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प्रवासी साहित्य

वाङ्मय त्रैमासिक   Vangmaya Patrika Aligarh

खण्ड - 2  प्रवासी साहित्य

पोलैण्ड और स्त्रियों का अस्मिता-बोध/1
प्रो. रामकली सराफ

अमेरिका के प्रवासी हिंदी साहित्य में समाज एवं संस्कृति/2
योगेन्द्र सिंह/प्रो. नवीन चंद्र लोहनी

दिव्या माथुर के प्रवासी कथा साहित्य में स्वदेशी और विदेशी भारतीय नारी 
का मूक क्रंदन/17
प्रो. (डॉ) सुधा जितेन्द्र/सपना सैनी

देश और विदेश की सोंधी महक से रचा एक उपन्यास  नक्काशीदार केबिनेट/30
प्रो. शर्मिला सक्सेना

प्रेम के कोकून में पलते इन्द्रधनुषी रंग और यथार्थ की पथरीली ज़मीन/37
(डॉ. पुष्पा सक्सेना के कथा-साहित्य के संदर्भ में)
डॉ. विमलेश शर्मा
)चा : नारी अस्तित्व की दस्तावेज/45
डॉ. प्रताप केशरी होता

भारतीय नारी का रेखाचित्र  ‘बाँहों में आकाश’/49
डॉ. टिकेश्वरी होता

प्रवासी स्त्री के अंतर्द्वंद्व और अस्मिता का संघर्ष/53
(संदर्भ : सुषम बेदी कृत ‘लौटना’ उपन्यास)
विकल सिंह

सुदर्शन प्रियदर्शिनी के उपन्यासों में संवेदनाओं का भंवर/59
डॉ. कविश्री जायसवाल

मॉरीशस अचींहा ना लागे : अभिमन्यु अनत की रचनाभूमि/65
डॉ. रेशमी पांडा मुखर्जी

प्रवासी भारतीयों के सपनों का आख्यान : सपने मरते नहीं/74
डॉ. इकरार अहमद

तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों से पाठकों का सीधा संवाद/85
डॉ. संध्या चौरसिया

उषा राजे सक्सेना की लंदन प्रवास की कहानियाँ/92
डॉ. रमेश कुमार

पुष्पिता अवस्थी की कहानियों में समाज और संस्कृति/100
(गोखरू कहानी-संग्रह के संदर्भ में)
अकरम हुसैन

कथाकार पुष्पिता अवस्थी की कहानियों में सामाजिक परिवेश/116
(कहानी-संग्रह ‘जन्म’ के संदर्भ में)
संगीता सोलंकी

तेजेन्द्र शर्मा के काव्य में प्रवासी जीवन-यथार्थ/125
अनुराधा

रेखा मैत्र की कविताओं में प्रवासी संवेदना/132
प्रसीता पी

प्रवासी साहित्य की अवधारणा और स्त्री विमर्श/135
कृति कुमारी 

Comments

rakesh humar said…
कैसे खरीदा जा सकता है....?
यह अंक

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लोकतन्त्र के आयाम

कृष्ण कुमार यादव देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद में कुम्भ मेले में घूम रहे थे। उनके चारों तरफ लोग जय-जयकारे लगाते चल रहे थे। गाँधी जी के राजनैतिक उत्तराधिकारी एवं विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के मुखिया को देखने हेतु भीड़ उमड़ पड़ी थी। अचानक एक बूढ़ी औरत भीड़ को तेजी से चीरती हुयी नेहरू के समक्ष आ खड़ी हुयी-''नेहरू! तू कहता है देश आजाद हो गया है, क्योंकि तू बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिले में चलने लगा है। पर मैं कैसे मानूं कि देश आजाद हो गया है? मेरा बेटा अंग्रेजों के समय में भी बेरोजगार था और आज भी है, फिर आजादी का फायदा क्या? मैं कैसे मानूं कि आजादी के बाद हमारा शासन स्थापित हो गया हैं। नेहरू अपने चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुराये और बोले-'' माता! आज तुम अपने देश के मुखिया को बीच रास्ते में रोककर और 'तू कहकर बुला रही हो, क्या यह इस बात का परिचायक नहीं है कि देश आजाद हो गया है एवं जनता का शासन स्थापित हो गया है। इतना कहकर नेहरू जी अपनी गाड़ी में बैठे और लोकतंत्र के पहरूओं का काफिला उस बूढ़ी औरत के शरीर पर धूल उड़ाता चला गया। लोकतंत...

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