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साहित्य एवं मीडिया में साक्षात्कार - एक दृष्टि

अशफ़ाक़ क़ादरी
साक्षात्कार मानवीय अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। साहित्य एवं पत्राकारिता के क्षेत्र में यह विधा भेंटवार्ता, इंटरव्यू, बातचीत, मुलाकात, भेंट के रूप में खासी लोकप्रिय है। जहाँ साहित्य के क्षेत्र में एक रचनाकार के जीवन, रचनाकर्म, विचारों, जज्बातों को समझने का सबसे प्रामाणिक जरिया साक्षात्कार है तो प्रिन्ट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की विश्वसनीयता का आधार साक्षात्कार है। साक्षात्कार के बिना प्रसारित समाचार अपुष्ट है। पत्रकारिता के सभी अंगों को साक्षात्कार प्रभावित करता है यह विधा कहीं प्रत्यक्ष के रूप में हमारे सामने होती है तो कभी अप्रत्यक्ष के रूप में अपना असर दिखाती है।
प्रिन्ट मीडिया में साक्षात्कार के स्तंभों के अलावा मुख्य पृष्ठ पर राजनेताओं, अधिकारियों के साक्षात्कार या उसके अंश इन दिनों समाचारों को पुष्ट करते नजर आते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में समाचारों की विश्वसनीयता के लिए संबंधित नेता या अधिकारी से भेंटवार्ता की क्लिपिंग या बाईट उसे विश्वसनीयता प्रदान करती है। आज तक चैनल में सीधी बात में आक्रामक तेवर ने साक्षात्कार को नये आयाम दिये है। जी.टी.वी. और अब इंडिया टी.वी. पर आपकी अदालत में रजत शर्मा द्वारा चर्चित व्यक्ति से न्यायालयी भाषा में सवाल पूछना व जनता की भागीदारी ने साक्षात्कार के नये रूप दिखाये हैं।
साक्षात्कार की आवश्यकता
साक्षात्कार की आवश्यकता को जानने के लिए हमें दूसरों के विषय में सब कुछ जानने की मानवीय जिज्ञासा की प्रवृत्ति को समझना होगा। इंसान दूसरों के बारे में विशेषकर चर्चित, प्रसिद्ध-अप्रसिद्ध लोगों के बारे में बहुत कुछ जानना चाहता है। वह अपने विषय में या अपने विचार दूसरों को बताने का इच्छुक भी रहता है। वह अपने अनुभवों का लाभ दूसरों तक तथा दूसरों के तजुर्बों का फायदा खुद हासिल करना चाहता है। शायद इसी जरूरत ने साक्षात्कार विधा को जन्म दिया। साक्षात्कार मानव प्रवृत्ति की इन आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
साक्षात्कार क्या है?
सुप्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन इस संबंध में कहते थे : इंटरव्यू का मकसद है पढ़ने वाला यह अनुभव करे कि जैसे वह कवि विशेष से मिल आया है। उसके पास हो आया है। उसे सूंघ आया है, उसे गले लगा आया है। हिन्दी के प्रख्यात आलोचक डॉ. नगेन्द्र ने इस विधा को परिभाषित करते हुए कहा कि इंटरव्यू से अभिप्रायः उस रचना से है जिसमें लेखक व्यक्ति विशेष के साथ साक्षात्कार करने के बाद प्रायः किसी निश्चित प्रश्नमाला के आधार पर उसके व्यक्तित्व-कृतित्व के संबंध में प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करता है और फिर मन पर पड़े प्रभाव को लिपिबद्ध कर डालता है।''
