विज्ञान भूषण
अंग्रेजी शब्द ‘इन्टरव्यू' के शब्दार्थ के रूप में, साक्षात्कार शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसका सीधा आशय साक्षात् कराना तथा साक्षात् करना से होता है। इस तरह ये स्पष्ट है कि साक्षात्कार वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति विशेष को साक्षात् करा दे। गहरे अर्थों में साक्षात् कराने का मतलब किसी अभीष्ट व्यक्ति के अन्तस् का अवलोकन करना होता है। किसी भी क्षेत्र विशेष में चर्चित या विशिष्ट उपलब्धि हासिल करने वाले व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी जिस विधि के द्वारा प्राप्त की जाती है उसे ही साक्षात्कार कहते हैं।
मौलिक रूप से साक्षात्कार दो तरह के होते हैं -१. प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार २. माध्यमोपयोगी साक्षात्कार
प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार का उद्देश्य और चरित्रमाध्यमोपयोगी साक्षात्कार से पूरी तरह भिन्न होता है। इसका आयोजन सरकारी या निजी प्रतिष्ठानों में नौकरी से पूर्व सेवायोजक के द्वारा उचित अभ्यर्थी के चयन हेतु किया जाता है; जबकि माध्यमोपयोगी साक्षात्कार, जनसंचार माध्यमों के द्वारा जनसामान्य तक पहुँचाये जाते हैं। जनमाध्यम की प्रकृति के आधार पर साक्षात्कार भी भिन्न प्रकार से आयोजित किये जाते हैं। इनके सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक पक्षों में भी बहुत अंतर होता है। जिसकी सम्पूर्ण और स्पष्ट जानकारी का होना, साक्षात्कारदाता और साक्षात्कारकर्ता दोनों के लिए आवश्यक होता है। माध्यम के अनुसार ही कर्ता और दाता अपनी तैयारी कर सकते हैं और फलस्वरूप साक्षात्कार की सफलता सुनिश्चित की जा सकती है।
जनमाध्यमों के आधार पर साक्षात्कार दो प्रकार का हो सकता है -१. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए साक्षात्कार। २. प्रिंट मीडिया के लिए साक्षात्कार।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए साक्षात्कार
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अन्तर्गत रेडियो और टेलीविजन को शामिल किया जाता है। इन माध्यमों के लिए आयोजित किये जाने वाले साक्षात्कार की सफलता में तकनीकी पक्ष का भी विशेष महत्त्व होता है। जहाँ एक तरफ रेडियो श्रव्य माध्यम है वहीं दूसरी तरफ टी.वी. दृश्य-श्रव्य माध्यम है। यदि हमें रेडियो के लिए साक्षात्कार करना है तो टेपांकन विधि से परिचित होना साक्षात्कारदाता और साक्षात्कारकर्त्ता दोनों के लिए जरूरी है।
पूर्व निर्धारित किसी स्थान विशेष या स्टूडियो में साक्षात्कार में शामिल होने से पूर्व दाता और कर्ता को माध्यम के तकनीकी पक्षों और गुणों की पूरी तरह जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। आवाज की गति, तीव्रता, उच्चारण, माइक्रोफोन की निश्चित दिशा एवं स्थिति आदि के संबंध में पूरी तरह सहज होने पर ही एक अच्छे साक्षात्कार का आयोजन संभव हो सकता है। रेडियो के लिए किये जाने वाले साक्षात्कार के संबंध में साक्षात्कारकर्ता और दाता को भी स्मरण रखना चाहिए कि एक बार टेपांकित हो जाने के बाद उसमें संपादन की गुंजाइश बहुत कम और सीमित ही रहती है। कहने का अर्थ यह है कि साक्षात्कार में शामिल व्यक्तियों की बातचीत, श्रोता सीधे सुनता है, इसलिए उसमें सुधार की संभावना कम ही रहती है। इसी तरह टी.वी. के लिए भी आयोजित किये जाने वाले साक्षात्कार में भी अत्यंत सावधानी की जरूरत होती है। बल्कि दृश्य-श्रव्य माध्यम होने के कारण टी.वी. के लिए आयोजित किए जाने वाले साक्षात्कार में अतिरिक्त ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
