Skip to main content

Posts

Showing posts from September, 2008

हवा

सीमा गुप्ता ये हवा कुछ ख़ास है, जो तेरे आस पास है, मुझे छू, मेरा एहसास कराने चली आई ये हवा। सारी रात मेरे साथ आँसुओं में नहाके, मेरे दर्द की हर ओस को मुझसे चुराके, मेरे ज़ख़्मों का हिसाब तेरे पास लाई ये हवा, ख़ामोश तन्हा से अफ़सानों को अपने लबों पे लाके, मेरे मुरझाते चेहरे की चमक को मुझसे छुपाके, भीगे अल्फ़ाज़ों को तुझे सुनाने चली आई ये हवा, ये हवा कुछ ख़ास है, जो तेरे आस पास है। तेरे इंतज़ार में सिसकती इन आँखों को सुलगाके, कुछ तपती झुलसती सिरहन मे ख़ुद को भीगाके, जलते अँगारों से तुझे सहलाने चली आई ये हवा, ये हवा कुछ खास है जो तेरे आस पास है। मुझे ओढ़ कर पहन कर ख़ुद को मुझ में समेटके, मुझे ज़िन्दगी के वीरान अनसुलझे सवालों मे उलझाके, मेरे वजूद को तुम्हें जतलाने चली आई ये हवा, ये हवा कुछ ख़ास है जो तेरे आस पास है

इन्तहा-ऐ-मोहब्बत

सीमा गुप्ता इन्तहा-ऐ-मोहब्बत में , सहरा मे बसर हो जाएगा... ये असरा-ऐ-जूनून लेकर , की वो दरिया है इश्क का, कभी तो उतर आएगा ...

पहचान

सीमा गुप्ता नाम से हुई पहचान हमारी , या हमसे नाम का उन्वान हुआ, बडी पशोपेश मे रही जिन्दगी, क्या आगाज़ हुआ और, क्या अंजाम हुआ ???

तुम कहाँ थे?

राजीव रंजन प्रसाद जब नेता बिक रहे थे विधान सभा में फेकी जा रही थी माईकें टीवी पर बिना पतलून के दिखाई जा रही थी खादीगिरि "उनके" इशारों पर हो रहे थे एनकाउंटर्स जलाये जा रहे थे मुहल्ले तुम कहाँ थे? मैं कोई सिपहिया तो हूँ नहीं कि लोकतंत्र के कत्ल की वजह तुमसे पूछूं मुझे कोई हक नहीं कि सवाल उठाऊं तुम्हारी नपुंसकता पर लेकिन आज बोरियत बहुत है यार मेरे मिर्च-मसाले सा कुछ सुन लूं तुम ही से टाकीज में आज कौन सी पिक्चर नयी है? तुम्हारी पुरानी गर्लफ्रेंड के नये ब्वायफ्रेंड की दिलचस्पी लडको में है? कौन से क्रीकेटर नें फरारी खरीदी? कौन सा बिजनेसमेन देश से फरार है? बातें ये एसी हैं, इनमें ही रस है देश का सिसटम तो जैसे सर्कस है अब कोई नहीं देखता.... मेरे दोस्त, किसी बम धमाके में अपने माँ, बाप, भाई, बहन को खो कर अगर चैन की नींद सोनें का कलेजा है भीतर तो मत सोचो, सिगरेट से सुलगते इस देश की कोई तो आखिरी कश होगी? उस रोज संसद में फिर हंगामा हुआ था उस रोज फिर बहस न हुई बजट पर मैं यूं ही भटकता हुआ सडक पर जाता था कि फेरीवाले नें कहा ठहरो “युवक” यह भेंट है रखो, बाँट लो आपस में कहता वह ओझल था, आँखों से

मेरी उम्मीदों को नाकाम ना होने देना

सीमा गुप्ता ज़िंदगी की उदास राहों में, कोई एक राह तो ऐसी होगी, तुम तक जो मुझे लेके चली आयेगी ... इन बिखरते ओर सम्भालते हुए लम्हात में , एक कोई लम्हा भी तो ऐसा होगा, तेरी खुशबू मुझे महका के चली जायेगी........ ये मोहब्बत के जूनून का ही असर हो शायद , तेरे आने की ही आहट कुछ ऐसी होगी, मेरी साँसों की जो रफ़्तार बढ़ा जायेगी........... मेरी पल पल की दुआओं में, कोई एक दुआ तो होगी, तेरे दरबार में मकबूल करी जायेगी....... तूने जो मेरी मोहब्बत के लिये होंगे लिखे, उन्हीं फूलों से एक बार ज़रूर, खुशबुओं से मेरी आगोश भरी जायेगी........ मैने आवाज़ दुआओं की उठा रक्खी है, तेरे दरबार में उम्मीद सजा रखी है, "मेरी उम्मीदों को नाकाम ना होने देना"

