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टिप्पणी

दलित मुसलमानों सामाजिक त्रासदी पर टिप्पणी
सुरेशचंद गुप्ता

काफ़ी विस्तृत विश्लेषण किया है आपने. मैं एक भारतीय हिन्दू हूँ और यह मानता हूँ कि हर नागरिक को अपना जीवन स्तर सुधारने के समुचित समान अवसर मिलने चाहियें. पर यह अवसर धर्म, जाति, भाषा, स्थान आदि के आधार पर नहीं होने चाहियें.गरीबी और पिछड़ापन ही इस के लिए एकमात्र आधार होना चाहिए. सरकार गरीबों और पिछड़ों को इंसान के रूप में नहीं बल्कि एक वोट के रूप में देखती है. यही रवैया बाकी राजनितिक दलों का भी है. अफ़सोस इस बात का है कि यह गरीब और पिछड़े लोग ख़ुद को भी एक वोट के रूप में ही देखने लगे हैं. वोट लेने के लिए सरकारें और राजनितिक दल इन्हें धर्म, जाति, भाषा के आधार पर बांटते है, सारे कार्यक्रम इसी आधार पर तैयार किए जाते हैं. राजनीतिबाजों के दलाल इन्हें गुमराह करते हैं. मदद का एक बहुत छोटा हिस्सा ही इन तक पहुँच पाता है. इसका एक ही उपाय है. गरीब और पिछड़े स्वयं को धर्म और जाति के पैमाने से नापना बंद कर दें. आरक्षण और किसी अन्य सहायता के लिए वह अपने धर्म और जाति की बात न करें. केवल अपनी गरीबी और पिछड़ेपन की बात करें. पर क्या ऐसा सम्भव है?

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