इसी पुस्तक से...
मानव अपने जीवन के हरेक मोड़ पर यह चाहता है कि अपने लिए कोई ऐसा हो जो सामाजिक सहयोग दे सके। सुख-दुख बाँटने के लिए कोई हमसफर हो, दोस्त हो, परिवार हो, समाज हो। मनु मानव को मानवता के नज़रिये से देखने की सिफारिश करते हैं। मानव अपने अधिकारों को हासिल करने के साथ-साथ ऊँचाई का रास्ता चुनता है, उस रास्ते का सही राही बनकर सपनों में घुल जाता है। प्रगतिवादी और वैज्ञानिक विचारधारा से प्रभावित समाज सपनों की पूर्ति की गति बढ़ाते रहे। यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि प्रगतिवादी व वैज्ञानिक विचारधारा से प्रभावित समाज में किन्नर मूलभूत अधिकार और हक को पाने का सपना लेकर अत्यंत पीड़ादायी जीवन जी रहे हैं। महाभारत काल से लेकर वर्तमान तक किन्नर हमारे समाज का अभिन्न अंग है। विकास और बुद्धिजीवियों की दुनिया ने मानवता का तिरस्कार कर दिया है। आज हमारे देश में मानवता हाथी के दाँत के सामान हो चुकी है। आज मनुष्य की कथनी और करनी में बहुत अंतर आ चुका है। आज मानव संवेदनात्मक जीवन से यांत्रिक जीवन की ओर अग्रसर है। अमानुषिक भावना से कलुषित समाज में रहकर किन्नर अथवा ट्रांसजेंडर अपने हक और अधिकार के लिए लड़ रहे हैं। समाज और जन-मानस में उनका आदर न के बराबर है .....
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