखा था। जेम्स पर जैसे एक वहशत सवार थी। मैंडी ने पाया कि वह चाह कर भी चीख़ नहीं पा रही है। वह प्रयत्न कर रही थी कि जेम्स को धकेल कर परे कर दे लेकिन जेम्स ....!
जेम्स ने अपने बल का प्रयोग कर के मैंडी को पेड़ों के झुरमुटे के नीचे गिरा लिया, और वह स्वयं उस पर सवार हो गया। उसके हाथ मैंडी की स्कर्ट और ब्लाउज़ में घुसते जा रहे थे। मैंडी तकलीफ़ में थी।
मैंडी चिल्ला रही थी लेकिन उस कब्रिस्तान के अधिकतर मुर्दे ब्रिटिश राज के लोग थे जो इस बात के शायद आदि थे कि एक गोरा युवक एक भारतीय मूल की लड़की के साथ ज़बरदस्ती कर रहा है।
मैंडी ने सदा ही जेम्स के साथ हम-बिस्तर होने के स्वप्न देखे थे। लेकिन इतनी बेहूदगी के साथ नहीं। वासना मैंडी में भी मौजूद थी, लेकिन प्रेम के साथ। फिर भी मैंडी के शरीर में जेम्स के छू लेने मात्र से एक तनाव सा उत्पन्न हो रहा था। बस कुछ ही पलों में सब कुछ समाप्त हो गया। मैंडी अब भी उम्मीद लगाए बैठी थी कि जेम्स प्रेम के दो शब्द बोलेगा।
जेम्स बोला, "लुक मैंडी, किसी को कुछ बताना नहीं।-- वर्ना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा।" और वह मैंडी को उसी हालत में छोड़ कर चलता बना। मैंडी स्तब्ध पड़ी रह गई। कब्रों में दफ़न लाशों के बीच वह अकेली ताज़ा लाश पड़ी थी, जिसे कोई दफ़न करने वाला वहां नहीं था। उस पर फूल चढ़ाने वाला कोई नहीं था, बस उसकी मिट्टी ख़राब करके जेम्स वहां से चलता बना था। सूजी आंखें लिए मैंडी अपने घर पहुंची। बीजी ने देखा, 'हाय नी, तैनू की होया?'
मैंडी चुप !
बीजी ताड़ गईं कि कुछ न कुछ हादसा तो ज़रूर हुआ है। लड़की गुमसुम सी हो गई है। बेटी के कपड़ों की तरफ़ देखा। उसके चेहरे पर, गले पर लगे खरोंच के निशान ­ सब अपनी कहानी कह रहे थे। मां बेचैन हुए जा रही थी। बेटी का स्वप्न भंग हो चुका था।
कब तक अपने दर्द को भीतर समेटे रहती। रुलाई फूट पड़ी और मां सकते में रह गई, "नमक हराम! कमीना! वाहेगुरू दी मार पये ओस कंजर ते।" मां इस दुविधा में थी कि बेटे को बताए या न बताए। ख़ून ख़राबा न हो जाए। पति को बताती है तो वो सीधा पुलिस के पास जायेगा। यहां के कानून पर उनको अंधविश्वास है।
दार जी घर में ही थे। कमलजीत अभी लौटा नहीं था। मां की आवाज़ दारजी तक भी पहुंच गयी। दार जी भी कमरे में आ पहुंचे। उनकी अनुभवी आंखों ने पल भर में ही समझ लिया कि मामला गड़बड़ है। पत्नी की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा। फिर पुत्री की दशा देखी। जेम्स का नाम वो सुन ही चुके थे।
