थर्ड जेण्डर तीसरी ताली का सच तीसरी ताली का सच
सम्पादक- डा. शगुफ्ता नियाज
इसी पुस्तक से----
...स्त्री-पुरुष से इतर तीसरी योनि के लोगों की ऐसी दुनिया है जो समाज के हाशिए पर ज़िंदगी बसर करती हर शहर में मौजूद है। जेण्डर स्पष्ट न होने के चलते समाज से बहिष्कृत एवं दण्डित ये लोग अपनी पहचान के लिए संघर्षरत हैं। असामान्य (नपुंसक) लिंगी होना ही इनके लिए सबसे बड़ा अभिशाप है। अकेलापन इनकी नियति है। आजीविका इनके समक्ष एक विकराल समस्या है। लेखक की गहरी हमदर्दी इनकी ज़िंदगी के अयाचित दुखों और अकेलेपन की तरफ है। तीन ताली की थाप पर नाच-गा कर खुशियां बांटने वाले किन्नरों के त्रासद जीवन का अजीबोगरीब सच यह है कि बच्चा न जन सकने वाले किन्नर, हमारे बच्चों पर पड़ने वाले काले साये से उन्हें दूर रहने का आशीर्वाद देते हैं। उनका आगमन हमारे घरों में शुभ माना जाता है मगर समाज उन्हें अशुभ की तरह उपेक्षित-अपमानित जीवन जीने के लिए छोड़ देता है। अंततः समाज में सिर उठाकर जीने की ललक ही उनकी अधूरी ख्वाहिशों के पूरा होने में मददगार होती है।.... तीसरी दुनिया मुख्यतः हिजड़ों, समलैंगिकों-गे, लेस्बियनों, लौंडां और विकृत प्रकृति की ऐसी दुनिया है जो दूसरी दुनिया अर्थात् समाज की नज़रों में अप्रिय, अकाम्य, अवांछित और वर्जित है। यहाँ जितने चरित्रा आते हैं, वे सब नपुंसक या परलिंगी या अप्राकृत यौन वाले ही हैं।....तीसरी दुनिया के लोगों की सबसे बड़ी और मूलभूत समस्या आजीविका है जो इन्हें अंततः इनके समुदायों में ले जाती है। खुशी के मौकों पर घरों में नाच-गाकर बधाइयां वसूलने वाले हिजड़ों से लेकर सेक्स रैकेट से जुडे़ समलैंगिक लड़कों और हिजड़ियों तक सभी के आगे ये विकट समस्या समान रूप से विद्यमान है। कई बार बुढ़ापे से बेहाल कला मौसी जैसे हिजडे़ पेट की आग बुझाने के लिए मार्केट में ताली ठोंक-ठाककर दुकानदारों से वसूली तथा सिग्नलों पर कारों को रोकर भीख मांगने को मजबूर होते हैं, यद्यपि बिरादरी में इसे हेय दृष्टि से देखा जाता है। कभी-कभी गरीबी और भुखमरी के कारण सामान्य लोग भी हिजड़ा बनने को मजबूर होते हैं अथवा दुर्घटनावश बना दिये जाते हैं।....
Comments