जहाँ एक तरफ रेडियो माध्यम में दाता और कर्ता की बातचीत को श्रोता सिर्फ सुन ही सकता है वहीं दूसरी तरफ टी.वी. के लिए आयोजित साक्षात्कार को लोग, सुनने के साथ-साथ देख भी सकते हैं। इसलिए साक्षात्कारकर्ता और साक्षात्कारदाता को अपने हाव-भाव,शारीरिक गतियों और चेहरे की भावाभिव्यक्तियों के प्रति भी सावधान रहना आवश्यक है। उनके द्वारा की जाने वाली प्रत्येक गतिविधि को लाखों-करोड़ों दर्शक देख रहे हैं, इस बात का भी ध्यान कर्ता और दाता को रखना पड़ता है।
इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के लिए आयोजित किये जाने वाले साक्षात्कार के द्वारा किसी भी कार्यक्रम या समाचार में प्रामाणिकता एवं जीवंतता उत्पन्न हो जाती है। लेकिन इसके साथ ही साथ जरा-सी असावधानी व लापरवाही से पूरा साक्षात्कार और कार्यक्रम ध्वस्त होने का भी भय बना रहता है। इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से प्रसारित साक्षात्कार के दौरान कही गई किसी बात को समझने के लिए श्रोताओं या दर्शकों के पास उसे दोबारा सुनने या देखने की सुविधा नहीं होती है। इसलिए इन माध्यमों के साक्षात्कार में प्रश्नों और उनके उत्तरों का आकार यथासंभव छोटे और सीधी सरल भाषा में शीघ्रता से समझ में आने वाली होनी चाहिए। इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का उपयोग साक्षर और निरक्षर दोनों प्रकार के व्यक्ति करते हैं, इसलिए इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के लिए आयोजित साक्षात्कार की भाषा का सरल होना अतिआवश्यक होता है। इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के साक्षात्कार में समय सीमा का ध्यान भी रखना पड़ता है अर्थात् साक्षात्कारकर्ता (जो कि साक्षात्कार का नियामक होता है) को इस बात का स्मरण रखना पड़ता है कि कोई भी प्रश्न बहुत लम्बा अस्पष्ट या विषय से अलग न हो। क्योंकि आयोजित किये जाने वाले साक्षात्कार के द्वारा एक निश्चित अवधि में अपने मूल विषय और निष्कर्ष पर पहुँचना रहता है।
प्रिंट मीडिया के लिए साक्षात्कार
रेडियो और टी.वी. के लिए आयोजित किए जाने वाले साक्षात्कार से पूरी तरह भिन्न प्रकृति का साक्षात्कार प्रिंट माध्यम का होता है। यद्यपि इस माध्यम के साक्षात्कार में भी कर्ता टेपरिकार्डर का उपयोग कर सकता है लेकिन उसे अंतिम रूप में लिप्यांकित ही करना पड़ता है।
प्रिंट मीडिया के लिए किये जाने वाले साक्षात्कार में दाता और कर्ता के हाव-हाव, शारीरिक गतियों और वेश-भूषा का कोई महत्त्व नहीं होता है। इस माध्यम के साक्षात्कार में सुधार करने की भी भरपूर संभावनाएँ होती हैं, क्योंकि यह साक्षात्कार दर्शकों या श्रोताओं की तरह तुरन्त या उसी रूप में पाठकों को प्रस्तुत नहीं किया जाता है। साक्षात्कार आयोजन के पश्चात् संपादक अपनी कुशलता से साक्षात्कार की प्रभावपूर्ण प्रस्तुति प्रदान कर देता है। प्रिंट मीडिया के साक्षात्कार में भाषा सरल या विषयानुसार क्लिष्ट भी हो सकती है, क्योंकि इसे पढ़ने वाला व्यक्ति साक्षर