रचना गौड़ भारती
कच्ची मिट्टी का घड़ा हो तुम
मैं हूं तुम्हारी सुराही
भीनी सी खुश्बू तुम में थी
सुगंधित जल मैं भर लायी
जीवन का लहू जमा हुआ- सा
चलो मिलकर इसे पिघलाएं
एक कुम्हार (परमात्मा), एक ही मिट्टी,
तुम रहे तने, मुझे झुकाया ये कैसी प्रकृति
टूटोगे तुम भी, बिखरूंगीं मैं भी
काम एक ही है प्यास बुझाना
प्यास जो बुझे तो प्यासे, खुदा से दुआ करना
मटके से मेरी गर्दन कभी न लम्बी करना
वरना ये दुनियां पकड़-पकड़ गिराएगी
पानी पीकर खाली सुराही (भोग्यक्ता)
जमीन पर लुढ़काएगी
कच्ची मिट्टी का घड़ा हो तुम
मैं हूं तुम्हारी सुराही
भीनी सी खुश्बू तुम में थी
सुगंधित जल मैं भर लायी
जीवन का लहू जमा हुआ- सा
चलो मिलकर इसे पिघलाएं
एक कुम्हार (परमात्मा), एक ही मिट्टी,
तुम रहे तने, मुझे झुकाया ये कैसी प्रकृति
टूटोगे तुम भी, बिखरूंगीं मैं भी
काम एक ही है प्यास बुझाना
प्यास जो बुझे तो प्यासे, खुदा से दुआ करना
मटके से मेरी गर्दन कभी न लम्बी करना
वरना ये दुनियां पकड़-पकड़ गिराएगी
पानी पीकर खाली सुराही (भोग्यक्ता)
जमीन पर लुढ़काएगी
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