"देखो, यहां इस मुलक में कनून नाम की चीज़ मौजूद है। काके को कुछ बताने दी जरूरत नहीं है। तुसी दोनो मेरे नाल चलो। याद रखो, जे कर हम ने कनूनी कारवाही नहीं की तो हम जेम्स को कभी भी सज़ा नहीं दिलवा पाएंगे। इसलिये जरूरी है कि पहले पुलिस स्टेशन चल के रिपोर्ट लिखवाई जाये और मन्दीप का मैडिकल करवाया जाये। काके को उसके बाद भी बताया जा सकदा है।" दारजी ने खड़े कदमों ही पत्नी एवं पुत्री को साथ लिया और हाउन्सलों पुलिस स्टेशन की तरफ़ कार बढ़ा दी।
पुलिस स्टेशन में जब प्रतीक्षा करते करते लगभग एक घन्टे तक किसी ने उनकी सुध भी नहीं ली, तो दारजी का विश्वास भी डगमगाने लगा। वे बार बार उठ कर काउण्टर पर बैठे पुलिस कांस्टेबल से रिपोर्ट लिखने को कह रहे थे। लेकिन वह बार बार उनको इन्तज़ार करने को कह देता। जब दारजी ने देखा कि उनके बाद आई एक सफ़ेद ब्रितानवी औरत की रिपोर्ट उनके सामने ही उनसे पहले लिख ली गई तो उनकी बरदाश्त से भी बाहर होने लगा। वे उठ कर अंग्रेज़ी में लगभग चिल्ला पड़े, "आफ़ीसर, तुम्हें इस तरह हमारी बेइज्ज़ती करने का कोई अधिकार नहीं। हम भी इस देश के टैक्स अदा करने वाले बाइज्ज़त शहरी हैं। मैं भी काउंसिल में ऊंचे पद पर काम करता हूं। मुझे आपकी रिपोर्ट आपके ऊंचे अधिकारी से करनी पड़ेगी। आपका यह रेसिस्ट एटिट्यूड ही पुलिस की बदनामी का बायस है।"
सामने बैठा अधिकारी दारजी की अचानक डांट से गड़बड़ा गया। उसे किसी भी भारतीय मूल के व्यक्ति से इस प्रकार की भाषा की उम्मीद नहीं थी। वह दारजी की पोज़ीशन की इज्ज़त करते हुए रिपोर्ट लिखने लगा। मैण्डी के मेडिकल चैक-अप के लिये उसे हस्पताल भेजा गया। मैण्डी चुप थी, बीजी परेशान और दारजी आगे की सोच रहे थे।
पुलिस ने केस दर्ज कर लिया था। हस्पताल की रिपोर्ट ने साफ़ कर दिया था कि यह करतूत जेम्स की ही है। जेम्स का वही पुराना राग था कि मैण्डी ने अपनी मर्ज़ी से उसके साथ संभोग किया है। केस अदालत पहुंचने वाला था। पेशी की पहली तारीख़ भी तय हो गई थी।
मैण्डी के लिये हाउन्सलो, बाथ रोड, हाई स्ट्रीट सभी के अर्थ बदल गये थे। हीथ्रों हवाई अड्डे पर उतरने वाले विमान आज भी वहां से नीचे हो कर गुज़रते थे। लेकिन उन्हें देख कर अब उसके दिल में कुछ होता नहीं। दिल धड़कता है लेकिन ज़िन्दा महसूस नहीं होता। सड़क पर, स्टोर में, पेड़ के झुरमुटों में युवा लड़के लड़कियां आज भी चुम्बन लेते दिखाई देते हैं लेकिन मैण्डी पर उसका कोई असर नहीं होता। मैण्डी का चहकना बन्द हो गया था। अब वो डाइनिंग टेबल पर आती ही नहीं थी। बस अपने कमरे में चुप चुपीती खाना खा लेती।