तो अवश्य ही होगा, साथ ही साथ किसी शब्द, वाक्य या विषय को समझने के लिए पाठक के पास एक से अधिक बार पढ़ने की भी सुविधा होती है। इस माध्यम के साक्षात्कार में समय सीमा का भी कोई प्रतिबंध नहीं होता है लेकिन समाचार पत्रया पत्रिका में उपलब्ध स्थान की जानकारी अवश्य रखनी पड़ती है। प्रिंट मीडिया के लिए यदा-कदा सुविधानुसार साक्षात्कारदाता को प्रश्न लिखकर भी दे दिये जाते हैं, जिनका उत्तर वह लिखकर भी प्रेषित कर देता है और फिर उसे प्रकाशित कर दिया जाता है। कहने का अर्थ यह है कि प्रिंट मीडिया के साक्षात्कार में दाता और कर्ता को एक-दूसरे के सामने बैठकर बातचीत करने की बाध्यता नहीं होती है, जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साक्षात्कार में ऐसा करना आवश्यक होता है।
प्रिंट माध्यम में साक्षात्कार को प्रस्तुत करने के लिए वर्णनात्मक शैली भी अपनाई जा सकती है। जिसमें प्रश्नकर्ता अपने द्वारा पूछे गये प्रश्नों और दाता द्वारा दिये गये उत्तरों को जोड़ते हुए क्रमबद्ध रूप में, एक कथात्मक शैली में प्रस्तुत करता है। इसमें साक्षात्कार लेखक, साक्षात्कार दाता की भावाभिव्यक्ति को भी लिख देता है। प्रिंट माध्यम के साक्षात्कार में प्रारम्भिक अभिवादन और समाप्ति पर अभिवादन जैसी औपचारिकताओं की आवश्यकता नहीं होती है। सीधे तौर पर साक्षात्कारदाता का संक्षिप्त परिचय ही लिख दिया जाता है।
उपर्युक्त दोनों, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के लिए आयोजित किये जाने वाले साक्षात्कारों में कुछ तथ्यों में समानता भी होती है, जिनका ध्यान रखना आवश्यक है। उदाहरण स्वरूप दोनों ही माध्यमों के साक्षात्कारों के लिए प्रश्नोत्तर शैली ही अधिकांशतः प्रयोग में लायी जाती है। इसके लिए साक्षात्कारकर्ता को साक्षात्कार में शामिल होने से पूर्व ही कुछ प्रश्न तैयार करने पड़ते हैं। इन्हें संरचनात्मक प्रश्न कहते हैं। लेकिन पूरा साक्षात्कार बनी बनायी प्रश्नावली पर आधारित करने पर वह नीरस हो जाता है इसलिए यह आवश्यक है कि प्रश्नकर्ता अपनी बौद्धिक क्षमता एवं त्वरित निष्कर्ष निकालने की क्षमता के द्वारा साक्षात्कार के दौरान ही कुछ असंरचनात्मक प्रश्न भी पूछ ले। इन्हीं प्रश्नों के द्वारा साक्षात्कार में जीवंतता कायम रहती है और पाठक, श्रोता या दर्शक पूरी रुचि के साथ साक्षात्कार पढ़ता, सुनता या देखता है। दोनों प्रकार के माध्यमों के लिए आयोजित साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता को दाता का परिचय, उसके व्यक्तित्व, कृतित्व और पृष्ठभूमि के बारे में बताना पड़ता है।
साक्षात्कार में दाता पूरी सहजता से सहभागिता करे इसके लिए आवश्यक है कि साक्षात्कारकर्ता पहले प्रश्न पूछे और साथ ही साथ दाता के उत्तर देने के दौरान उसमें विन न डाले। यदि साक्षात्कारदाता किसी प्रश्न का उत्तर विषय से परे हटकर या अनावश्यक रूप से विस्तारित शैली में देने लगे तो उन्हें पूरी शालीनता के साथ मुख्य विषय से जोड़ने का प्रयास करना, साक्षात्कारकर्ता का ही कर्तव्य होता है। इस तरह यह पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है कि माध्यम चाहे कोई भी हो(प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक) साक्षात्कार का नियंत्राण पूरी तरह साक्षात्कारकर्ता के हाथों में ही रहता है।
