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अनुसंधान पत्रिका नया अंक जनवरी 2019

 अनुसंधान पत्रिका नया अंक जनवरी 2019 में प्रकाशित होगा।

किन्नर विमर्श के उपन्यासों का एक समीक्षात्मक विश्लेषण -

किन्नर विमर्श के उपन्यासों का एक समीक्षात्मक विश्लेषण -  अकरम हुसैन   थर्ड जेण्डर पर केंद्रित हिंदी में  अब तक ग्यारह उपन्यास प्रकाशित हो चुके है। सबसे पहले 2002 में 'यमदीप' उपन्यास आया है। इस उपन्यास के बाद कुछ कुछ अंतराल में उपन्यास प्रकाशित होते रहे है। इस तरह 2018 तक लगभग 11 उपन्यास इस  अनछुए विषय पर आ चुके है। प्रस्तुत पुस्तक में सभी 11 उपन्यासों की चर्चा सुधिलेखकों के द्वारा करना सत्य  में पुस्तक की विश्वनीयता और लेखकों की पैनी दृष्टि इस पुस्तक को किन्नर विमर्श के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी।  ' यमदीप , किन्नर कथा , तीसरी ताली , मैं भी औरत  हूं  , मैं क्यों नही , ग़ुलाम मण्डी , मैं पायल... , नाला सोपारा , ज़िन्दगी 50-50 , अस्तित्त्व और दरमियाना' पर विभिन्न समीक्षकों/विद्वानों ने अपनी अपनी अचूक दृष्टि और बोद्धिकता के धरातल उपन्यासों का विश्लेषण किया है।         हाल ही में दो उपन्यासों ( अस्तित्त्व और दरमियाना ) प्रकाशित हुआ है। अस्तित्त्व पर तीन शोध आलेख और दरमियाना पर पाँच आलेख इस पुस्तक में प्रकाशित किया गया है। इसी पुस्तक में कुछ महत्त्वपूर्ण र

भारतीय समाज में किन्नरों का यथार्थ

Ed. आशीष कुमार दीपांकर इसी पुस्तक से... ....समाज में उनको घृणा की नज़रों से देखा जाता है जबकि किन्नर भी मानव समाज का ही अंग है। शुभ कार्य में इनकी दुआ की बड़ी महत्ता होती है। माना जाता है कि किन्नरों की दुआ का असर भी बहुत अधिक होता है। जिनके बच्चे नहीं होते हैं उनके बच्चे हो जाते हैं। इनको दान करने से धन-वैभव में भी बढ़ोत्तरी होती है। इसके विपरीत मान्यता यह भी है कि अगर किन्नर किसी को बद्दुआ दे दें तो उस परिवार का बुरा ही बुरा होता है। जैसे किसी नवविवाहित दुल्हन या दूल्हे को अपने कपड़े उतारकर उस पर चूड़ियाँ तोड़कर शाप दे दें तो ग्रह-नक्षत्रा भी दशा बदल लेते हैं, लेकिन इनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार किया जाता है। लोग-बाग इनको आस-पास देखना भी पसंद नहीं करते हैं। हकीकत यह है कि इनको लेकर समाज में पूर्वाग्रह आधारित मान्यताएँ अधिक हैं, इनकी वास्तविकता से अभी भी समाज बहुत अधिक परिचित नहीं है।... भारतीय समाज में किन्नरों का यथार्थ  Third Gender Kinnar