समय बीत रहा था किन्तु मैण्डी अब भी चुप थी; परेशान थी; कुछ सुझाई नहीं दे रहा था। आज बहुत दिनों बाद उसने कुछ सोचा, "अगर जेम्स उससे प्यार से यह सब करने को कहता तो वह कितनी आसानी से तैयार हो जाती। वह तो उन पलों की कब से प्रतीक्षा कर रही थी। ..फिर जेम्स ने ऐसा क्यों किया? क्या यह उसके प्यार करने का अंदाज़ है?...किन्तु उसके व्यवहार में प्रेम तो कहीं से भी महसूस नहीं हो रहा था। वह तो एक वहशी दरिंदे की तरह पेश आ रहा था। उसमें केवल वासना थी, प्रेम अगर होता तो क्या वह महसूस न कर लेती! कहीं वह जेम्स के प्रति अधिक कठोर तो नहीं हो रही? कहीं वह अपने माता पिता के कहने में आकर तो यह कदम नहीं उठा गई? ...नहीं! ऐसा नहीं है। उसने सही कदम उठाया है। जब वह स्वयं जानवर नहीं है तो किसी जानवर को अपनी इज्ज़त से क्यों खेलने दे? "
कमलजीत के लिये अपने आपको रोक पाना बहुत ही कठिन हो रहा था। दारजी को बहुत मेहनत करनी पड़ी उसे समझाने में, "काका, तूं मेरी गल्ल सुण। जे तूं उसनूं मार दवेंगा ते होवेगा की? तैनूं वी जेल हो जावेगी! बस ऐही ना। पुत्तरा तूं देखीं, जेम्स नूं घटो घट सत्त साल दी जेल न करवाई ते मेरा नां बदल देवीं। उसदे नां अगे सारी उमर लई लिखया जावेगा कि ओह क्रिमिनल है।"
"दारजी, इट इज़ थिंकिंग लाइक यूअरज़, जेड़ी कि ऐहनां गोरयां नूं ज़्यादा शह देंदी है। दे मस्ट नो दैट दे कैन्नॉट टेक अस फ़ॉर-ग्रांटेड"
"काका याद रक्खों कि गुस्से नाल कदी कोई गल्ल हल नहीं होंदी। बस, अपणी भैण दा ध्यान रखो। मां दे दु:ख नूं घट करो। कनून नूं अपणा कम करण देवो।"
मैण्डी फिर सोच में डूब गई है। जेम्स अब भी उसके सपनों में आता है, उसे परेशान करता है, उससे बातें करता है। मैण्डी परेशान इसलिये भी है कि असल ज़िन्दगी में तो जेम्स ने कभी उससे बातें नहीं कीं। उसकी आवाज़ में बस उसकी एक ही बात मैण्डी के दिल पर छाई हुई है, " लुक मैंडी, किसी को कुछ बताना नहीं।-- वर्ना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा। " यह आवाज़ रह रह कर मैण्डी को कचोटती है। अगर इसकी जगह सिर्फ़ इतना ही कह देता, "मैण्डी आई लव यू ! "...तो मैण्डी तो उस पर वारी वारी जाती। "अगर वो अब भी मुझे मनाने के लिये आ जाए और मुझ से प्यार की इजाज़त मांगे, तो क्या मैं उसको नां कह पाऊंगी? " क्या सोच का कोई अंत नहीं होता?