पत्रकारिता के संदर्भ में रैडमा हाउस शब्दकोश में साक्षात्कार को इस प्रकार परिभाषित किया है : साक्षात्कार उस वार्ता अथवा भेंट को कहा गया है जिसमें संवाददाता (पत्रकार) या लेखक किसी व्यक्ति या किन्हीं व्यक्तियों के सवाल-जवाब के आधार पर किसी समाचार पत्र में प्रकाशन के लिए अथवा टेलीविजन पर प्रसारण हेतु सामग्री एकत्र करता है।
पत्रकारिता एवं साहित्य में जो साक्षात्कार हो रहे हैं उनमें श्री कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर का कथन समीचीन है : मैंने इंटरव्यू के लिए बरसों पहले एक शब्द रचा था - अंतर्व्यूह। मेरा भाव यह है कि इंटरव्यू के द्वारा हम सामने वाले के अंतर में एक व्यूह रचना करते हैं। मतलब यह कि दूसरा उसे बचा न सके। जो हम उससे पाना चाहते हैं। यह एक तरह का युद्ध है और इंटरव्यू हमारी रणनीति, स्ट्रेट्रेजी, व्यूह रचना है। यह भी होता है कि सामने वाला हमसे कुछ भी छिपाना नहीं चाहता पर उसकी स्मृति में जाने क्या-क्या छिपा हुआ है जो समय उसे याद नहीं। इस प्रकार सामने वाले को प्रेरणा देना भी अंतर्व्यूह का अंग है। सबसे आवश्यक बात यह है, जिसमें इंटरव्यू की सफलता होती है, कि सामने वाले जो नहीं कहना चाहता वह भी हम उससे कहला लेते हैं, अंतर्व्यूह के द्वारा इसके लिए प्रश्न को इस सादगी से पूछते हैं कि सामने वाला चौंकता नहीं कि उससे कोई खास बात पूछी जा रही है और वह सादगी से जवाब दे देता है या कम से कम ऐसा संकेत मिल जाता है कि जिससे हम किसी निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं। इस प्रकार इंटरव्यू में मित्रकी प्रेरणा है, जासूस की चालाकी भी और विषय के ज्ञान की विद्वता भी, क्योंकि ऐसा न हो तो हम उपयुक्त प्रेरक प्रश्न ही नहीं पूछ सकते।
साक्षात्कार के माहिर वीरेन्द्र कुमार गुप्त के अनुसार इंटरव्यू में दो व्यक्तियों की रगड़ व टकराहट हो तभी सर्वोत्तम रहता है। प्रश्नकर्ता का निर्जीव, खुशामदी होना अथवा उत्तरदाता का अहंकारी व स्वागोपी होना घातक होता है। दोनों व्यक्तियों में अंतर्व्यथा हो तो दोनों ही संभोग-सा रस पाते हैं।
कथाकार जैनेन्द्र कुमार जी कहते हैं कि यह तुम्हारे ऊपर निर्भर है कि तुम मुझसे क्या निकलवाते हो। तुम चाहो तो ऐसी स्थिति पैदा कर सकते हो कि मुझे विवश कर दो और अपने अनुकूल बातें निकलवा लो। मैं तो अपनी ओर से कुछ करने का नहीं।
आज साहित्य एवं पत्रकारिता की दुनिया में सामने वाले से कुछ निकलवाने के लिए रणनीति, टकराहट, प्रतिस्पर्द्धा चल रही है जिसमें सामयिक घटनाओं के प्रति संबंधित व्यक्तियों के शोले उगलते शब्द साक्षात्कार के माध्यम से सामने आते हैं।
साक्षात्कार में बोलती अन्य विधाएँ