अंग्रेजी शब्द ‘इन्टरव्यू' के शब्दार्थ के रूप में, साक्षात्कार शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसका सीधा आशय साक्षात् कराना तथा साक्षात् करना से होता है। इस तरह ये स्पष्ट है कि साक्षात्कार वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति विशेष को साक्षात् करा दे। गहरे अर्थों में साक्षात् कराने का मतलब किसी अभीष्ट व्यक्ति के अन्तस् का अवलोकन करना होता है। किसी भी क्षेत्र विशेष में चर्चित या विशिष्ट उपलब्धि हासिल करने वाले व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी जिस विधि के द्वारा प्राप्त की जाती है उसे ही साक्षात्कार कहते हैं।
मौलिक रूप से साक्षात्कार दो तरह के होते हैं -१. प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार २. माध्यमोपयोगी साक्षात्कार
प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार का उद्देश्य और चरित्रमाध्यमोपयोगी साक्षात्कार से पूरी तरह भिन्न होता है। इसका आयोजन सरकारी या निजी प्रतिष्ठानों में नौकरी से पूर्व सेवायोजक के द्वारा उचित अभ्यर्थी के चयन हेतु किया जाता है; जबकि माध्यमोपयोगी साक्षात्कार, जनसंचार माध्यमों के द्वारा जनसामान्य तक पहुँचाये जाते हैं। जनमाध्यम की प्रकृति के आधार पर साक्षात्कार भी भिन्न प्रकार से आयोजित किये जाते हैं। इनके सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक पक्षों में भी बहुत अंतर होता है। जिसकी सम्पूर्ण और स्पष्ट जानकारी का होना, साक्षात्कारदाता और साक्षात्कारकर्ता दोनों के लिए आवश्यक होता है। माध्यम के अनुसार ही कर्ता और दाता अपनी तैयारी कर सकते हैं और फलस्वरूप साक्षात्कार की सफलता सुनिश्चित की जा सकती है।
जनमाध्यमों के आधार पर साक्षात्कार दो प्रकार का हो सकता है -१. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए साक्षात्कार। २. प्रिंट मीडिया के लिए साक्षात्कार।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए साक्षात्कार
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अन्तर्गत रेडियो और टेलीविजन को शामिल किया जाता है। इन माध्यमों के लिए आयोजित किये जाने वाले साक्षात्कार की सफलता में तकनीकी पक्ष का भी विशेष महत्त्व होता है। जहाँ एक तरफ रेडियो श्रव्य माध्यम है वहीं दूसरी तरफ टी.वी. दृश्य-श्रव्य माध्यम है। यदि हमें रेडियो के लिए साक्षात्कार करना है तो टेपांकन विधि से परिचित होना साक्षात्कारदाता और साक्षात्कारकर्त्ता दोनों के लिए जरूरी है।
पूर्व निर्धारित किसी स्थान विशेष या स्टूडियो में साक्षात्कार में शामिल होने से पूर्व दाता और कर्ता को माध्यम के तकनीकी पक्षों और गुणों की पूरी तरह जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। आवाज की गति, तीव्रता, उच्चारण, माइक्रोफोन की निश्चित दिशा एवं स्थिति आदि के संबंध में पूरी तरह सहज होने पर ही एक अच्छे साक्षात्कार का आयोजन संभव हो सकता है। रेडियो के लिए किये जाने वाले साक्षात्कार के संबंध में साक्षात्कारकर्ता और दाता को भी स्मरण रखना चाहिए कि एक बार टेपांकित हो जाने के बाद उसमें संपादन की गुंजाइश बहुत कम और सीमित ही रहती है। कहने का अर्थ यह है कि साक्षात्कार में शामिल व्यक्तियों की बातचीत, श्रोता सीधे सुनता है, इसलिए उसमें सुधार की संभावना कम ही रहती है। इसी तरह टी.वी. के लिए भी आयोजित किये जाने वाले साक्षात्कार में भी अत्यंत सावधानी की जरूरत होती है। बल्कि दृश्य-श्रव्य माध्यम होने के कारण टी.वी. के लिए आयोजित किए जाने वाले साक्षात्कार में अतिरिक्त ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
