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साक्षात्कार

प्रो. रमेश जैन
साक्षात्कार जनसंचार का अनिवार्य अंग है। प्रत्येक जनसंचारकर्मी को समाचार से संबद्ध व्यक्तियों का साक्षात्कार लेना आना चाहिए, चाहे वह टेलीविजन-रेडियो का प्रतिनिधि हो, किसी पत्र-पत्रिका का संपादक, उपसंपादक, संवाददाता। साक्षात्कार लेना एक कला है। इस विधा को जनसंचारकर्मियों के अतिरिक्त साहित्यकारों ने भी अपनाया है। विश्व के प्रत्येक क्षेत्र में, हर भाषा में साक्षात्कार लिए जाते हैं। पत्र-पत्रिका, आकाशवाणी, दूरदर्शन, टेलीविजन के अन्य चैनलों में साक्षात्कार देखे जा सकते हैं। फोन, ई-मेल, इंटरनेट और फैक्स के माध्यम से विश्व के किसी भी स्थान से साक्षात्कार लिया जा सकता है। अंतरिक्ष में संपर्क स्थापित कर सकते हैं। पहली बार पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी ने अंतरिक्ष यात्री कैप्टन राकेश शर्मा से संवाद किया था, जिसे दूरदर्शन ने प्रसारित किया था। इस विधा का दिन पर दिन प्रचलन बढ़ता जा रहा है।
मनुष्य में दो प्रकार की प्रवृत्तियाँ होती हैं। एक तो यह कि वह दूसरों के विषय में सब कुछ जान लेना चाहता है और दूसरी यह कि वह अपने विषय में या अपने विचार दूसरों को बता देना चाहता है। अपने अनुभवों से दूसरों को लाभ पहुँचाना और दूसरों के अनुभवों से लाभ उठाना यह मनुष्य का स्वभाव है। अपने विचारों को प्रकट करने के लिए अनेक लिखित, अलिखित रूप अपनाए हैं। साक्षात्कार भी मानवीय अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। इसे भेंटवार्ता, इंटरव्यू, मुलाकात, बातचीत, भेंट आदि भी कहते हैं।
साक्षात्कार की परिभाषा
साक्षात्कार या भेंटवार्ता किसे कहते हैं, इस संबंध में कोई निश्चित परिभाषा नहीं है, विषय-विशेषज्ञों ने इसे अलग-अलग परिभाषित किया है- ‘‘इंटरव्यू से अभिप्राय उस रचना से है, जिसमें लेखक व्यक्ति-विशेष के साथ साक्षात्कार करने के बाद प्रायः किसी निश्चित प्रश्नमाला के आधार पर उसके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के संबंध में प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करता है और फिर अपने मन पर पड़े प्रभाव को लिपिबद्ध कर डालता है।'' (डॉ. नगेन्द्र)
‘‘साक्षात्कार में किसी व्यक्ति से मिलकर किसी विशेष दृष्टि से प्रश्न पूछे जाते हैं।''
(डॉ. सत्येन्द्र)
‘‘इंटरव्यू में दो व्यक्तियों की रगड़ व टकराहट हो तभी सर्वोत्तम रहता है। प्रश्नकर्ता का निर्जीव, खुशामदीद होना अथवा उत्तरदाता का अहंकारी एवं स्वगोपी होना घातक होता है। दोनों व्यक्तियों में अन्तर्व्यथा हो तो दोनों ही संभोग-सा रस पाते हैं।''
(वीरेन्द्र कुमार गुप्त)
‘हिन्दी शब्द सागर' (संपादक-श्याम सुन्दर दास) में इंटरव्यू का अर्थ व्यक्तियों का आपस में मिलना, एक-दूसरे का मिलाप, भेंट, मुलाकात, साक्षात्‌, वार्तालाप, आपस में विचारों का आदान-प्रदान करना कहा गया है। ‘मानक अंग्रेजी हिन्दी कोष' में भी इंटरव्यू शब्द कुछ इसी प्रकार से स्पष्ट किया गया है - विचार-विनिमय के उद्देश्य से प्रत्यक्ष दर्शन या मिलन, समाचार पत्र के संवाददाता और किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट या मुलाकात, जिससे वह वक्तव्य प्राप्त करने के लिए मिलता है। इसमें प्रत्यक्ष लाभ, अभिमुख-संवाद, किसी से उसके वक्तव्यों को प्रकाशित करने के विचार से मिलने को ‘इंटरव्यू' की संज्ञा दी गई है।'