वर्तमान प्रकाशित एवं प्रसारित साक्षात्कारों का अवलोकन करें तो हम अपने अध्ययन में इस विधा के बहुआयामी रूपों का दर्शन कर सकते हैं। इसमें निबन्ध, संस्मरण, रेखाचित्र, जीवनी, आत्मकथा, नाटक (संवाद) के तत्त्व सीमित और सहायक रूप में नजर आते हैं। साक्षात्कार का प्रमुख आधार संवाद है जो इंटरव्यू लेने व देने वाले की बातचीत, बहस को पुष्ट करता है। जब एक लेखक अपने साक्षात्कार में परिस्थिति, पात्र का परिचय, वातावरण का चित्रण करता है तो निबंधात्मक हो जाता है। जब सामने वाला अपनी यादें बयान करने लगता है तो संस्मरण के तत्त्व सामने आते हैं। जब लेखक अपने पात्र की वेशभूषा व व्यक्तित्व का वर्णन करने लगता है तो वह रेखाचित्रात्मक बन जाता है। जब सामने वाला किसी घटना, पात्र या परिस्थिति पर आक्रोश जाहिर करने लगता है तो आलोचना के तत्त्व भी दृष्टिगोचर होते हैं। मगर फिर भी साक्षात्कार एक स्वतंत्र विधा है।
आजकल साक्षात्कार मात्र दो व्यक्तियों की बातचीत न होकर जनसमूह से बात करने का माध्यम भी बन गया है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आपकी अदालत में उपस्थित दर्शक भी अपने सवाल पूछते हैं। संवाददाता सम्मेलनों में पत्रकार सवाल पूछते हैं। वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये किसी व्यक्ति से सवाल पूछकर उसके विरोधी की प्रतिक्रिया भी दिखायी जाती है।
आजकल मीडिया में साक्षात्कार के विविध रूप सामने आ रहे हैं। साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में एक रचनाकार के बचपन, शिक्षा, रुचियों, योजनाओं, जज्बातों, विचारों से ओत-प्रोत व्यक्तिनिष्ठ साक्षात्कार छपते हैं जो आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से गायब होते जा रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में तो विषयनिष्ठ साक्षात्कारों के अंश प्रसारित होते हैं। विवरण की प्रधानता वाले या निबंधात्मक साक्षात्कार भी मात्र पत्र-पत्रिकाओं में जगह पाते हैं। आजकल सामयिक घटनाओं पर विचारात्मक साक्षात्कारों की तेजी है। इसमें साक्षात्कार लेने व देने वाले दोनों बहस पर उतारू रहते हैं। ये विचारोत्तेजक साक्षात्कार पाठकों या दर्शकों पर गहरा प्रभाव डालते हैं। आजकल सेटेलाईट चैनलों पर ऐसे साक्षात्कार मकबूल हो रहे हैं। आज तक चैनल में सीधी बात में प्रभु चावला सामने वाले को बचने का अवसर नहीं देते। आप की अदालत में रजत शर्मा कटघरे में सामने वाले को सांस तक नहीं लेने देते हैं। एक जमाने में दूरदर्शन पर फल खिले हैं - गुलशन-गुलशन जैसे तबस्सुम के खिलखिलाते साक्षात्कार भी परदे के पीछे जा रहे हैं। इस प्रकार साक्षात्कार विधा के बदलाव और विकास की प्रक्रिया तेजी से चल रही है।
साक्षात्कार की विकास यात्रा
हमारे देश में प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में संवाद को साक्षात्कार का प्राचीन रूप माना जाता है। नचिकेता-यम संवाद, मरणासन्न रावण से लक्ष्मण का संवाद, भीष्म - युधिष्ठिर संवाद, कृष्णार्जुन-संवाद (गीता) भरत-आत्रोय संवाद, गार्गी-याज्ञवल्क्य संवाद, गौतम-सत्यकाम संवाद आदि साक्षात्कार का पूर्व रूप माने जा सकते हैं।