जहाँ एक तरफ रेडियो माध्यम में दाता और कर्ता की बातचीत को श्रोता सिर्फ सुन ही सकता है वहीं दूसरी तरफ टी.वी. के लिए आयोजित साक्षात्कार को लोग, सुनने के साथ-साथ देख भी सकते हैं। इसलिए साक्षात्कारकर्ता और साक्षात्कारदाता को अपने हाव-भाव,शारीरिक गतियों और चेहरे की भावाभिव्यक्तियों के प्रति भी सावधान रहना आवश्यक है। उनके द्वारा की जाने वाली प्रत्येक गतिविधि को लाखों-करोड़ों दर्शक देख रहे हैं, इस बात का भी ध्यान कर्ता और दाता को रखना पड़ता है।
इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के लिए आयोजित किये जाने वाले साक्षात्कार के द्वारा किसी भी कार्यक्रम या समाचार में प्रामाणिकता एवं जीवंतता उत्पन्न हो जाती है। लेकिन इसके साथ ही साथ जरा-सी असावधानी व लापरवाही से पूरा साक्षात्कार और कार्यक्रम ध्वस्त होने का भी भय बना रहता है। इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से प्रसारित साक्षात्कार के दौरान कही गई किसी बात को समझने के लिए श्रोताओं या दर्शकों के पास उसे दोबारा सुनने या देखने की सुविधा नहीं होती है। इसलिए इन माध्यमों के साक्षात्कार में प्रश्नों और उनके उत्तरों का आकार यथासंभव छोटे और सीधी सरल भाषा में शीघ्रता से समझ में आने वाली होनी चाहिए। इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का उपयोग साक्षर और निरक्षर दोनों प्रकार के व्यक्ति करते हैं, इसलिए इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के लिए आयोजित साक्षात्कार की भाषा का सरल होना अतिआवश्यक होता है। इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के साक्षात्कार में समय सीमा का ध्यान भी रखना पड़ता है अर्थात् साक्षात्कारकर्ता (जो कि साक्षात्कार का नियामक होता है) को इस बात का स्मरण रखना पड़ता है कि कोई भी प्रश्न बहुत लम्बा अस्पष्ट या विषय से अलग न हो। क्योंकि आयोजित किये जाने वाले साक्षात्कार के द्वारा एक निश्चित अवधि में अपने मूल विषय और निष्कर्ष पर पहुँचना रहता है।
प्रिंट मीडिया के लिए साक्षात्कार
रेडियो और टी.वी. के लिए आयोजित किए जाने वाले साक्षात्कार से पूरी तरह भिन्न प्रकृति का साक्षात्कार प्रिंट माध्यम का होता है। यद्यपि इस माध्यम के साक्षात्कार में भी कर्ता टेपरिकार्डर का उपयोग कर सकता है लेकिन उसे अंतिम रूप में लिप्यांकित ही करना पड़ता है।
प्रिंट मीडिया के लिए किये जाने वाले साक्षात्कार में दाता और कर्ता के हाव-हाव, शारीरिक गतियों और वेश-भूषा का कोई महत्त्व नहीं होता है। इस माध्यम के साक्षात्कार में सुधार करने की भी भरपूर संभावनाएँ होती हैं, क्योंकि यह साक्षात्कार दर्शकों या श्रोताओं की तरह तुरन्त या उसी रूप में पाठकों को प्रस्तुत नहीं किया जाता है। साक्षात्कार आयोजन के पश्चात् संपादक अपनी कुशलता से साक्षात्कार की प्रभावपूर्ण प्रस्तुति प्रदान कर देता है। प्रिंट मीडिया के साक्षात्कार में भाषा सरल या विषयानुसार क्लिष्ट भी हो सकती है, क्योंकि इसे पढ़ने वाला व्यक्ति साक्षर तो अवश्य ही होगा, साथ ही साथ किसी