Skip to main content
अनुक्रम


खण्ड-1 ; महेन्द्र भीष्म कृत मैं पायल... 

डॉ. विमलेश शर्मा
दुरूह पगडंडियों पर आशान्वित जीवन की जद्दोजहद- मैं पायल.../8

प्रो. शर्मिला सक्सेना
अधूरी देह के जीवन संघर्ष का सच : मैं पायल... /12

डॉ. रमेश कुमार
मैं पायल... : तृतीय लिंगी अस्मिताबोध और संघर्ष का यथार्थ/18

डॉ. बृजबाला सिंह
इक्कीसवीं सदी में थर्ड जेण्डर की स्थितिः मैं पायल.../22

प्रताप दीक्षित
पायल की संघर्ष यात्रा/25

डॉ. मोती लाल
इंसान, जिसे हमने खिलौना बना डाला : मैं पायल.../28

सुशील कुमार
बुचरा किन्नर द्वारा भोगा हुआ कटु यथार्थ और मैं पायल.../32

सीमा सिंह
मैं पायल...अंत से आरम्भ का सफर.../35

डॉ. मुक्ता टंडन
न मंज़िल हूँ, मैं न रास्ता हूँ/39

डॉ. शबाना हबीब
समाज से तिरस्कृत वर्ग-किन्नर/41

पार्वती कुमारी
किन्नर जीवन की व्यथाः मैं पायल.../44

खण्ड-2 ; महेन्द्र भीष्म कृत किन्नर कथा 
प्रमोद मीणा
पुंसवादी इज्ज़त की वेदी पर स्वाह होता हिजड़ा जीवन/48

डॉ. सियाराम
किन्नर जीवन का दहकता दस्तावेज : किन्नर कथा/53

डॉ. रमाकान्त राय
किन्नर कथा : एक थर्ड जेण्डर की परी कथा/60

डॉ. कुलभूषण मौर्य
महेन्द्र भीष्म के उपन्यासों का किन्नर समाज : हाशिया से मुख्यधारा में आने का संघर्ष/65

डॉ. रेशमी पांडा मुखर्जी
अपमान और अवगुंठन की चारदीवारी के बीच का जीवन : किन्नर कथा/71

डॉ. नितिन सेठी
किन्नर कथा : तीसरी दुनिया की दर्द भरी दास्तान/74

डॉ. तारिक असलम ‘तस्नीम’
किन्नर कथा की हकीकत/76

मधुमिता
किन्नर कथा : नये आयाम नये दृष्टिकोण/80

मीना पाठक
किन्नर कथा : एक मूल्यांकन/82

गीतिका वेदिका
अधूरी देहों के भ्रामक सत्य : किन्नर कथा/84

महेन्द्र कुमार वर्मा
हाशिए का समाज- किन्नर कथा/86

साक्षात्कार
कथाकार महेन्द्र भीष्म से प्रताप दीक्षित की बातचीत/89

Comments

Popular posts from this blog

लोकतन्त्र के आयाम

कृष्ण कुमार यादव देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद में कुम्भ मेले में घूम रहे थे। उनके चारों तरफ लोग जय-जयकारे लगाते चल रहे थे। गाँधी जी के राजनैतिक उत्तराधिकारी एवं विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के मुखिया को देखने हेतु भीड़ उमड़ पड़ी थी। अचानक एक बूढ़ी औरत भीड़ को तेजी से चीरती हुयी नेहरू के समक्ष आ खड़ी हुयी-''नेहरू! तू कहता है देश आजाद हो गया है, क्योंकि तू बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिले में चलने लगा है। पर मैं कैसे मानूं कि देश आजाद हो गया है? मेरा बेटा अंग्रेजों के समय में भी बेरोजगार था और आज भी है, फिर आजादी का फायदा क्या? मैं कैसे मानूं कि आजादी के बाद हमारा शासन स्थापित हो गया हैं। नेहरू अपने चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुराये और बोले-'' माता! आज तुम अपने देश के मुखिया को बीच रास्ते में रोककर और 'तू कहकर बुला रही हो, क्या यह इस बात का परिचायक नहीं है कि देश आजाद हो गया है एवं जनता का शासन स्थापित हो गया है। इतना कहकर नेहरू जी अपनी गाड़ी में बैठे और लोकतंत्र के पहरूओं का काफिला उस बूढ़ी औरत के शरीर पर धूल उड़ाता चला गया। लोकतंत

हिन्दी साक्षात्कार विधा : स्वरूप एवं संभावनाएँ

डॉ. हरेराम पाठक हिन्दी की आधुनिक गद्य विधाओं में ‘साक्षात्कार' विधा अभी भी शैशवावस्था में ही है। इसकी समकालीन गद्य विधाएँ-संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, आत्मकथा, अपनी लेखन आदि साहित्येतिहास में पर्याप्त महत्त्व प्राप्त कर चुकी हैं, परन्तु इतिहास लेखकों द्वारा साक्षात्कार विधा को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाना काफी आश्चर्यजनक है। आश्चर्यजनक इसलिए है कि साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा साक्षात्कार विधा ही एक ऐसी विधा है जिसके द्वारा किसी साहित्यकार के जीवन दर्शन एवं उसके दृष्टिकोण तथा उसकी अभिरुचियों की गहन एवं तथ्यमूलक जानकारी न्यूनातिन्यून समय में की जा सकती है। ऐसी सशक्त गद्य विधा का विकास उसकी गुणवत्ता के अनुपात में सही दर पर न हो सकना आश्चर्यजनक नहीं तो क्या है। परिवर्तन संसृति का नियम है। गद्य की अन्य विधाओं के विकसित होने का पर्याप्त अवसर मिला पर एक सीमा तक ही साक्षात्कार विधा के साथ ऐसा नहीं हुआ। आरंभ में उसे विकसित होने का अवसर नहीं मिला परंतु कालान्तर में उसके विकास की बहुआयामी संभावनाएँ दृष्टिगोचर होने लगीं। साहित्य की अन्य विधाएँ साहित्य के शिल्पगत दायरे में सिमट कर रह गयी

प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से संबंधित साक्षात्कार की सैद्धान्तिकी में अंतर

विज्ञान भूषण अंग्रेजी शब्द ‘इन्टरव्यू' के शब्दार्थ के रूप में, साक्षात्कार शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसका सीधा आशय साक्षात्‌ कराना तथा साक्षात्‌ करना से होता है। इस तरह ये स्पष्ट है कि साक्षात्कार वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति विशेष को साक्षात्‌ करा दे। गहरे अर्थों में साक्षात्‌ कराने का मतलब किसी अभीष्ट व्यक्ति के अन्तस्‌ का अवलोकन करना होता है। किसी भी क्षेत्र विशेष में चर्चित या विशिष्ट उपलब्धि हासिल करने वाले व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी जिस विधि के द्वारा प्राप्त की जाती है उसे ही साक्षात्कार कहते हैं। मौलिक रूप से साक्षात्कार दो तरह के होते हैं -१. प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार २. माध्यमोपयोगी साक्षात्कार प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार का उद्देश्य और चरित्रमाध्यमोपयोगी साक्षात्कार से पूरी तरह भिन्न होता है। इसका आयोजन सरकारी या निजी प्रतिष्ठानों में नौकरी से पूर्व सेवायोजक के द्वारा उचित अभ्यर्थी के चयन हेतु किया जाता है; जबकि माध्यमोपयोगी साक्षात्कार, जनसंचार माध्यमों के द्वारा जनसामान्य तक पहुँचाये जाते हैं। जनमाध्यम की प्रकृति के आधार पर साक्षात्कार