पश्चिम में १९वीं शताब्दी के साक्षात्कारों में कवि लैंडर की गद्य पुस्तक इमेजिनरी कन्वसेशंस (सृजनकाल १८२४-५३) में अतीत के महान्‌ साहित्यिक पात्रों के लगभग १५० काल्पनिक वार्तालाप हैं, जिनमें जीवन और साहित्य से जुड़े अनेक विषय शामिल हैं। पेंटामेरान में पेद्राक व कोकेशियों के संवाद हैं। पश्चिम में रिव्यू आफ रिव्यूज के एडीटर स्टीड साक्षात्कार कला के महान्‌ विद्वान थे। दुनिया में नेलीसन, रोम्या रौलां, लुई फिशर, गाइटेलेज, रोबिन डे, जार्ज शेफर, फील्डर कुक, राईनर, मेंनवेल, रिचर्ड बर्गिन, स्टीव चिचर्डरास, डायना गुडमैन, डिस्का जोकी आदि पश्चिम के प्रमुख साक्षात्कारकर्ता हैं।
भारत में देश की सभी भाषाओं के साहित्य, समाचार पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी, दूरदर्शन, सेटेलाईट चैनलों पर साक्षात्कार छाया हुआ है। अंग्रेजी में दिलीप कुमार राय की किताब अमंग द ग्रेट (१९५१-६०) साक्षात्कारों का संग्रह है। इसी प्रकार अंग्रेजी में कुलदीप नायर, प्रीतीश नंदी, आर.के. करंजिया, खुशवंत सिंह, जनार्दन ठाकुर, शशि कुमार, चांद, वहराम, निमाई साधन वसु के साक्षात्कार उल्लेखनीय हैं।
हिन्दी में पहला साक्षात्कार किसे माना जाये इस विषय में विद्वानों में कई मत हैं। डॉ. विश्वनाथ शुक्ल व डॉ. नगेन्द्र ने विशाल भारत के सितम्बर १९३१ के अंक में रत्नाकर जी से बातचीत को पहला साक्षात्कार मानते हुए प्रसिद्ध पत्राकार पं. बनारसीदास चतुर्वेदी को प्रथम साक्षात्कारकर्ता माना है। डॉ. रामगोपाल सिंह चौहान ने साक्षात्कार संग्रह मैं इनसे मिला (१९५२) के लेखक डॉ. पद्म सिंह शर्मा कमलेश को इस विधा का प्रथम पुरुष माना है। डॉ. पंकज ने अपने शोध के आधार पर संगीतज्ञ पं. विष्णु दिगम्बर पलुस्कर से लिये साक्षात्कार संगीत की धुनः एक संवाद को हिन्दी का पहला साक्षात्कार माना है जो समालोचना में छपा था। इसके रचियता पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी को प्रथम साक्षातकर्ता माना है।
हिन्दी में साक्षात्कारों की कई किताबें छपी हैं जो साहित्य का सरमाया हैं। १९६२ में विश्व का सबसे बड़ा साक्षात्कार समय और हम डिमाई आकार में ६४८ पृष्ठों में प्रकाशित हुआ जो वीरेन्द्र कुमार मिश्र ने श्री जैनेन्द्र कुमार से लिया था। पं. बनारसीदास चतुर्वेदी, पं. श्रीराम शर्मा के लिये कई साक्षात्कार साधना के प्रवेशांक (मार्च-अप्रैल, १९४१) में छापे थे। डॉ. पदम सिंह शर्मा कमलेश ने वरिष्ठ साहित्यकारों से साक्षात्कार कर इस विधा को निश्चित स्वरूप प्रदान किया। कैलाश कल्पित ने इसी परंपरा में साहित्य के साथी(१९५७) साहित्य साधिकाएं (१९६२) साहित्यकारों के संघ (१९८७) साक्षात्कार संग्रह रचे।
हिन्दी के काल्पनिक साक्षात्कारों में एंटव चेखव एक इंटरव्यू, १९५५ में राजेन्द्र यादव ने रचा। शरद देवड़ा की पुस्तक में अनेक लेखिकाओं के काल्पनिक साक्षात्कार मिलते हैं। गोपाल प्रसाद व्यास की पुस्तक हलो-हलो में काल्पनिक हास्य-व्यंग्यात्मक इंटरव्यू हैं।