शब्द, वाक्य या विषय को समझने के लिए पाठक के पास एक से अधिक बार पढ़ने की भी सुविधा होती है। इस माध्यम के साक्षात्कार में समय सीमा का भी कोई प्रतिबंध नहीं होता है लेकिन समाचार पत्रया पत्रिका में उपलब्ध स्थान की जानकारी अवश्य रखनी पड़ती है। प्रिंट मीडिया के लिए यदा-कदा सुविधानुसार साक्षात्कारदाता को प्रश्न लिखकर भी दे दिये जाते हैं, जिनका उत्तर वह लिखकर भी प्रेषित कर देता है और फिर उसे प्रकाशित कर दिया जाता है। कहने का अर्थ यह है कि प्रिंट मीडिया के साक्षात्कार में दाता और कर्ता को एक-दूसरे के सामने बैठकर बातचीत करने की बाध्यता नहीं होती है, जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साक्षात्कार में ऐसा करना आवश्यक होता है।
प्रिंट माध्यम में साक्षात्कार को प्रस्तुत करने के लिए वर्णनात्मक शैली भी अपनाई जा सकती है। जिसमें प्रश्नकर्ता अपने द्वारा पूछे गये प्रश्नों और दाता द्वारा दिये गये उत्तरों को जोड़ते हुए क्रमबद्ध रूप में, एक कथात्मक शैली में प्रस्तुत करता है। इसमें साक्षात्कार लेखक, साक्षात्कार दाता की भावाभिव्यक्ति को भी लिख देता है। प्रिंट माध्यम के साक्षात्कार में प्रारम्भिक अभिवादन और समाप्ति पर अभिवादन जैसी औपचारिकताओं की आवश्यकता नहीं होती है। सीधे तौर पर साक्षात्कारदाता का संक्षिप्त परिचय ही लिख दिया जाता है।
उपर्युक्त दोनों, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के लिए आयोजित किये जाने वाले साक्षात्कारों में कुछ तथ्यों में समानता भी होती है, जिनका ध्यान रखना आवश्यक है। उदाहरण स्वरूप दोनों ही माध्यमों के साक्षात्कारों के लिए प्रश्नोत्तर शैली ही अधिकांशतः प्रयोग में लायी जाती है। इसके लिए साक्षात्कारकर्ता को साक्षात्कार में शामिल होने से पूर्व ही कुछ प्रश्न तैयार करने पड़ते हैं। इन्हें संरचनात्मक प्रश्न कहते हैं। लेकिन पूरा साक्षात्कार बनी बनायी प्रश्नावली पर आधारित करने पर वह नीरस हो जाता है इसलिए यह आवश्यक है कि प्रश्नकर्ता अपनी बौद्धिक क्षमता एवं त्वरित निष्कर्ष निकालने की क्षमता के द्वारा साक्षात्कार के दौरान ही कुछ असंरचनात्मक प्रश्न भी पूछ ले। इन्हीं प्रश्नों के द्वारा साक्षात्कार में जीवंतता कायम रहती है और पाठक, श्रोता या दर्शक पूरी रुचि के साथ साक्षात्कार पढ़ता, सुनता या देखता है। दोनों प्रकार के माध्यमों के लिए आयोजित साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता को दाता का परिचय, उसके व्यक्तित्व, कृतित्व और पृष्ठभूमि के बारे में बताना पड़ता है।
साक्षात्कार में दाता पूरी सहजता से सहभागिता करे इसके लिए आवश्यक है कि साक्षात्कारकर्ता पहले प्रश्न पूछे और साथ ही साथ दाता के उत्तर देने के दौरान उसमें विन न डाले। यदि साक्षात्कारदाता किसी प्रश्न का उत्तर विषय से परे हटकर या अनावश्यक रूप से विस्तारित शैली में देने लगे तो उन्हें पूरी शालीनता के साथ मुख्य विषय से जोड़ने का प्रयास करना, साक्षात्कारकर्ता का ही कर्तव्य होता है। इस तरह यह पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है कि माध्यम चाहे कोई भी हो(प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक) साक्षात्कार का नियंत्राण पूरी तरह साक्षात्कारकर्ता के हाथों में ही रहता है।
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