थर्ड जेण्डर पर केन्द्रित हिंदी का प्रथम उपन्यास यमदीप

थर्ड जेण्डर पर केन्द्रित हिंदी का प्रथम उपन्यास यमदीप Ed. Dr. M. Firoz Khan बेहद सटीक प्रतीक है- ‘यमदीप’। ग़ज़ब का साम्य है यमदीप और तीसरे लिंग में जन्मे मनुष्य में! ‘ यमदीप ’ के प्रज्ज्वलित होने पर फुलझड़ियाँ नहीं छूटती, पूजा-अर्चना नहीं होती और इधर ‘तीसरे लिंग’ के शिशु के जन्म पर किसी तरह का कोई हर्षोल्लास नहीं होता। ‘यमदीप’ का प्रज्ज्वलन घर के सदस्यों द्वारा ही किया जाता है और फिर उसे उठाकर घर के बाहर घूरे पर रख दिया जाता है, इसी प्रकार ‘ तीसरे लिंग ’ में जन्में मनुष्य को घर के लोगों द्वारा ही विवश कर घर से निर्वासित कर दिया जाता है और उसे नारकीय स्थितियों में जीवन जीने पर विवश होना पड़ता है। ‘यमदीप’ को घूरे पर रख देने के बाद उधर मुड़कर भी नहीं देखा जाता कि वह कब जलते-जलते बुझा और इधर ‘तीसरे लिंग’ में जन्में बच्चे को निर्वासित करने के बाद कभी उस बच्चे की खोज-खबर भी नहीं ली जाती कि वह कब तक जिया और कब मरा। ‘यमदीप’ काली रात के विरोध में टिमटिमाता रहता है, इसी तरह ‘तीसरे लिंग’ में जन्म मनुष्य भी शोषण- उत्पीड़न का अपने स्तर पर विरोध करता रहता है और जीवित रहता है। ‘यमदीप’ का अंतस्

थर्ड जेंडर के संघर्ष का यथार्थ

थर्ड जेंडर के संघर्ष का यथार्थ Ed. Dr. Shagufta Niyaz इसी पुस्तक से... चित्रा मुद्गल के उपन्यास ‘ पोस्ट बॉक्स नं. 203 नाला सोपारा ’ का शीर्षक अपने में पूरे उपन्यास की संवेदना छिपाये हैं। उपन्यास के इस शीर्षक में उन लोगों की पीड़ा व्यंजित होती है जिनके पास अपना कोई घर नहीं होता, अपना कहने को घर का कोई कोना नहीं होता। वंदना बेन शाह यों तो एक उच्च मध्यवर्गीय परिवार के मुखिया की पत्नी है। उनके पति के पास मुंबई में अपना एक घर है, कुछ पुश्तैनी और कुछ स्वयं द्वारा खरीदी जमीन-जायदाद है और परचून की एक अच्छी-खासी दुकान भी है। उनका बड़ा बेटा किसी निजी या सरकारी संस्था में ठीक-ठाक पद पर कार्यरत है और बहू भी उसी संस्था में रोजगारत है। एक तरह से वंदना बेन खाते-पीते घर-परिवार की मालकिन है। किंतु विडंबना यह है कि अपने मझले बेटे विनोद से न तो वे अपने घर के पते पर पत्राचार कर सकती है और न घर के फोन पर परिवार वालों के सामने बात ही कर सकती है। विनोद से पत्राचार करने के लिए उन्हें अपने घर के पास के पोस्ट ऑफिस से अपना निजी पोस्ट बॉक्स नंबर लेना पड़ता है और उसी पोस्ट बॉक्स नंबर पर आधारित है इस उपन्य

थर्ड जेंडर अतीत और वर्तमान

थर्ड जेंडर अतीत और वर्तमान Ed. Dr. M. Firoz Khan इसी पुस्तक से.... ... कितना उजला रहा होगा 15 अप्रैल, 2014 का दिन! भारतीय संविधान ने गर्व और पुलक से भरकर देखा होगा इस दिन को! आखिर उसके आत्म-तत्व को अभूतपूर्व विस्तार जो मिल गया था इस दिन! ‘स्वतंत्रता’ और ‘समानता’ जैसे मौलिक अधिकारों से निर्मित उसका अत्म-तत्व निश्चित ही प्रशंसनीय तो था मगर भारतीय समाज का एक बड़ा वर्ग अब तक इस आत्म-तत्त्व की घनी छाया से वंचित ही रहा था। इस वर्ग के लिए इसी छाया तले आने का मार्ग खुल गया था 15 अप्रैल, 2014 के ऐतिहासिक दिन! यही वह दिन था जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक युगांतकारी निर्णय द्वारा ‘हिजड़ों’ और ‘ ट्रांसजेंडर ’ मनुष्यों को ‘ तीसरे लिंग ’ ( थर्ड जेंडर ) के रूप में कानूनी मान्यता प्रदान कर मानवाधिकारों से उनका पहला परिचय कराया था।... ...कानून का बन जाना महत्त्वपूर्ण है- निश्चय ही एक ऐतिहासिक कदम। बेहद जरूरी भी। मगर उससे भी ज़रूरी है, समाज की मानसिकता में स्वस्थ बदलाव का आना। जिस समाज के लिए यह वर्ग सदियों से हास-परिहास और उपहास का विषय रहा हो, उसकी मानसिकता एकाएक बदल भी कैसे सकती है,