वास्तविक साक्षात्कारों में हिन्दी कहानियां और फैशन (१९६४) में डॉ. सुरेश सिन्हा की उपेन्द्रनाथ अश्क से बातचीत है। प्रस्तुत प्रश्न में हरदयाल मौजी, गजानन पोतदार, डॉ. प्रभाकर माचवे की कथाकर जैनेन्द्र कुमार से वार्तालाप है। विष्णु प्रभाकर, यशपाल जैन की किताबों में देशी-विदेशी व्यक्तियों के इंटरव्यू हैं। डॉ. रणवीर रांग्रा के साक्षात्कार संग्रह सृजन की मनोभूमि, (१९६८) साहित्यिक साक्षात्कार (१९७८) अक्षय कुमार जैन के संग्रह याद रही मुलाकातें' शिखरों की छांह' में इस दिशा में उल्लेखनीय है। डॉ. विष्णुकांत शास्त्री का साक्षात्कार संग्रह बंगलादेश के संदर्भ में शार्टकट की संस्कृति, (केशवचन्द्र शर्मा), अंतरंग (१९८१) श्री कन्हैयालाल नंदन, अपरोक्ष (अज्ञेय), सांच समझ (१९८५-श्रीकांत जोशी), कथन-उपकथन (महेश दर्पण) मैं इनसे मिली' (आशारानी), परिप्रश्न (अश्विनी) जिज्ञासाएं मेरी समाधान बच्चन के (डॉ. कमल किशोर गोयनका) साक्षात्कार (जगदीश), मुलाकातें (रतिलाल शाहीन), साक्षात्कार (कर्ण सिंह), चिरस्मरणीय भेंटवार्ताएं (संपादक-डॉ. विष्णु पंकज) हिन्दी की प्रमुख पुस्तकें हैं।
साक्षात्कार का बढ़ता प्रभाव
मौजूदा दौर में मीडिया के विकास के कारण साक्षात्कार का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। जैसाकि हम पहले कह चुके हैं कि आज प्रिन्ट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, समाचारों के संकलन तथ्यों या किसी बचान की पुष्टि, समाचारों को रोचक व प्रामाणिक बनाने व स्थानीय रंग देने के लिए साक्षात्कार सशक्त माध्यम है। किसी विषय में मत संग्रह, समस्या विवेचन व दिलचस्प टिप्पणियों के लिए भी साक्षात्कार की जरूरत रहती है।
मीडिया में राजनेता, सरकारी अधिकारी, संगठनों के उच्च पदाधिकारी किसी क्षेत्र के ख्याति प्राप्त लोग यथा साहित्यकार, संगीतकार, फिल्मकार, खिलाड़ी के संबंध में सूचनाएं, जानकारी, समाचार की पुष्टि, खंडन, विचारों के लिए साक्षात्कार विभिन्न माध्यमों से लिए जाते रहे हैं।
किसी घटना के फलस्वरूप रातोंरात चर्चित व्यक्ति पर उसके करीबी लोग, रिश्तेदार, सगे संबंधी उसके व्यक्तित्व कृतित्व पर प्रकाश डाल सकते हैं। किसी घटना, दुर्घटना, कांड में शामिल लोग या उसके चश्मदीद साक्षी से साक्षात्कार काफी सुराग दे जाते हैं। सरकारी नीतियों निर्णयों का आमजन पर प्रभाव देखने के लिए आम व्यक्तियों से साक्षात्कार होते रहते हैं।
चर्चित अपराध कांड में आजकल मीडिया पर अभियुक्तों के साक्षात्कार भी आने लगे हैं। प्रमोद महाजन हत्या के अभियुक्त प्रवीण महाजन को पुलिस की गाड़ी से बोलते कई चैनलों ने दिखाया। उत्तर प्रदेश में एक हत्याकांड में अभियुक्तों ने चैनल के स्टूडियो में साक्षात्कार देकर आत्मसमर्पण किया।
साक्षात्कार के माध्यम
आज पत्र-पत्रिकाओं तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जो साक्षात्कार हमारे सामने आ रहे हैं वह विभिन्न माध्यमों से तैयार होते हैं। परंपरागत रूप से मौखिक व लिखित साक्षात्कार तैयार होते रहे हैं। मौखिक साक्षात्कार में किसी व्यक्ति से समय लेकर या आवश्यकता पड़ने पर आकस्मिक रूप से बातचीत कर साक्षात्कार तैयार किया जाता है। समय लेकर निर्धारित स्थान पर भेंटवार्ता में जानने समझने का काफी अवसर मिल जाता है। आकस्मिक रूप से किसी विषय, घटना, प्रसंग, समाचार की पुष्टि व खंडन के लिए मीडियाकर्मी संबंधित व्यक्ति को जहां भी मिले, घेरकर प्रश्नों की झड़ी लगा देते हैं और अपने मतलब की बात निकाल ले जाते हैं। टेलीफोन, वीडियो कान्फ्रेंसिंग सुविधा के माध्यम से दर्शकों के सामने वाले से बात कर लेते हैं। आजकल इंटरनेट चेटिंग के जरिये भी साक्षात्कार तुरंत फुरंत सामने आ रहे हैं।
