- हसन जमाल
वो लाशों का एक सौदागर था, लेकिन उसकी छवि एक मसीहा की सी थी वो एक महान देश का अभूतपूर्व प्रधानमंत्री था जिसकी रगों में नफरत का खून बहता था उसे घुट्टी में ही नफरतें पिलायी गयी थीं, फिर भी वो मुहब्बतों का अमीन कहलाता था। यहाँ तक कि दुश्मन-मुल्क के अवाम भी उसे अपना नजातदेहंदा मानते थे। उसकी आस्था अपने मुल्क के आवाम के लिये नहीं, नफरत की घुट्टी पिलाने वाली एक खूंख्वार तन्जीम में थी। वो उस तन्जीम के लिये कुछ भी कर सकता था। कुछ को गिरवी भी रख सकता था। दुनिया के सबसे बड़े शैतान को वो ''जी सर'' कहता था।
उसके दौरे-हुकूमत में बेगुनाह शहरियों को चुन-चुन के मौत के घाट उतार दिया गया अबलाओं पर बलाएं टूट पड़ी। कीड़े-मकोडे की तरह रोज लोग मारे जाते थे पर आरपार की लड़ाई की हुंकार करता हुआ वीर-पुरुष शांति, अम्न व भाईचारे की जुगाली करता रहता था। उसके राज में दहशतगर्द दिल के करीब पहुंच गये थे, पर उसकी मुस्तकिल मुस्कुराहट में कुछ फर्क न आया था।
उसके अपने चुनावी हलके में साड़ियों में लपेट-लपेट कर गरीब औरतों व बच्चों को मार डाला गया। उसने अपनी जीत को पुख्ता करने के लिये अपने ही मुल्क के फौजियों को मौत के गार में धकेल दिया। उसका एक भी कदम ऐसा नहीं था, जो एक महान देश के सच्चे राष्ट्रप्रेमी प्रधानमंत्री के शायाने शान होता। उसके अपने आदमी लुटेरों और कातिलों में शामिल थे और उन सब पर उसे गर्व था। वो वक्त का महात्मा बुद्ध बना हुआ आँखें मींचे बैठा था। वो बेचूंचरा सबको चरा रहा था।
मगर अफसोस की बात है कि इस सबके बावजूद वो बेहद लोकप्रिय था और हर खासो आम उसे चाहता था। उसकी लोकप्रियता क्यों थी, यह जानना बेहद जरूरी है, क्योंकि उसी पर देश का भविष्य टिका हुआ है, ये कहना व सोचना बिल्कुल गलत होगा कि देश का भविष्य नौजवानों के कंधों पर टिका रहता है। देखा गया है कि उस महान देश का भविष्य हमेशा बूढे कंधों पर टिका रहा है, फिलहाल इस बूढे व अपाहिज प्रधानमंत्री से ज्यादा खुशनसीब देश का और कोई बूढ़ा व अपाहिज नहीं हैं ।
हमें फौरी तौर पर पता लगाना है कि नफरतों में पले बढे इस कामयाबी का राज कहा छिपा है ?
१. उसकी मासूम मुस्कराहटों में?
२. उसके नपे-तुले दोधारी शब्दों में?
३. उसके लंबे व पुख्ता सियासी जीवन में?
४. उसकी शतरंज की चालों में? या
५. उसकी जड़ता में जिसके सम्यक् भाव कहने की परंपरा है।
उसके दौरे-हुकूमत में बेगुनाह शहरियों को चुन-चुन के मौत के घाट उतार दिया गया अबलाओं पर बलाएं टूट पड़ी। कीड़े-मकोडे की तरह रोज लोग मारे जाते थे पर आरपार की लड़ाई की हुंकार करता हुआ वीर-पुरुष शांति, अम्न व भाईचारे की जुगाली करता रहता था। उसके राज में दहशतगर्द दिल के करीब पहुंच गये थे, पर उसकी मुस्तकिल मुस्कुराहट में कुछ फर्क न आया था।
उसके अपने चुनावी हलके में साड़ियों में लपेट-लपेट कर गरीब औरतों व बच्चों को मार डाला गया। उसने अपनी जीत को पुख्ता करने के लिये अपने ही मुल्क के फौजियों को मौत के गार में धकेल दिया। उसका एक भी कदम ऐसा नहीं था, जो एक महान देश के सच्चे राष्ट्रप्रेमी प्रधानमंत्री के शायाने शान होता। उसके अपने आदमी लुटेरों और कातिलों में शामिल थे और उन सब पर उसे गर्व था। वो वक्त का महात्मा बुद्ध बना हुआ आँखें मींचे बैठा था। वो बेचूंचरा सबको चरा रहा था।
मगर अफसोस की बात है कि इस सबके बावजूद वो बेहद लोकप्रिय था और हर खासो आम उसे चाहता था। उसकी लोकप्रियता क्यों थी, यह जानना बेहद जरूरी है, क्योंकि उसी पर देश का भविष्य टिका हुआ है, ये कहना व सोचना बिल्कुल गलत होगा कि देश का भविष्य नौजवानों के कंधों पर टिका रहता है। देखा गया है कि उस महान देश का भविष्य हमेशा बूढे कंधों पर टिका रहा है, फिलहाल इस बूढे व अपाहिज प्रधानमंत्री से ज्यादा खुशनसीब देश का और कोई बूढ़ा व अपाहिज नहीं हैं ।
हमें फौरी तौर पर पता लगाना है कि नफरतों में पले बढे इस कामयाबी का राज कहा छिपा है ?
१. उसकी मासूम मुस्कराहटों में?
२. उसके नपे-तुले दोधारी शब्दों में?
३. उसके लंबे व पुख्ता सियासी जीवन में?
४. उसकी शतरंज की चालों में? या
५. उसकी जड़ता में जिसके सम्यक् भाव कहने की परंपरा है।
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