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ग़ज़ल

प्राण शर्मा

कौन उस सा फकीर होता है
जो भी दिल का अमीर होता है

उस को क्या खौफ है ज़माने का
साफ जिसका ज़मीर होता है

ताना हर बात पर नहीं देते
पार दिल के ये तीर होता है


काश, कौधे नहीं कभी बिजली
फूल सा मन अधीर होता है

वैसा ही होता है मिजाज़ उस का
जिसका जैसा ज़मीर होता है

लोग पत्थर से ही नहीं होते
सबकी आंखों में नीर होता है

"प्राण" सदियाँ ही बीत जाती हैं
पैदा कब नित कबीर होता है.
द्वारा - चाँद शुक्ला हदियाबादी
www.radiosabrang.com

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