थर्ड जेण्डर और साहित्य

थर्ड जेण्डर और साहित्य Ed. Dr. M. Fieoz Khan इसी पुस्तक से... हिजड़ा समाज में कुछ लोग ही जैविक रूप से इस समाज का हिस्सा होते हैं अधिकांश अपनी यौनिक पहचान की अस्पष्टता के कारण इस समाज में शामिल हो जाते हैं। यौनिकता की अस्पष्टता से तात्पर्य स्त्रा और पुरुष समाजीकृत संरचना में जेंडर आधारित व्यवहार को नहीं अपनाने से है। एक पुरुष का स्त्रियों की भांति नृत्य और संगीत में रुचि उसके व्यवहार को स्त्रौण बनाता है और समाज में वह बच्चा एक अलग श्रेणी में देखा जाने लगता है।.... ... स्पष्ट जेंडर और यौनिक पहचान के कारण अपने नागरिक अधिकारों से वंचित रहने को भी मजबूर किया जाता रहा क्योंकि राज्य की सत्ता दो जेंडर भूमिकाओं पर कार्यरत है। तीसरे की भूमिका को वह स्वीकारता ही नहीं है। इसी कारण शिक्षा के क्षेत्रा में ऐसे बच्चों को एक ओर सामाजिक कारणों से अपमानित किया जाता है तो दूसरी ओर राज्य की कोई स्पष्ट नीति नहीं होने के कारण, परिवार द्वारा मजबूर होकर ट्रांसजेंडर समुदाय में शामिल कर दिया जाता है। यहाँ रोजगार की विकल्पहीनता इन्हें परंपरागत पेशा नाच-गाना, बधाई, नेग के लिए मजबूर करती है। इस समु

तीसरा लिंग थर्ड जेंडर Third Gender

तीसरा लिंग   थर्ड जेंडर    Third Gender  तीसरा लिंग थर्ड जेंडर Third Gender

थर्ड जेण्डर विमर्श

वैष्णव पी वी  इसी पुस्तक से... मानव अपने जीवन के हरेक मोड़ पर यह चाहता है कि अपने लिए कोई ऐसा हो जो सामाजिक सहयोग दे सके। सुख-दुख बाँटने के लिए कोई हमसफर हो, दोस्त हो, परिवार हो, समाज हो। मनु मानव को मानवता के नज़रिये से देखने की सिफारिश करते हैं। मानव अपने अधिकारों को हासिल करने के साथ-साथ ऊँचाई का रास्ता चुनता है, उस रास्ते का सही राही बनकर सपनों में घुल जाता है। प्रगतिवादी और वैज्ञानिक विचारधारा से प्रभावित समाज सपनों की पूर्ति की गति बढ़ाते रहे। यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि प्रगतिवादी व वैज्ञानिक विचारधारा से प्रभावित समाज में किन्नर मूलभूत अधिकार और हक को पाने का सपना लेकर अत्यंत पीड़ादायी जीवन जी रहे हैं। महाभारत काल से लेकर वर्तमान तक किन्नर हमारे समाज का अभिन्न अंग है। विकास और बुद्धिजीवियों की दुनिया ने मानवता का तिरस्कार कर दिया है। आज हमारे देश में मानवता हाथी के दाँत के सामान हो चुकी है। आज मनुष्य की कथनी और करनी में बहुत अंतर आ चुका है। आज मानव संवेदनात्मक जीवन से यांत्रिक जीवन की ओर अग्रसर है। अमानुषिक भावना से कलुषित समाज में रहकर किन्नर अथवा ट्रांसजेंडर अपने हक