पहले पत्र द्वारा प्रश्नमाला भेजकर साक्षात्कार लिया जाता था, जो अब दूरसंचार माध्यमों के तीव्र विकास के कारण बन्द हो रहा है। यद्यपि पत्र द्वारा लिये गये साक्षात्कार उत्कृष्ट रहे हैं जो सामने वाले के इत्मीनान व लिखने की शैलीगत विशेषताओं व तथ्यों से भरपूर होते हैं।
साक्षात्कार लेने के लिए यदि समय हो तो संबंधित व्यक्ति से दिन, समय और स्थान तय करना बेहतर है। उसके संबंध में जितनी भी सूचनाएं उपलब्ध हों उनका अध्ययन कर लेना चाहिये। दानिश्वर एक्टर टॉम अल्टर से मुलाकात के समय जब मैंने उनके प्रारंभिक जीवन और फिल्मों के विषय में सवाल पूछे तो उन्होंने इंटरनेट पर यह जानकारी प्राप्त करने का सुझाव दिया। उनका कहना था कि जो जानकारी किताबों, पत्रिकाओं, इंटरनेट पर मिल सकती है साक्षात्कर्ता को पहले उसे देखकर आना चाहिये ताकि बाकी समय में दूसरे महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर समय का उपयोग हो सके। कई स्थापित लेखक या कलाकार अपनी किताबों या फिल्मों की सूची बताने में समय गवाना नहीं चाहते।
किसी ज्वलंत इश्यु पर नेताओं, अधिकारियों व एक्टरों को हवाई अड्डों, होटलों के बाहर घेर लिया जाता है, अपने मतलब की बात निकलवाने के लिए आपत्तिजनक ढंग से सवाल पूछे जाते हैं जिससे वह व्यक्ति क्रोधित हो उठता है या कोई जवाब नहीं देकर निकल जाता है। पत्राकारों से हाथापाई, मारपीट के प्रसंग भी हो जाते हैं। इस प्रकार के अपरिपक्व प्रश्नों के कारण पूरा मीडिया जगत्‌ बदनाम होता है। कई बार किसी साक्षात्कार के बाद एकतरफा तथ्य, जो समाचार के अनुरूप हो, दूसरे तथ्यों को अनदेखा कर छाप दिये जाते हैं जिसका खंडन होता है।
साक्षात्कार की कला
साक्षात्कार में व्यक्ति का आत्म सम्मान व निजता की रक्षा भी अहम्‌ प्रश्न है। एक जमाने में बनारसीदास चतुर्वेदी, डॉ. रणवीर रांग्रा, डॉ. पद्म सिंह शर्मा कमलेश, डॉ. सत्येन्द्र आदि का कहना था कि साक्षात्कार उसके पात्रको दिखाकर स्वीकृति ले लेनी चाहिए। यद्यपि अधिकांश साक्षात्कार तैयार करने के बाद उनके पात्रों को दिखाये नहीं जाते मगर उन पर कोई विवाद नहीं होता। जब साक्षात्कार में किसी व्यक्ति के कथन या तथ्य तोड़-मरोड़कर समाचारों या अन्य रूप में परोस दिये जाते हैं जो जलती आग में घी का काम करते हैं तो नेता अक्सर प्रेस पर तोड़-मरोड़कर छापने का आरोप लगाते हैं या अपनी बात से साफ मुकर जाने में भला समझते हैं। इससे संबंधित व्यक्ति के साथ प्रकाशित कथन की विश्वसनीयता संदिग्ध हो जाती है।