प्रमुख कोषकार डॉ० रघुवीर ने इंटरव्यू से तात्पर्य समक्षकार, समक्ष भेंट, वार्तालाप, आपस में मिलना बताया है।१ ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी (लंदन) में किसी बिन्दु विशेष को औपचारिक विचार-विनिमय हेतु प्रत्यक्ष भेंट करने, परस्पर मिलने या विमर्श करने, किसी समाचार पत्र प्रतिनिधि द्वारा प्रकाशन हेतु वक्तव्य लेने के लिए, किसी से भेंट करने को साक्षात्कार कहा गया है।
वास्तव में, साक्षात्कार पत्रकारिता और साहित्य की मिली-जुली विधा है। इसकी सफलता साक्षात्कार की कुशलता, साक्षात्कार पात्रके सहयोग तथा दोनों के सामंजस्य पर निर्भर करती है। टेलीविजन के लिए साक्षात्कार टेलीविजन-केन्द्र पर अथवा अन्यत्र उसके विशेष कैमरे के सामने आयोजित किये जाते हैं। रेडियो के लिए साक्षात्कार आकाशवाणी की ओर से रिकार्ड किये जाते हैं। अन्य साक्षात्कार समाचार पत्रों के लिए संवाददाता लेता है और उसे किसी समाचार पत्र-पत्रिका, पुस्तक में प्रकाशित किया जाता है।
साक्षात्कार के प्रकार
साक्षात्कार किसे कहते हैं? इसका क्या महत्त्व है और इसका क्या स्वरूप है? इन बातों को जान लेने के बाद यह जानना जरूरी है कि साक्षात्कार कितने प्रकार के होते हैं। यही इसका वर्गीकरण कहलाता है। साक्षात्कार अनेक प्रकार से लिए गए हैं। कोई साक्षात्कार छोटा होता है, कोई बड़ा। किसी में बहुत सारी बातें पूछी जाती हैं, किसी में सीमित। कोई साक्षात्कार बड़े व्यक्ति का होता है तो कोई साधारण या गरीब अथवा पिछड़ा समझे जाने वाले व्यक्ति का। किसी में केवल सवाल-जवाब होते हैं, तो किसी में बहस होती है। किसी साक्षात्कार में हंसी-मजाक होता है तो कोई गंभीर चर्चा के लिए होता है। कुछ साक्षात्कार पत्रया फोन द्वारा भी आयोजित किए जाते हैं। कुछ विशेष उद्देश्य से पूर्णतः काल्पनिक ही लिखे जाते हैं। कोई साक्षात्कार पत्र-पत्रिका के लिए लिया जाता है तो कोई रेडियो या टेलीविजन के लिए।
प्रमुख समीक्षक डॉ. नगेन्द्र, डॉ. हरदयाल, डॉ. रामचन्द्र तिवारी आदि ने साक्षात्कार दो प्रकार के माने हैं - वास्तविक और काल्पनिक। डॉ. विश्वनाथ शुक्ल ने तीसरा रूप - पत्र-साक्षात्कार भी माना है। डॉ. चन्द्रभान ने कुछ अन्य रूप भी माने हैं, पर वे स्पष्ट और सम्पूर्ण नहीं कहे जा सकते। इसलिए साक्षात्कार के संपूर्ण वर्गीकरण की जरूरत है। डॉ. विष्णु पंकज ने विभिन्न आधारों को लेकर साक्षात्कार को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा है२ -
१. स्वरूप के आधार पर
(क) व्यक्तिनिष्ठ (ख) विषयनिष्ठ
२. विषय के आधार पर
(क) साहित्यिक (ख) साहित्येतर
३. शैली के आधार पर
(क) विवरणात्मक (ख) वर्णनात्मक (ग) विचारात्मक
(घ) प्रभावात्मक (च) हास्य-व्यंग्यात्मक (छ) भावात्मक (ज) प्रश्नोत्तरात्मक
४. वार्ताकारों के आधार पर
(क) पत्रा-पत्रिका-प्रतिनिधि द्वारा (ख) आकाशवाणी-प्रतिनिधि द्वारा (ग) दूरदर्शन-प्रतिनिधि द्वारा (घ) लेखकों द्वारा
(च) अन्य द्वारा
५. औपचारिकता के आधार पर
(क) औपचारिक (ख) अनौपचारिक
६. वार्ता-पात्रों के आधार पर
(क) विशिष्ट अथवा उच्चवर्गीय पात्रों के
(ख) साधारण अथवा निम्नवर्गीय पात्रों के (ग) आत्म-साक्षात्कार
७. संपर्क के आधार पर
(क) प्रत्यक्ष साक्षात्कार (ख) पत्रव्यवहार द्वारा (पत्र-इंटरव्यू)
(ग) फोन वार्ता (घ) काल्पनिक
८. प्रस्तुति के आधार पर
(क) पत्र-पत्रिका में प्रकाशित (ख) रेडियो पर प्रसारित
(ग) टेलीविजन पर प्रसारित
९. आकार के आधार पर
(क) लघु (ख) दीर्घ
१०. अन्य आधारों पर
(क) योजनाबद्ध (ख) आकस्मिक (ग) अन्य