थर्ड जेण्डर तीसरी ताली का सच

थर्ड जेण्डर तीसरी ताली का सच    तीसरी ताली का सच  सम्पादक- डा. शगुफ्ता नियाज इसी पुस्तक से---- ...स्त्री-पुरुष से इतर तीसरी योनि के लोगों की ऐसी दुनिया है जो समाज के हाशिए पर ज़िंदगी बसर करती हर शहर में मौजूद है। जेण्डर स्पष्ट न होने के चलते समाज से बहिष्कृत एवं दण्डित ये लोग अपनी पहचान के लिए संघर्षरत हैं। असामान्य (नपुंसक) लिंगी होना ही इनके लिए सबसे बड़ा अभिशाप है। अकेलापन इनकी नियति है। आजीविका इनके समक्ष एक विकराल समस्या है। लेखक की गहरी हमदर्दी इनकी ज़िंदगी के अयाचित दुखों और अकेलेपन की तरफ है। तीन ताली की थाप पर नाच-गा कर खुशियां बांटने वाले किन्नरों के त्रासद जीवन का अजीबोगरीब सच यह है कि बच्चा न जन सकने वाले किन्नर, हमारे बच्चों पर पड़ने वाले काले साये से उन्हें दूर रहने का आशीर्वाद देते हैं। उनका आगमन हमारे घरों में शुभ माना जाता है मगर समाज उन्हें अशुभ की तरह उपेक्षित-अपमानित जीवन जीने के लिए छोड़ देता है। अंततः समाज में सिर उठाकर जीने की ललक ही उनकी अधूरी ख्वाहिशों के पूरा होने में मददगार होती है।.... तीसरी दुनिया मुख्यतः हिजड़ों, समलैंगिकों-गे, लेस्बियनों, लौंडां

थर्ड जेण्डर और ज़िंदगी 50-50

थर्ड जेण्डर और ज़िंदगी  50-50   सम्पादक- डा. एम. फीरोज खान इसी पुस्तक से--- ...ज़िंदगी के ताने-बाने बड़े अजीब होते हैं। कभी सुलझाए नहीं सुलझते और कभी इतने सादा हो जाते हैं कि उनकी सादगी पर भी एक सवाल-सा खड़ा हो जाता है। कई मोड़ों पर यही ज़िंदगी इतिहास सी लौट-लौट आती है तो कई जगह इतनी अनजान कि पता ही नहीं चलता कि यह ज़िंदगी ही है या कोई और अदेखा ख़्वाब या कि कोई दुःस्वप्न। जीवन  में जाने कितने किरदार, कितने फलसफे रोज आँखों के आगे गुजरते हैं कि वे इन गिरते-उठते पलों की कहानियों को जीवित करते से प्रतीत होते हैं। इन्हीं कहानियों में हर जीवन का रोजनामचा है जिन्हें कोई लेखक शिद्दत से महसूस करता है और अपने लिए कथा का आधार विषय के रूप में बनाता है।.... जीवन एक अनसुलझी पहेली है। यह जीवन किसी के लिए अभिशप्त तो किसी के लिए वरदान साबित होता है। यह समय की ही अनुकूलता है कि अभिशप्तता अब रेखांकित, चिंह्ति और शाब्दिक अभिव्यक्ति पाने लगी है। प्रकृति की एक सर्जना जिसे हम थर्ड जेण्डर की संज्ञा से नवाजते हैं, भी सामाजिक दुराग्रह के चलते इसी अभिशप्तता का क्रूरतम चेहरा है। इस अभिशप्तता की टीस इत

प्रदीप सौरभ कृत तीसरी ताली

प्रदीप सौरभ कृत तीसरी ताली Tesri Tali अनुक्रम सम्पादकीय/3 डॉ. बृजबाला सिंह ‘ तीसरी ताली ’ से खुलती दुनिया/7 डॉ. विमलेश शर्मा वर्जित दुनिया के खरे सच की सटीक अभिव्यक्ति- तीसरी ताली/12 डॉ. कविश्री जायसवाल सामाजिक विकृतियों का स्पंदन : तीसरी ताली/17 डॉ. भारती अग्रवाल तीसरी ताली- समस्याएँ और संभावनाएँ/21 डॉ. श्यामसुंदर पाण्डेय थर्ड जेण्डर की मार्मिक गाथा : तीसरी ताली/29 सुंदरम शांडिल्य तीसरी लोगों की दुनिया की अन्तर्कथा/33 पार्वती कुमारी किन्नरों के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण सन्दर्भ ‘तीसरी ताली’/38 अनुराधा तीसरी ताली की करुण ध्वनि/41 सविता रानी निष्कासित अनुभूतियों के सूक्ष्मतर संदर्भ : तीसरी ताली/45 यशपाल सिंह राठौड़ किन्नर जाति की विभीषिका का साक्ष्य : तीसरी ताली/49 सुशील कुमार आजीविका और अस्मिता की तलाश में जद्दोजहद करते  ‘तीसरी ताली’ के लोग/55 हीरालाल नागर कथा की तीसरी ताल/58 डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंह ‘तीसरी ताली’ के वैचारिक सरोकार /60 डॉ. किरण ग्रोवर ‘तीसरी ताली’ की थाप पर प्रतिध्वनित तीसरी दुनिया के किन्नरों की व्यथा ’/68 डॉ. रम

