Ed. Dr. M. Firoz Khan
बेहद सटीक प्रतीक है- ‘यमदीप’। ग़ज़ब का साम्य है यमदीप और तीसरे लिंग में जन्मे मनुष्य में! ‘यमदीप’ के प्रज्ज्वलित होने पर फुलझड़ियाँ नहीं छूटती, पूजा-अर्चना नहीं होती और इधर ‘तीसरे लिंग’ के शिशु के जन्म पर किसी तरह का कोई हर्षोल्लास नहीं होता। ‘यमदीप’ का प्रज्ज्वलन घर के सदस्यों द्वारा ही किया जाता है और फिर उसे उठाकर घर के बाहर घूरे पर रख दिया जाता है, इसी प्रकार ‘तीसरे लिंग’ में जन्में मनुष्य को घर के लोगों द्वारा ही विवश कर घर से निर्वासित कर दिया जाता है और उसे नारकीय स्थितियों में जीवन जीने पर विवश होना पड़ता है। ‘यमदीप’ को घूरे पर रख देने के बाद उधर मुड़कर भी नहीं देखा जाता कि वह कब जलते-जलते बुझा और इधर ‘तीसरे लिंग’ में जन्में बच्चे को निर्वासित करने के बाद कभी उस बच्चे की खोज-खबर भी नहीं ली जाती कि वह कब तक जिया और कब मरा। ‘यमदीप’ काली रात के विरोध में टिमटिमाता रहता है, इसी तरह ‘तीसरे लिंग’ में जन्म मनुष्य भी शोषण- उत्पीड़न का अपने स्तर पर विरोध करता रहता है और जीवित रहता है। ‘यमदीप’ का अंतस्रस सूखता रहता है बूँद-बूँद और इधर ‘तीसरे लिंग’ में जन्में मनुष्य का भीतरी रस या स्नेह समाज की निरंतर उपेक्षा पाकर शनैः-शनैः सूखता चला जाता है। ‘घर’ से ‘घूर’ तक की यात्रा करने वाला ‘यमदीप’ उस मार्ग की समस्त असंगतियों को दिखा जाता है, ‘तीसरे लिंग’ में जन्मा मनुष्य भी अपनी जीवन-यात्रा द्वारा मानव-समाज के अंतर्विरोधों को अनावृत कर देता है। कैसा अद्भुत साम्य है दोनों के जीवन में, दोनों की नियति में! वस्तुतः इस एक प्रतीक के द्वारा ‘तीसरे लिंग’ की समस्त त्रासदी को और उसकी अदम्य जिजीविषा को जिस खूबी के साथ नीरजा माधव ने व्यंजित किया है, वह अभिनंदनीय है।----
इसी पुस्तक से....
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