थर्ड जेंडर के संघर्ष का यथार्थ
Ed. Dr. Shagufta Niyaz
इसी पुस्तक से...
चित्रा मुद्गल के उपन्यास ‘पोस्ट बॉक्स नं. 203 नाला सोपारा’ का शीर्षक अपने में पूरे उपन्यास की संवेदना छिपाये हैं। उपन्यास के इस शीर्षक में उन लोगों की पीड़ा व्यंजित होती है जिनके पास अपना कोई घर नहीं होता, अपना कहने को घर का कोई कोना नहीं होता। वंदना बेन शाह यों तो एक उच्च मध्यवर्गीय परिवार के मुखिया की पत्नी है। उनके पति के पास मुंबई में अपना एक घर है, कुछ पुश्तैनी और कुछ स्वयं द्वारा खरीदी जमीन-जायदाद है और परचून की एक अच्छी-खासी दुकान भी है। उनका बड़ा बेटा किसी निजी या सरकारी संस्था में ठीक-ठाक पद पर कार्यरत है और बहू भी उसी संस्था में रोजगारत है। एक तरह से वंदना बेन खाते-पीते घर-परिवार की मालकिन है। किंतु विडंबना यह है कि अपने मझले बेटे विनोद से न तो वे अपने घर के पते पर पत्राचार कर सकती है और न घर के फोन पर परिवार वालों के सामने बात ही कर सकती है। विनोद से पत्राचार करने के लिए उन्हें अपने घर के पास के पोस्ट ऑफिस से अपना निजी पोस्ट बॉक्स नंबर लेना पड़ता है और उसी पोस्ट बॉक्स नंबर पर आधारित है इस उपन्यास का शीर्षक ‘पोस्ट बॉक्स नं. 203 नाला सोपारा’।----
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