‘व्यक्तिनिष्ठ' साक्षात्कार में व्यक्तित्व को अधिक महत्त्व दिया जाता है। उसके बचपन, शिक्षा, रुचियों, योजनाओं आदि पर विशेष रूप से चर्चा की जाती है। ‘विषयनिष्ठ साक्षात्कार में व्यक्ति के जीवन-परिचय के बजाय विषय पर अधिक ध्यान दिया जाता है। ‘विवरणात्मक' साक्षात्कार में विवरण की प्रधानता होती है। ‘वर्णनात्मक' में निबंधात्मक वर्णन अधिक होते हैं। ‘विचारात्मक' साक्षात्कार बहसनुमा होते हैं। इनमें साक्षात्कार लेने देने वाले दोनों जमकर बहस करते हैं। ये साक्षात्कार नुकीले यानी तेजतर्रार होते है। ‘प्रभावात्मक' साक्षात्कार में साक्षात्कार लेने वाला साक्षात्कार-पात्र का जो प्रभाव अपने ऊपर महसूस करता है, उसका खासतौर पर जिक्र करता है। ‘हास्य-व्यंग्यात्मक' में हास्य-व्यंग्य का पुट या प्रधानता रहती है। ‘भावात्मक' साक्षात्कार भावपूर्ण होते हैं। ‘प्रश्नोत्तरात्मक' साक्षात्कार प्रश्नोत्तर-प्रधान अथवा मात्रप्रश्नोत्तर होते हैं। पत्र-पत्रिकाओं में आजकल समाचार या संवाद के साथ जाने-माने व्यक्तियों के छोटे-बड़े साक्षात्कार प्रश्नोत्तर रूप में अधिक सामने आ रहे हैं। इनमें साक्षात्कार देने वाले का विस्तृत परिचय, साक्षात्कार लेने की परिस्थिति, परिवेश, साक्षात्कार-पात्रके कृतित्व की सूची, उसके हावभाव और साक्षात्कारकर्ता की प्रतिक्रियाओं आदि का समावेश नहीं होता या बहुत कम होता है।
‘औपचारिक' साक्षात्कार उसके पात्र से समय लेकर विधिवत्‌ लिए जाते हैं। ‘अनौपचारिक' साक्षात्कार अनौपचारिक बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। ‘प्रत्यक्ष भेंटात्मक' साक्षात्कार उसके पात्र के सामने बैठकर लिए जाते हैं। पत्र-व्यवहार द्वारा भी साक्षात्कार आयोजित किए जाते हैं। पत्र में प्रश्न लिखकर उसके पात्र के पास भेज दिए जाते हैं। उनका उत्तर आने पर साक्षात्कार तैयार कर लिया जाता है। ये ‘पत्र-इंटरव्यू' कहलाते हैं। ‘फोनवार्ता' में टेलीफोन पर बातचीत करके किसी खबर के खंडन-मंडन के लिए इंटरव्यू लिया जाता है। ‘काल्पनिक' साक्षात्कार में साक्षात्कार लेने वाला कल्पना के आधार पर या स्वप्न में उसके पात्र से मिलकर बातचीत करता है और प्रश्न व उत्तर दोनों स्वयं ही तैयार करता है। इसमें साक्षात्कार-पात्रद्वारा दिए गए उत्तर पूर्णतः काल्पनिक भी हो सकते हैं और उसकी रचनाओं, विचारों आदि के आधार पर भी।
साक्षात्कार छोटे-बड़े दोनों प्रकार के होते हैं। ये एक पृष्ठ के, एक मिनट के हो सकते हैं और इनसे काफी बड़े भी। अब तक सबसे बड़ा साक्षात्कार डिमाई आकार के ६४८ पृष्ठों में छपा हुआ उपलब्ध है। साहित्यिक विषयों से संबद्ध साक्षात्कार ‘साहित्यिक' होते हैं। ‘साहित्येतर' में राजनीति, खेलकूद, कला, संगीत, फिल्म, विज्ञान आदि कोई भी विषय हो सकता है। साक्षात्कार पत्रकारों (पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों अथवा प्रतिनिधित्व), आकाशवाणी-दूरदर्शन के प्रतिनिधियों, लेखकों अथवा अन्य व्यक्तियों द्वारा लिए जाते हैं। पत्राकार या अन्य प्रतिनिधि स्वयं भी लेखक (साहित्यकार) हो सकते हैं और साक्षात्कार लेने वाला स्वतंत्र लेखक भी हो सकता है, जो पत्र-पत्रिका, रेडियो या टेलीविजन से जुड़ा न हो।
साक्षात्कार के पात्र विशिष्ट अथवा उच्च व्यक्ति (साहित्यकार, पत्रकार, राजनेता, कलाकार, खिलाड़ी, अभिनेता, अधिकारी आदि) होते हैं। बहुत से साधारण अथवा गरीब और पिछड़े समझे जाने वाले व्यक्तियों के भी साक्षात्कार छापे जाते हैं। कुछ लेखकों ने स्वयं अपने काल्पनिक साक्षात्कार ‘आत्म-साक्षात्कार' शीर्षक से लिखे हैं। इनमें प्रश्न और उत्तर उनके स्वयं के होते हैं। अनेक बार साक्षात्कार योजना बनाकर किए जाते हैं तो कई बार बिना योजना के अचानक संभव हो जाते हैं।
साक्षात्कार की प्रक्रिया
साक्षात्कार किसका लें?