प्रवासी साहित्य

वाङ्मय त्रैमासिक     Vangmaya Patrika Aligarh खण्ड - 2  प्रवासी साहित्य पोलैण्ड और स्त्रियों का अस्मिता-बोध/1 प्रो. रामकली सराफ अमेरिका के प्रवासी हिंदी साहित्य में समाज एवं संस्कृति/2 योगेन्द्र सिंह/प्रो. नवीन चंद्र लोहनी दिव्या माथुर के प्रवासी कथा साहित्य में स्वदेशी और विदेशी भारतीय नारी  का मूक क्रंदन/17 प्रो. (डॉ) सुधा जितेन्द्र/सपना सैनी देश और विदेश की सोंधी महक से रचा एक उपन्यास   नक्काशीदार केबिनेट/30 प्रो. शर्मिला सक्सेना प्रेम के कोकून में पलते इन्द्रधनुषी रंग और यथार्थ की पथरीली ज़मीन/37 (डॉ. पुष्पा सक्सेना के कथा-साहित्य के संदर्भ में) डॉ. विमलेश शर्मा )चा : नारी अस्तित्व की दस्तावेज/45 डॉ. प्रताप केशरी होता भारतीय नारी का रेखाचित्र  ‘बाँहों में आकाश’/49 डॉ. टिकेश्वरी होता प्रवासी स्त्री के अंतर्द्वंद्व और अस्मिता का संघर्ष/53 (संदर्भ : सुषम बेदी कृत ‘ लौटना ’ उपन्यास) विकल सिंह सुदर्शन प्रियदर्शिनी के उपन्यासों में संवेदनाओं का भंवर/59 डॉ. कविश्री जायसवाल मॉरीशस अचींहा ना लागे : अभिमन्यु अनत की रचनाभूमि/65 डॉ. रेशमी पांडा मुखर
अनुक्रम खण्ड-1 ; महेन्द्र भीष्म कृत मैं पायल ...  डॉ. विमलेश शर्मा दुरूह पगडंडियों पर आशान्वित जीवन की जद्दोजहद- मैं पायल.../8 प्रो. शर्मिला सक्सेना अधूरी देह के जीवन संघर्ष का सच : मैं पायल... /12 डॉ. रमेश कुमार मैं पायल... : तृतीय लिंगी अस्मिताबोध और संघर्ष का यथार्थ/18 डॉ. बृजबाला सिंह इक्कीसवीं सदी में थर्ड जेण्डर की स्थितिः मैं पायल.../22 प्रताप दीक्षित पायल की संघर्ष यात्रा/25 डॉ. मोती लाल इंसान, जिसे हमने खिलौना बना डाला : मैं पायल.../28 सुशील कुमार बुचरा किन्नर द्वारा भोगा हुआ कटु यथार्थ और मैं पायल.../32 सीमा सिंह मैं पायल...अंत से आरम्भ का सफर.../35 डॉ. मुक्ता टंडन न मंज़िल हूँ, मैं न रास्ता हूँ/39 डॉ. शबाना हबीब समाज से तिरस्कृत वर्ग-किन्नर/41 पार्वती कुमारी किन्नर जीवन की व्यथाः मैं पायल.../44 खण्ड-2 ; महेन्द्र भीष्म कृत किन्नर कथा  प्रमोद मीणा पुंसवादी इज्ज़त की वेदी पर स्वाह होता हिजड़ा जीवन/48 डॉ.  सियाराम किन्नर जीवन का दहकता दस्तावेज : किन्नर कथा/53 डॉ. रमाकान्त राय किन्नर कथा : एक थर्ड जेण्डर की परी कथा/60 डॉ. कुलभ