अवश्य होता होगा ; लेकिन मैण्डी तो सोच से बाहर आना ही नहीं चाहती। सपनों की दुनियां उसे कहीं अधिक हसीन लगती है। उसे अब भी उम्मीद है कि जेम्स शायद उससे माफ़ी मांगने आ जाये। डाइनिंग टेबल पर अब भी वो उस कुर्सी को निहारती है जिस पर जेम्स बैठ कर भोजन खाया करता था। तीन महीने बाद भी उससे भोजन खाया नहीं जा रहा। दिल मितलाने सा लगा है।
सुबह तो बिना भोजन किये ही मितली होने लगी। बीजी ने देखा। उनका चेहरा फक्क पड़ गया। झट से बेटी को कुर्सी पर बिठाया ; उसकी पीठ मली, "बेटा, कैसी है तबीयत ?... जी कैसा हो रहा है ? " बीजी किचन में गईं और वहां से नीबू का खट्टा मीठा अचार ले आईं। "थोड़ा सा खा लै बेटी, तबीयत संभल जावेगी। " बीजी ने देखा कि अचार चाटने से मैण्डी बेहतर महसूस करने लगी थी। मुंह से निकल पड़ा, "वाहे गुरू तूं एह की कर दित्ता ? "
रात को भोजन के बाद बीजी ने दारजी से बात शुरू की, "जी तुहाडे नाल इक गल्ल करनी सी। "
"बोल गुरप्रीत, की होया ? "
"जो नहीं होणा चाहीदा सी, ओह हो गया जे। "
"पहेलियां न बुझा, ते सिद्धी सिद्धी गल कर। "
"कुड़ी नूं उलटियां आण लग पयिआं ने, ते खट्टा खाण नू जी करण लग पेया जे। "
"फटाफट अबॉरशन करवाणा पवेगा। साढी तां पहले ही नक वड्डी गयी है। हुण जे बच्चे दी ख़बर वी फैल गई, तां किसे नूं मुंह दिखाण दे काबल नहीं रहांगे। ... तूं ज़रा मन्दीप नाल गल करके देख। की कहंदी है। "
मंदीप अपनी हालत से बेख़बर सो रही थी। मां बाप की नींद सिरे से ग़ायब थी। मां सुबह के इंतज़ार में आंखें जपजी साहब के गुटके में गड़ाये थी तो पिता कुर्सी पर बैठे बैठे आगे की रणनीति सोच रहे थे। मंदीप की चिन्ता न जेम्स को थी, न दारजी और बीजी को। सब को अपनी चिन्ता थी।
सुबह के आने के साथ ही बीजी मंन्दीप के आस पास घूमने लगीं, "बच्चिये, तेरे मेंसिज़ होये काफ़ी दिन हो गये। कोई तकलीफ़ तां नहीं है ना ? "
"हां बीजी, दो तिन महीने तों नहीं होये, मैं तां सोचया ही नहीं। "
"देख धीये, इक गल ठीक तरह समझ लै कि एह कोई छोटी मोटी गल नहीं है। तूं हाले बच्चा जम्मण दे काबल नहीं हैं। हाले तेरा ब्याह करणा है असी। ... पुत्रा, इह हमल तां तैनूं गिरवाणा ही पवेगा।"
सन्न सी खड़ी रह गई थी मन्दीप।... जेम्स से अनचाहा मिलन भी अपनी याद की निशानी उसके पेट में छोड़ गया है। "आई हेट दैट बास्टर्ड ! " मन्दीप के मन से जेम्स के लिये बस गालियां ही निकल रही थीं। उसने बीजी की किसी बात का भी जवाब नहीं दिया। बस आंखें गीली करती रही। उसने बोला एक शब्द भी नहीं।
बीजी अपने दोस्तों में पता करने का प्रयास करती रहीं कि किसी ऐसी क्लिनिक का पता चल सके, जहां चुपके से जा कर अबॉर्शन हो सके। उनकी भूख और नींद दोनों ही उड़ गई थीं। मैण्डी कुछ तय नहीं कर पा रही थी कि अबॉर्शन करवाना है या नहीं। उसके पेट में जो बच्चा पल रहा है वो जेम्स का है, या मेरा है। बहुत मुश्किल हो रही थी उसे।