साक्षात्कार लेने की भी एक प्रक्रिया होती है। सबसे पहले यह तय किया जाता है कि साक्षात्कार किस व्यक्ति का लिया जाए। व्यक्ति का चयन अनेक बातों पर निर्भर करता है। सामान्यतः लोग या जनसंचारकर्मी बड़े नेताओं, साहित्यकारों, संपादकों, कलाकारों, खिलाड़ियों, अभिनेताओं और अभिनेत्रियों आदि और कभी-कभी अपराधियों के बारे में जानने को उत्सुक होते हैं। इसलिए पत्राकार या जनसंचारकर्मी ऐसे व्यक्तियों से साक्षात्कार लेने के अवसर ढँूढते रहते हैं। कभी-कभी संवाददाता को पत्र-पत्रिका के संपादक, रेडियो-टेलीविजन के अधिकारी अथवा अन्य सक्षम अधिकारी से निर्देश या सुझाव मिल जाता है कि अमुक उद्देश्य से इस व्यक्ति का साक्षात्कार लेना है। शहर में यदि किसी विशिष्ट व्यक्ति का आगमन होता है, किसी समारोह में कोई विशिष्टजन उपस्थित होता है तो उसे साक्षात्कार का पात्र बनाया जा सकता है। साधारण व्यक्ति और पिछड़े वर्गों के व्यक्तियों से भी साक्षात्कार लिया जा सकता है। साक्षात्कार लेते समय यह भी तय करना होता है कि साक्षात्कार-पत्रों से उसके जीवन, कृतित्व, प्रेरणास्रोतों, दिनचर्या, रुचियों, विचारों आदि सभी पर बात करनी है या विषय को ही केन्द्र में रखकर चलना है।
साक्षात्कार की अनुमति और समय
पात्र और विषय निश्चित हो जाने पर आप साक्षात्कार-पात्र से भेंटवार्ता की अनुमति और समय माँगेंगे, साक्षात्कार का स्थान तय करेंगे, पूछे जाने वाले प्रश्नों की सूची बनाएँगे। कई बार साक्षात्कार अचानक लेने पड़ जाते हैं। हवाई अड्डा, समारोह स्थल, रेलवे प्लेटफार्म आदि पर लिखित प्रश्नावली बनाने का अवकाश नहीं होता। पहले से सोचे हुए या अपने मन से तत्काल प्रश्न पूछे जाते हैं। संबंधित पूरक प्रश्न भी पूछे जाते हैं, जिससे बात साफ हो सके, आगे बढ़ सके। ऐसी स्थिति में भी एक रूपरेखा तो दिमाग में रखनी ही पड़ती है।
प्रस्तावित प्रश्न एवं पूरक प्रश्न
योजना या रूपरेखा बन जाने पर साक्षात्कार के पात्रसे प्रश्न पूछे जाते हैं। प्रस्तावित प्रश्नों व पूरक प्रश्नों से वांछित सूचना, तथ्य, विचार निकलवाने का प्रयास किया जाता है। कोई साक्षात्कार-पात्र तो सहज रूप से उत्तर दे देता है, कोई साक्षात्कार पात्र किसी प्रश्न को टाल जाता है, उत्तर नहीं देता, तथ्य छिपा लेता है, अपने विचार प्रकट नहीं करता। कभी-कभी वह साक्षात्कारकर्ता से प्रति-प्रश्न भी कर देता है। ऐसी स्थिति में आपको सावधानी से काम लेना होगा। उन प्रश्नों की भाषा बदलकर पुनः उसके सामने रखा जा सकता है। समय के अनुसार ऐसे प्रश्न को छोड़ना भी पड़ सकता है। कटुता उत्पन्न न हो और साक्षात्कार-पात्र का मान-भंग न हो, इस बात का ध्यान रखना जरूरी है।
टेपरिकार्डर का उपयोग
पत्रकार शीघ्रलिपि (शॉर्टहैंड) जानता हो, यह जरूरी नहीं। इसलिए साक्षात्कार-पात्रद्वारा प्रकट किए गए विचार, उसके द्वारा दिए गए उत्तर उसी रूप में साथ ही साथ नहीं लिखे जा सकते। आशु-लिपिक की व्यवस्था भी कोई सहज नहीं है। यदि आप पात्रके कथन श्रुतिलेख की भाँति लिखते रहेंगे तो वह उसे अखरेगा और उसकी विचार-श्रृंखला भंग हो सकती है। समय भी अधिक लगेगा। फिर भी तेज गति से कुछ वाक्यांश और मुख्य बातें अंकित की जा सकती हैं, जिन्हें साक्षात्कार समाप्त होने पर अपने घर या कार्यालय में बैठकर विकसित किया जा सकता है। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई महत्त्वपूर्ण बात लिखने से न रह जाए। तिथियों, व्यक्तियों-संस्थाओं के नाम, रचनाओं की सूची, स्थानों के नाम, उद्धरण, घटनाएँ, सिद्धांत-वाक्य आदि ठीक तरह लिख लेने चाहिए। जल्दी लिखने का अभ्यास अच्छा रहता है। पात्र के व्यक्तित्व, परिवेश, उसके हावभाव, अपनी प्रतिक्रिया आदि को भी यथासंभव संक्षेप में या संकेत रूप में लिख लेना चाहिए। इन्हीं बिन्दुओं और अपनी स्मृति की मदद से साक्षात्कार लिख लिया जाता है। साक्षात्कार के समय यदि आपके साथ टेपरिकॉर्डर हो तो आपको बड़ी सुविधा रहेगी। टेप सुनकर साक्षात्कार लिख सकते हैं। इस साक्षात्कार में प्रामाणिकता भी अधिक रहती है। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के साक्षात्कार में रिकार्डिंग की अच्छी व्यवस्था रहती है।
साक्षात्कार लेकर साक्षात्कारकर्ता लौट आता है। वह दर्ज की गई बातों और बातचीत की स्मृति के आधार पर साक्षात्कार लिखता है। यदि बातचीत टेप की गई है तो उसे पुनः सुनकर साक्षात्कार लिख लिया जाता है। साक्षात्कार लिखते समय उन बातों को छोड़ देना चाहिए जिनके बारे में साक्षात्कार-पात्र ने अनुरोध किया हो (ऑफ द रिकॉर्ड बताया हो) अथवा उनका लिखा जाना समाज व देश के हित में न हो।
संक्षिप्त परिचय
साक्षात्कार के आरम्भ में पात्रका आवश्यकतानुसार संक्षिप्त या बड़ा परिचय भी दिया जा सकता है। परिचय, टिप्पणी आदि का आकार इस बात पर निर्भर करता है कि साक्षात्कार का क्या उपयोग किया जा रहा है। अगर समाचार के साथ बॉक्स में भेंटवार्ता प्रकाशित की जा रही है तो विषय से संबंधित प्रश्न और उत्तर एक के बाद एक जमा दिए जाते हैं। इनमें पात्रके हावभाव, वातावरण-चित्राण, अपनी प्रतिक्रियाएँ, पात्र के कृतित्व की सूची आदि का साक्षात्कार में समावेश होता भी है तो नहीं के बराबर। इसके विपरीत दूसरे अवसरों पर कुछ साक्षात्कारकर्ता इन सब बातों का भी साक्षात्कार में समावेश करते हैं।
साक्षात्कार तैयार होने पर उसे पत्रया पत्रिका में प्रकाशन के लिए भेज दिया जाता है। कुछ साक्षात्कार बाद में पुस्तकाकार भी प्रकाशित होते हैं। कुछ साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कार तैयार करके उसे पात्र को दिखा देते हैं और उससे स्वीकृति प्राप्त कर लेते हैं। इस समय पात्र साक्षात्कार में कुछ संशोधन भी सुझा सकता है। साधारणतः साक्षात्कार तैयार होने के बाद उसे पात्र को दिखाने और उसकी स्वीकृति लेने की जरूरत नहीं है। यदि पात्र का आग्रह हो तो उसे जरूर दिखाया जाना चाहिए।
साक्षात्कार में ध्यान रखने योग्य बातें
साक्षात्कार के समय अन्य बहुत-सी बातों का ध्यान रखना जरूरी है। यद्यपि यह संभव नहीं है कि प्रत्येक साक्षात्कार लेने वाले में वांछित विशिष्ट योग्यताएँ हों, फिर भी कुछ बातों का ध्यान रखकर साक्षात्कार को सफल बनाया जा सकता है। डॉ. विष्णु पंकज ने अपने शोध-ग्रंथ ‘हिन्दी इंटरव्यू : उद्भव और विकास' में इंटरव्यू लेते समय निम्न सावधानियाँ रेखांकित की हैं -