साक्षात्कार लेने वाले की जिज्ञासा, बोलने की शक्ति, भाषा पर अधिकार, बातें निकालने की कला, पात्र को सुनने का धैर्य, तटस्थता, मनोविज्ञान, नम्रता, लेखन शक्ति, बदलती परिस्थितियों के अनुरूप बातचीत को मोड़ देने की कला, व्यवहार कुशलता एक अच्छे साक्षात्कार को तैयार करने में सहायक होती है। प्रिन्ट मीडिया व टेलिविजन चैनलों में ऐसे पत्राकार सफल साबित हुए। प्रिन्ट मीडिया में कलमबद्ध करने वाले को बेशक शीघ्र लिपि का ज्ञान न हो मगर वाक्यांश, घटनाएं, तिथियां, स्थान, रचनाओं की सूची, सिद्धान्त, वाक्य, व्यक्ति के मनोभाव जो भी लिखना चाहे सहज रूप से अंकित कर निष्पक्षता से उसे ढालना होता है ऑफ दि रिकार्ड को छोड़ना ही बेहतर है।
साक्षात्कार में सामने वाले के सम्मान की रक्षा व अभिव्यक्ति को पूरा महत्त्व मिलना एक जरूरत है चाहे वह किसी भी हैसियत का क्यों न हो। व्यक्तित्व, परिधान, भाषा की कमजोरी, शिक्षा की कमी, गरीबी के कारण उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। उससे काफी महत्त्वपूर्ण सूचनाएं व विचार मिलते हैं। किसी व्यक्ति से साक्षात्कार करते समय घमंड, रूखापन, बात थोपना, वाचालता, कटुता, सुस्ती से परहेज करने वाले पत्रकारों ने सामने वाले के ऐसे दुर्गुणों को सहन करते हुए अच्छे साक्षात्कार प्रस्तुत करने में सफलता पायी है। कई बार पात्र प्रश्नों को टाल जाते हैं या छिपाते हैं तो घुमा-फिराकर खूबसूरती से वह बात सामने ले आते हैं।
शोले उगलते साक्षात्कारों का प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में चलन है। साधारण बातचीत से कोई धमाकेदार शीर्षक नहीं बन पाता, इसलिये धमाकेदार बातचीत कर उसके वाक्यांशों को प्रमुखता से फोटो के साथ प्रकाशित किया जाता है। टी.वी. रेडियो पर साक्षात्कार में संबंधित ध्वनियों व चित्र तथा फाईल चित्रों से सजाये जाते हैं। फिल्मी कलाकार या व्यक्ति का साक्षात्कार हो तो उसके संवाद गीत दिखाने का मौका भी मिल जाता है। कुल मिलाकर प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सभी में साक्षात्कार की धूम मची है।
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लोकतन्त्र के आयाम

कृष्ण कुमार यादव देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद में कुम्भ मेले में घूम रहे थे। उनके चारों तरफ लोग जय-जयकारे लगाते चल रहे थे। गाँधी जी के राजनैतिक उत्तराधिकारी एवं विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के मुखिया को देखने हेतु भीड़ उमड़ पड़ी थी। अचानक एक बूढ़ी औरत भीड़ को तेजी से चीरती हुयी नेहरू के समक्ष आ खड़ी हुयी-''नेहरू! तू कहता है देश आजाद हो गया है, क्योंकि तू बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिले में चलने लगा है। पर मैं कैसे मानूं कि देश आजाद हो गया है? मेरा बेटा अंग्रेजों के समय में भी बेरोजगार था और आज भी है, फिर आजादी का फायदा क्या? मैं कैसे मानूं कि आजादी के बाद हमारा शासन स्थापित हो गया हैं। नेहरू अपने चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुराये और बोले-'' माता! आज तुम अपने देश के मुखिया को बीच रास्ते में रोककर और 'तू कहकर बुला रही हो, क्या यह इस बात का परिचायक नहीं है कि देश आजाद हो गया है एवं जनता का शासन स्थापित हो गया है। इतना कहकर नेहरू जी अपनी गाड़ी में बैठे और लोकतंत्र के पहरूओं का काफिला उस बूढ़ी औरत के शरीर पर धूल उड़ाता चला गया। लोकतंत