जेम्स के प्रति उसकी नफ़रत बढ़ती जा रही थी। अगर जेम्स ने उससे विवाह किया होता और वह गर्भवती होती, तो दोनों गर्भ ठहरने से पहले और बाद में बच्चे के बारे में कितनी बातें करते। उस होने वाले बच्चे के भविष्य की चर्चा करते। यह बच्चा अनचाहा बच्चा नहीं होता। इस बच्चे के माता पिता की चाहत इस बच्चे के लिये पैदा होने से पहले ही उसके लिये कितनी दुआओं और शुभकामनाओं का माहौल पैदा कर देते। नाना नानी कितनी रस्में करते !...गुरूद्वारे ले जाते, रिश्तेदार गोद भराई के लिये आते। आज सब कुछ कितना ग़लत है। मैण्डी वही है, उसके पेट में बच्च पहुंचाने वाला जेम्स वही है, बच्चे के नाना नानी वही हैं, लेकिन सब ग़लत है, पूरी तरह से ग़लत। मैण्डी के लिये जेम्स आज सबसे बड़ा अपराधी है – उसका भी और होने वाले बच्चे का भी।
बीजी के मनाते मनाते न मालूम कितने महीने बीत गये। हालांकि अभी मैण्डी का पेट बहुत बड़ा नहीं दिखाई दे रहा था। फिर भी बीजी की निगाह हर वक्त मैण्डी के पेट पर ही लगी रहती। अन्तत : मैण्डी डॉक्टर से मिलने के लिये राज़ी हो गई। डाक्टर ने देखा। टेस्ट किये, "मिसेज़ ब्रार, आई एम सॉरी, अब तो बहुत देर हो चुकी है। इस स्टेज पर सर्जरी करने से बच्चे के साथ साथ मां की जान को भी ख़तरा हो सकता है। अब तो इस बच्चे को जन्म लेना ही होगा।
हार कर बैठ गई थीं बीजी। आज अदालत में जेम्स का फ़ैसला होने वाला है। मैण्डी अब भी उम्मीद लगाए है कि जेम्स उस से माफ़ी मांग लेगा और सब ठीक हो जायेगा। अगर जेम्स को माफ़ी मांगनी होती तो हालात यहां तक पहुंचते ही कैसे ?
बीजी अपनी बेटी को ले कर आख़री महीने के लिये बरमिंघम में अपनी एक सहेली के घर रहने चली गईं। चंचल खन्ना उनकी बचपन की सहेली थी। दोनों को एक दूसरे के सभी राज़ मालूम थे। यह कैसे छुपा रहता। बेटा पैदा हुआ। मैण्डी ने उसे देखने से भी इन्कार कर दिया। जेम्स के प्रति बढ़ती नफ़रत ने उसे अपने पुत्र से भी बेसरोकार कर दिया था। चंचल ने ही पुत्र को नाम दिया था – पैरी। चंचल का कहना था कि बेटा बहुत प्यारा है बिल्कुल प्यारे मोहन – ब्रिटेन के लिये पैरी।
किन्तु मन्दीप के मन में उस बच्चे के लिये न तो मन में कोई प्यार था और न ही सरोकार। बच्चा जगत में बीजी की इच्छा के विरुद्ध आया था किन्तु उसका सारा काम बीजी को ही करना पड़ता। मन्दीप तो बस पड़ी रहती। कभी उठती, नहाती, भोजन करती। लेकिन चुपचाप पड़ी रहती। जेम्स को हुई सज़ा में भी उसे कोई रुची नहीं थी। उस सज़ा ने बीजी और दारजी को ज़रूर तसल्ली दी किन्तु मन्दीप के लिये उसका कोई अर्थ नहीं था। अब जेम्स का ज़िन्दा होना या न होना मन्दीप के लिये कोई अर्थ ही नहीं रखता था। जज ने भी जेम्स को कहा था कि अगर वह मन्दीप से माफ़ी मांग कर उससे विवाह के पेशकश करे, तो उसकी सज़ा कम की जा सकती है, या फिर केवल कम्यूनिटी सर्विस से ही सज़ा पूरी हो सकती है। लेकिन जेम्स के मन में मन्दीप के लिये न तो कोई स्थान था न चाहत।
पैरी के रोने, सोने, खाने या पीने में मन्दीप को कोई रूचि नहीं थी। एक दिन दारजी तक ने कह दिया, "एह मुण्डा सोहणा किन्ना है। " लेकिन मन्दीप ने कभी कोई ध्यान ही नहीं दिया।