१. यदि साक्षात्कार लेने से पहले उसके पात्र और विषय से संबंधित कुछ जानकारी प्राप्त कर ली जाए तो काफी सुविधा रहेगी। अचानक लिए जाने वाले साक्षात्कार में यह संभव नहीं होता। यदि संगीत के विषय में साक्षात्कारकर्ता शून्य है तो संगीतज्ञ से साक्षात्कार को आगे बढ़ाने में उसे कठिनाई आएगी। हर साक्षात्कारकर्ता सभी विषयों में पारंगत हो, यह संभव नहीं; फिर भी आवश्यक जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। पुस्तकालयों और विषय से संबंधित अन्य व्यक्तियों से मदद ली जा सकती है।
२. साक्षात्कार का पात्र चाहे साधारण सामाजिक हैसियत का ही क्यों न हो, उसके सम्मान की रक्षा हो और उसकी अभिव्यक्ति को महत्त्व मिले, यह जरूरी है। उसके व्यक्तित्व, परिधान, भाषा की कमजोरी, शिक्षा की कमी, गरीबी आदि के कारण उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। किसी क्षेत्र विशेष का विशिष्ट व्यक्ति तो आदर का पात्र है ही।
३. साक्षात्कार करने वाले में घमंड, रूखापन, अपनी बात थोपना, वाचालता, कटुता, सुस्ती जैसी चीजें नहीं होनी चाहिए।
४. उसमें जिज्ञासा, बोलने की शक्ति, भाषा पर अधिकार, बातें निकालने की कला, पात्र की बात सुनने का धैर्य, तटस्थता, मनोविज्ञान की जानकारी, नम्रता, लेखन-शक्ति, बदलती हुई परिस्थिति के अनुसार बातचीत को अवसरानुकूल मोड़ देना जैसे गुण होने चाहिए। कई बार पात्र किसी प्रश्न को टाल देता है, कोई बात छिपा लेता है, तब घुमा-फिराकर वह बात बाद में निकलवाने की कोशिश होती है। यदि पात्र किसी बात को न बताने के लिए अडिग है तो ज्यादा जिद या बहस करके कटुता पैदा नहीं करनी चाहिए।
५. साक्षात्कार के समय, हो सकता है कि आपके विचार किसी मामले में पात्र से न मिलते हों, तब अपनी विचारधारा उस पर मत थोपिए।
६. साक्षात्कार में पात्रके विचार, उसकी जानकारी निकलवाने का मुख्य उद्देश्य होता है। साक्षात्कारकर्ता उसमें सहायक होता है। यदि वह स्वयं भाषण देने लगेगा और पात्र के कथन को महत्त्व नहीं देगा तो साक्षात्कार सफल नहीं होगा। साक्षात्कार में प्रश्न पूछने का बड़ा महत्त्व है। यदि दो व्यक्ति किसी मुद्दे पर बराबर के विचार प्रकट करने लगते हैं तो वह साक्षात्कार नहीं रह जाता, परिचर्चा बन जाती है। साक्षात्कारकर्ता को अपने पूर्वाग्रह छोड़कर पात्र के पास जाना चाहिए। साक्षात्कार मित्र-शत्रु-भाव से न लिया जाए, बल्कि तटस्थ होकर लिया जाए।
७. साक्षात्कार में सच्चाई होनी चाहिए। पात्र के कथन और उसके द्वारा दी गई जानकारी को तोड़-मरोड़कर पेश नहीं किया जाना चाहिए, यह हर तरह से अनैतिक है। कई पात्रों की यह शिकायत रही है कि उनकी बातों को तोड़-मरोड़कर साक्षात्कार तैयार कर लिया गया है। कई बार ऐसा भी होता है कि राजनेता साक्षात्कार के समय कोई बात कह जाता है मगर बाद में एतराज होने पर मुकर जाता है और कहता है कि मैंने यह बात इस तरह नहीं कही थी। कई बातें ऐसी होती हैं, जिन्हें साक्षात्कारकर्ता जानता है, फिर भी उन्हें साक्षात्कार में पूछता है, क्योंकि वे बातें पात्रके मुँह से कहलवाकर जनसामान्य के समक्ष प्रस्तुत करनी होती हैं। साक्षात्कार कोई व्यक्तिगत चीज नहीं है, वह जनता की जानकारी के लिए लिया जाता है। निजी रूप से लिए गए साक्षात्कार, यदि उनका प्रकाशन प्रसारण नहीं होता, फाइलों में सिमटकर रह जाते हैं।