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विज्ञान भूषण अंग्रेजी शब्द ‘इन्टरव्यू' के शब्दार्थ के रूप में, साक्षात्कार शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसका सीधा आशय साक्षात्‌ कराना तथा साक्षात्‌ करना से होता है। इस तरह ये स्पष्ट है कि साक्षात्कार वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति विशेष को साक्षात्‌ करा दे। गहरे अर्थों में साक्षात्‌ कराने का मतलब किसी अभीष्ट व्यक्ति के अन्तस्‌ का अवलोकन करना होता है। किसी भी क्षेत्र विशेष में चर्चित या विशिष्ट उपलब्धि हासिल करने वाले व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी जिस विधि के द्वारा प्राप्त की जाती है उसे ही साक्षात्कार कहते हैं। मौलिक रूप से साक्षात्कार दो तरह के होते हैं -१. प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार २. माध्यमोपयोगी साक्षात्कार प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार का उद्देश्य और चरित्रमाध्यमोपयोगी साक्षात्कार से पूरी तरह भिन्न होता है। इसका आयोजन सरकारी या निजी प्रतिष्ठानों में नौकरी से पूर्व सेवायोजक के द्वारा उचित अभ्यर्थी के चयन हेतु किया जाता है; जबकि माध्यमोपयोगी साक्षात्कार, जनसंचार माध्यमों के द्वारा जनसामान्य तक पहुँचाये जाते हैं। जनमाध्यम की प्रकृति के आधार पर साक्षात्कार

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डॉ. हरेराम पाठक हिन्दी की आधुनिक गद्य विधाओं में ‘साक्षात्कार' विधा अभी भी शैशवावस्था में ही है। इसकी समकालीन गद्य विधाएँ-संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, आत्मकथा, अपनी लेखन आदि साहित्येतिहास में पर्याप्त महत्त्व प्राप्त कर चुकी हैं, परन्तु इतिहास लेखकों द्वारा साक्षात्कार विधा को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाना काफी आश्चर्यजनक है। आश्चर्यजनक इसलिए है कि साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा साक्षात्कार विधा ही एक ऐसी विधा है जिसके द्वारा किसी साहित्यकार के जीवन दर्शन एवं उसके दृष्टिकोण तथा उसकी अभिरुचियों की गहन एवं तथ्यमूलक जानकारी न्यूनातिन्यून समय में की जा सकती है। ऐसी सशक्त गद्य विधा का विकास उसकी गुणवत्ता के अनुपात में सही दर पर न हो सकना आश्चर्यजनक नहीं तो क्या है। परिवर्तन संसृति का नियम है। गद्य की अन्य विधाओं के विकसित होने का पर्याप्त अवसर मिला पर एक सीमा तक ही साक्षात्कार विधा के साथ ऐसा नहीं हुआ। आरंभ में उसे विकसित होने का अवसर नहीं मिला परंतु कालान्तर में उसके विकास की बहुआयामी संभावनाएँ दृष्टिगोचर होने लगीं। साहित्य की अन्य विधाएँ साहित्य के शिल्पगत दायरे में सिमट कर रह गयी