Ed. आशीष कुमार दीपांकर
इसी पुस्तक से...
....समाज में उनको घृणा की नज़रों से देखा जाता है जबकि किन्नर भी मानव समाज का ही अंग है। शुभ कार्य में इनकी दुआ की बड़ी महत्ता होती है। माना जाता है कि किन्नरों की दुआ का असर भी बहुत अधिक होता है। जिनके बच्चे नहीं होते हैं उनके बच्चे हो जाते हैं। इनको दान करने से धन-वैभव में भी बढ़ोत्तरी होती है। इसके विपरीत मान्यता यह भी है कि अगर किन्नर किसी को बद्दुआ दे दें तो उस परिवार का बुरा ही बुरा होता है। जैसे किसी नवविवाहित दुल्हन या दूल्हे को अपने कपड़े उतारकर उस पर चूड़ियाँ तोड़कर शाप दे दें तो ग्रह-नक्षत्रा भी दशा बदल लेते हैं, लेकिन इनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार किया जाता है। लोग-बाग इनको आस-पास देखना भी पसंद नहीं करते हैं। हकीकत यह है कि इनको लेकर समाज में पूर्वाग्रह आधारित मान्यताएँ अधिक हैं, इनकी वास्तविकता से अभी भी समाज बहुत अधिक परिचित नहीं है।...
भारतीय समाज में किन्नरों का यथार्थ
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