८. साक्षात्कार में ऐसे मामलों को तूल न दें, जिनसे देश-हित पर विपरीत असर पड़े, सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़े, किसी का चरित्र-हनन हो, वर्ग-विशेष में कटुता फैले या पात्रका अपमान हो। साक्षात्कार के आरम्भ और अन्त में हल्के तथा मध्य में मुख्य प्रश्न पूछे जाने चाहिए। प्रश्न और उत्तर दोनों स्पष्ट हों। यदि उत्तर स्पष्ट नहीं है तो पुनः प्रश्न पूछकर उत्तर को स्पष्ट करा लेना चाहिए।
९. साक्षात्कार यथासंभव निर्धारित समय में पूरा किया जाना चाहिए। साक्षात्कार पूरा होने पर पात्र को धन्यवाद देना न भूलिए।
साक्षात्कार स्वतंत्रविधा
साक्षात्कार में निबंध, रेखाचित्र, जीवनी, आत्मकथा, आलोचना, नाटक (संवाद) आदि विधाओं के तत्त्व शामिल हो सकते हैं, पर सीमित और सहायक रूप में ही ऐसा हो सकता है। साक्षात्कार पत्रकारिता और साहित्य दोनों क्षेत्रों की प्रमुख स्वतंत्रऔर महत्त्वपूर्ण विधा है।
साक्षात्कार में नाटक का ‘संवाद' तत्त्व बातचीत या प्रश्नोत्तर के रूप में खासतौर पर होता है। इसमें साक्षात्कार लेने-देने वाले दोनों व्यक्तियों के संवादों का महत्त्व है, पर देने वाले को ही प्रधानता दी जाती है और साक्षात्कार लेने वाले के संवाद देने वाले से बात निकलवाने के निमित्त होते हैं, यद्यपि वह उससे बहस भी कर सकता है। जब साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कार की परिस्थिति, पात्र का परिचय या वातावरण का वर्णन करता है तो वह निबंधात्मक हो जाता है। साक्षात्कार में यह निबंध-तत्त्व होता है। साक्षात्कार में कहीं-कहीं संस्मरण के तत्त्व भी होते हैं, जब साक्षात्कार-पात्र अपने जीवन के प्रसंग या घटना सुनाने लगता है। जब साक्षात्कारकर्ता पात्रके व्यक्तित्व का, वेशभूषा का चित्रण करने लगता है तो वह रेखाचित्रात्मक होता है। कोई-कोई साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कार के आरम्भ में पात्र का संक्षिप्त जीवन-परिचय जोड़ देता है। यह जीवनी का ही तत्त्व है। कभी पात्र स्वयं अपने जीवन के विषय में बताने लगता है, जो आत्मकथा का संक्षिप्त रूप होता है। जब साक्षात्कार का पात्र किसी कृति की आलोचना करने लगता है तब साक्षात्कार में आलोचना के तत्त्व आ जाते हैं। कभी-कभी यह कार्य साक्षात्कारकर्ता अथवा दोनों करते हैं। साक्षात्कार रिपोर्ताज, फैंटेसी, सर्वेक्षण, पत्र, केरीकेचर आदि विधाओं से एक अलग विधा है।
‘परिचर्चा' एक स्वतंत्र विधा के रूप में विकसित हो रही है। इसे ‘समूह-साक्षात्कार' (ग्रुप-इंटरव्यू) कहा जा सकता है। इसमें सभी विचार प्रकट करने वालों का पूरा महत्त्व होता है। कुछ लोगों ने ‘साक्षात्कार' के लिए चर्चा, विशेष परिचर्चा आदि शब्दों का प्रयोग किया है। परिचर्चा को साक्षात्कार से एक अलग विधा माना जाना चाहिए।३
संवाददाता-सम्मेलन भी साक्षात्कार की तरह ही होता है। कोई विशिष्ट व्यक्ति अपनी निजी या संस्थागत नीतियों, उपलब्धियों, योजनाओं, विचारों आदि की जानकारी देने के लिए संवाददाताओं को बुलाता है। वह आरम्भ में अपने विचार प्रकट करता है अथवा मुद्रित सामग्री वितरित करता है। उसके आधार पर संवाददाता उससे प्रश्न पूछते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि किसी विशिष्ट व्यक्ति के आगमन पर विभिन्न संवाददाता उसे