सब परेशान थे कि ऐसा क्या किया जाये जिससे मन्दीप के मन में जीने की चाह एक बार फिर पैदा हो जाये।...सब के सब अपने यत्नों में असफल हो चुके थे। लेकिन आज जब पैरी बस गिरने ही वाला था कि मैंडी ने भाग कर उसे अपनी बाहों में भर लिया.. ..अपनी गोदी में बिठा लिया। आज पहली बार उसे महसूस हुआ कि वह पैरी की मां है। पैरी की संभावित चोट ने उसके भीतर की औरत को जैसे आज अचानक जीवित कर दिया था।
पैरी मुस्कुराया, और मैंडी के गाल को चूम लिया।
74-A, Palmerston RoadHarrow & WealdstoneMiddlesex,

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डॉ. हरेराम पाठक हिन्दी की आधुनिक गद्य विधाओं में ‘साक्षात्कार' विधा अभी भी शैशवावस्था में ही है। इसकी समकालीन गद्य विधाएँ-संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, आत्मकथा, अपनी लेखन आदि साहित्येतिहास में पर्याप्त महत्त्व प्राप्त कर चुकी हैं, परन्तु इतिहास लेखकों द्वारा साक्षात्कार विधा को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाना काफी आश्चर्यजनक है। आश्चर्यजनक इसलिए है कि साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा साक्षात्कार विधा ही एक ऐसी विधा है जिसके द्वारा किसी साहित्यकार के जीवन दर्शन एवं उसके दृष्टिकोण तथा उसकी अभिरुचियों की गहन एवं तथ्यमूलक जानकारी न्यूनातिन्यून समय में की जा सकती है। ऐसी सशक्त गद्य विधा का विकास उसकी गुणवत्ता के अनुपात में सही दर पर न हो सकना आश्चर्यजनक नहीं तो क्या है। परिवर्तन संसृति का नियम है। गद्य की अन्य विधाओं के विकसित होने का पर्याप्त अवसर मिला पर एक सीमा तक ही साक्षात्कार विधा के साथ ऐसा नहीं हुआ। आरंभ में उसे विकसित होने का अवसर नहीं मिला परंतु कालान्तर में उसके विकास की बहुआयामी संभावनाएँ दृष्टिगोचर होने लगीं। साहित्य की अन्य विधाएँ साहित्य के शिल्पगत दायरे में सिमट कर रह गयी

समकालीन साहित्य में स्त्री विमर्श

जया सिंह औरतों की चुप्पी सदियों और युगों से चली आ रही है। इसलिए जब भी औरत बोलती है तो शास्त्र, अनुशासन व समाज उस पर आक्रमण करके उसे खामोश कर देते है। अगर हम स्त्री-पुरुष की तुलना करें तो बचपन से ही समाज में पुरुष का महत्त्व स्त्री से ज्यादा होता है। हमारा समाज स्त्री-पुरुष में भेद करता है। स्त्री विमर्श जिसे आज देह विमर्श का पर्याय मान लिया गया है। ऐसा लगता है कि स्त्री की सामाजिक स्थिति के केन्द्र में उसकी दैहिक संरचना ही है। उसकी दैहिकता को शील, चरित्रा और नैतिकता के साथ जोड़ा गया किन्तु यह नैतिकता एक पक्षीय है। नैतिकता की यह परिभाषा स्त्रिायों के लिए है पुरुषों के लिए नहीं। एंगिल्स की पुस्तक ÷÷द ओरिजन ऑव फेमिली प्राइवेट प्रापर्टी' के अनुसार दृष्टि के प्रारम्भ से ही पुरुष सत्ता स्त्राी की चेतना और उसकी गति को बाधित करती रही है। दरअसल सारा विधान ही इसी से निमित्त बनाया गया है, इतिहास गवाह है सारे विश्व में पुरुषतंत्रा, स्त्राी अस्मिता और उसकी स्वायत्तता को नृशंसता पूर्वक कुचलता आया है। उसकी शारीरिक सबलता के साथ-साथ न्याय, धर्म, समाज जैसी संस्थायें पुरुष के निजी हितों की रक्षा क