थर्ड जेण्डर कथा की हकीकत

 थर्ड जेण्डर कथा की हकीकत सम्पादक- अकरम हुसैन मनीष कुमार गुप्ता अनुक्रम दो शब्द       7 किन्नर जीवन की हकीकत                                                               11 प्रो. मेराज अहमद ‘ हम भी इंसान हैं ’ : एक बहते हुए दर्द का दरिया                                21 प्रो. शर्मिला सक्सेना मनुष्यता के हक में एक चीख                                                          29 प्रो. परमेश्वरी शर्मा रूबी बजयाल अंतहीन यातनाओं और अपमान को पीते किन्नरों की व्यथा-कथा         39 अनवर सुहैल इन्सान हो कर भी इन्सान ना समझे जाने का दर्द : हम भी इन्सान हैं      51 डॉ. जसविंदर कौर बिंद्रा इंसान कहलाने की अंतहीन छटपटाहट का दर्दनामा : हम भी इंसान हैं    57 मूलचंद सोनकर संवेदनाआें के भंवर में किन्नर जीवन                                                  71 डॉ. कविश्री जायसवाल हम भी इंसान हैं : एक मूल्यांकन                                                      78 डॉ. संगीता श्रीवास्तव किन्नरों की मनोदशा का चित्रण : हम भी इंसान हैं                           

दरमियाना

 दरमियाना डॉ. एम. फ़ीरोज़ खान डॉ. मो. शमीम  हिंदी में थर्ड जेण्डर पर केन्द्रित उपन्यास लेखन की परम्परा 2002 ई. से हुई है। इस विषय पर सर्वप्रथम उपन्यास नीरजा माधव कृत यमदीप लिखा गया है। इसके कुछ वर्षों पश्चात् और भी उपन्यास प्रकाशित हुआ है। जैसे- प्रदीप सौरभ कृत तीसरी ताली, महेन्द्र भीष्म कृत किन्नर कथा और मैं पायल..., डॉ. अनुसूया त्यागी कृत मैं भी औरत हूँ, निर्मला भुराड़िया कृत गुलाम मण्डी, चित्रा मुद्गल कृत नाला सोपारा, भगवंत अनमोल कृत ज़िंदगी 50-50, गिरिजा भारती कृत अस्तित्व और सुभाष अखिल कृत दरमियाना उपन्यास प्रकाशित हो चुका है। कथाकार सुभाष अखिल कृत दरमियाना उपन्यास (अमन प्रकाशन, कानपुर) 2018 में प्रकाशित हुआ है। यह उपन्यास थर्ड जेण्डर को केंद्र में रखकर लिखा गया है। थर्ड जेण्डर समुदाय की संस्कृति, वेशभूषा, भाषा, रहन-सहन व उनको हाशिये पर लाने के कारणों का विस्तार से वर्णन करता है। कथाकार ने इस उपन्यास को पाँच अध्यायों में विभक्त किया है। तारा और रेशमा से प्रारम्भ होकर दिल्ली के गलियारों में राजनैतिक उठा-पटक के साथ यह उपन्यास अपने अहम्-बिंदु को रेखांकित करती है।  उपन्या

कथाकार/संपादक सुभाष अखिल से फ़ीरोज़ और डॉ. शमीम की बातचीत

कथाकार / संपादक सुभाष अखिल से फ़ीरोज़ और डॉ . शमीम की बातचीत आप अपने जन्म स्थान , घर - परिवार और पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में बताएँ।                 मेरा जन्म अवश्य दिल्ली में हुआ , मगर हम लगभग 350 वर्षों से ग़ाज़ियाबाद निवासी हैं। पिता जी भारत सरकार में राजपत्रित अधिकारी थे। लिहाजा मेरी पढ़ाई - लिखाई और परवरिश दिल्ली में ही हुई। मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय से 1978-79 में एम . ए . किया और फिर पी . एच - डी . करने के दौरान दिल्ली में ऑटो भी चलाया। इसके बाद दिल्ली प्रेस पत्रा प्रकाशन समूह में पत्राकार बन जाने के बाद पी . एच - डी . छूट गई।                                 मैंने 10 वीं कक्षा   से   ही लेखन   कार्य शुरू कर दिया था। लेखन के संस्कार भी मुझे                  पारिवारिक रूप से ही मिले। पिता जी ( स्व .) श्री सी . पी . अखिल स्वयं बहुत अच्छे कवि थे। उन्होंने अनेक खण्ड काव्य लिखे , जिनमें        ‘ यशोधरा ’, ‘ सत्य पुष्प ’ एवं ‘ कुंती ’ आदि प्रमुख रहे। पिता