जा घेरते हैं और उससे प्रश्न पूछने लगते हैं। किसी विशिष्ट व्यक्ति के विदेश-गमन पर भी उससे इस प्रकार प्रश्न पूछे जाते हैं। संवाददाता-सम्मेलन आयोजित और अनौपचारिक दोनों प्रकार के होते हैं। साक्षात्कार का मुख्य उद्देश्य तो साक्षात्कार के पात्रकी अभिव्यक्ति को जनता के सामने लाना होता है, लेकिन इसमें साक्षात्कारकर्ता का भी काफी महत्त्व होता है। यदि साक्षात्कारकर्ता सूत्राधार है तो सामने वाला व्यक्ति साक्षात्कार-नायक होता है।
सन्दर्भ -
१. कॉम्प्रिहेंसिव इंग्लिश - हिन्दी डिक्शनरी, पृ०-८२०
२. जनसंचार की विधा - साक्षात्कार, पृ०-६१
३. वही, पृ०-४८

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डॉ. हरेराम पाठक हिन्दी की आधुनिक गद्य विधाओं में ‘साक्षात्कार' विधा अभी भी शैशवावस्था में ही है। इसकी समकालीन गद्य विधाएँ-संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, आत्मकथा, अपनी लेखन आदि साहित्येतिहास में पर्याप्त महत्त्व प्राप्त कर चुकी हैं, परन्तु इतिहास लेखकों द्वारा साक्षात्कार विधा को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाना काफी आश्चर्यजनक है। आश्चर्यजनक इसलिए है कि साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा साक्षात्कार विधा ही एक ऐसी विधा है जिसके द्वारा किसी साहित्यकार के जीवन दर्शन एवं उसके दृष्टिकोण तथा उसकी अभिरुचियों की गहन एवं तथ्यमूलक जानकारी न्यूनातिन्यून समय में की जा सकती है। ऐसी सशक्त गद्य विधा का विकास उसकी गुणवत्ता के अनुपात में सही दर पर न हो सकना आश्चर्यजनक नहीं तो क्या है। परिवर्तन संसृति का नियम है। गद्य की अन्य विधाओं के विकसित होने का पर्याप्त अवसर मिला पर एक सीमा तक ही साक्षात्कार विधा के साथ ऐसा नहीं हुआ। आरंभ में उसे विकसित होने का अवसर नहीं मिला परंतु कालान्तर में उसके विकास की बहुआयामी संभावनाएँ दृष्टिगोचर होने लगीं। साहित्य की अन्य विधाएँ साहित्य के शिल्पगत दायरे में सिमट कर रह गयी

समकालीन साहित्य में स्त्री विमर्श

जया सिंह औरतों की चुप्पी सदियों और युगों से चली आ रही है। इसलिए जब भी औरत बोलती है तो शास्त्र, अनुशासन व समाज उस पर आक्रमण करके उसे खामोश कर देते है। अगर हम स्त्री-पुरुष की तुलना करें तो बचपन से ही समाज में पुरुष का महत्त्व स्त्री से ज्यादा होता है। हमारा समाज स्त्री-पुरुष में भेद करता है। स्त्री विमर्श जिसे आज देह विमर्श का पर्याय मान लिया गया है। ऐसा लगता है कि स्त्री की सामाजिक स्थिति के केन्द्र में उसकी दैहिक संरचना ही है। उसकी दैहिकता को शील, चरित्रा और नैतिकता के साथ जोड़ा गया किन्तु यह नैतिकता एक पक्षीय है। नैतिकता की यह परिभाषा स्त्रिायों के लिए है पुरुषों के लिए नहीं। एंगिल्स की पुस्तक ÷÷द ओरिजन ऑव फेमिली प्राइवेट प्रापर्टी' के अनुसार दृष्टि के प्रारम्भ से ही पुरुष सत्ता स्त्राी की चेतना और उसकी गति को बाधित करती रही है। दरअसल सारा विधान ही इसी से निमित्त बनाया गया है, इतिहास गवाह है सारे विश्व में पुरुषतंत्रा, स्त्राी अस्मिता और उसकी स्वायत्तता को नृशंसता पूर्वक कुचलता आया है। उसकी शारीरिक सबलता के साथ-साथ न्याय, धर्म, समाज जैसी संस्थायें पुरुष के निजी हितों की रक्षा क