वाडमय का अगला आयोजन

वाडमय का अगला आयोजन - नासिरा शर्मा पर केन्दित अंक होगा . रचनाये आमंत्रित है . 30 नवम्बर 2008 तक रचनाओं पर विचार होगा .धन्यवाद अधिक जानकारी के लिये सम्पर्क करें. Dr. Firoz Ahmad Editor- Vangmaya Patrika B-4, Liberty Homes, Abdullah College Road Civil Lines, Aligarh, 202002 India ph.no.91 941 227 7331

ये हवाएं तेरी ज़मीन से आई थी

Poornima Chaturvedi ये हवाएं तेरी ज़मीन से आई थी मेरी मिट्टी मे नही था बेवफा होना मेरे घर की तासीर कड़वी ही सही, मगर मैंने सिखा नही था मिश्री से ज़हर होना ढूंढते कोई और बहाना दूर होने का मुझे तो आता ही नही था तुझसे ख़फा होना ये वक्त का तकाज़ा था या तादीर मेरी पानी मे लिखा था मेरा धुंवा होना अब मैं मैखाने के जानिब ही जाऊंगा बहुत हो चुका अब मेरा ख़ुदा होना खेल ही खेल मे हालात बदल जाएंगे हमको मालूम न था यूँ दाना होना दिल की हसरत निगाहों से कही थी हमने उल्फत ने जाना नही था अभी ज़ुबां होना

वो बात...

राजीव रंजन प्रसाद वो बात जो एक नदी बन गयी क्या तुमने कही थी? घमंड से आकाश की फुनगी को एक टक ताक कर sतुम पत्थर की शिलाओं को परिभाषा कहती हो हरी भरी उँची सी, बेढब पहाडी... कितना विनम्र था वो सरिता का पानी पैरों पर गिर कर और गिड़गिड़ा कर निर्झर हो गया था.. तुम कब नदी की राह में गोल-मोल हो कर बिछ गये क्या याद है तुम्हें? धीरे-धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय चिड़िया चुग गयी खेत अब काहे को रोय? अहसास के इस खेल में जब उसकी पारी हो गयी सरिता आरी हो गयी.. दो फांक हो गये हो बह-बह के रेत हो कर उस राह में बिछे हो, कालिन्द की मानिन्द जिस पर कदम रखे गुजरा किये है वो याद जो एक सदी बन गयी वो बात जो एक नदी बन गयी...

तलब

सीमा गुप्ता ख़ुद को आजमाने की एक ललक है , एक ग़ज़ल तुझ पे बनाने की तलब है... लफ्ज को फ़िर आसुओं मे भिगो कर, तेरे दामन पे बिछाने की तलब है ... आज फ़िर बन के लहू का एक कतरा, तेरी रगों मे दौड़ जाने की तलब है ... अपने दिल-ऐ-दीमाग से तुझ को भुलाकर, दीवानावार तुझको याद आने की तलब है... दम जो निकले तो वो मंजर तू भी देखे, रुखसती मे तुझसे नजर मिलाने की तलब है...

कानों में बारूद डाल विस्फोट करुँगा.

*** राजीव रंजन प्रसाद कानों में बारूद डाल विस्फोट करूँगा आहत हो, बेदर्द मगर मैं चोट करूँगा॥ दरिया का पानी घाटी गहरा करता है, किंतु किनारे वहीं काटता जहाँ जमीं समतल है गरज गरज कर मेघ मरुस्थल से कहते हैं जंगल सदा बहार देख कर हम झरते हैं करवट देखी, ऊँट कहाँ लेटा फिर बैठे, भीड़ बना कर, भेड़ साथ मिल कर चरते हैं रंगे सियारों की बस्ती में बकरी बोली, मै हूँ जिंटलमैन नाम मैं “गोट” करूँगा । कानों में बारूद डाल विस्फोट करूँगा आहत हो, बेदर्द मगर मैं चोट करूँगा॥ खरगोशों के दाँत गिनो और “भरत” कहा लो लोहे फेंको, चने रखे हैं, वही चबा लो बीच सड़क पर हिजड़े ताली पीट रहे हैं सौ रुपये का नोट खरच कर खूब दुआ लो भूखे रह कर भजन करोगे, हे गोपाला!! व्रत रक्खो, फल खाओ, छककर मालपुआ लो दुश्सासन जन नायक है बोला, दुस्साहस गाँधी के तीनों बंदर की ओट करुँगा । कानों

रूरू रू..... रूरू रू.... रूरू रू....

गरिमा तिवारी लल्ला लल्ला लल्ला ल ला ला ल ला ला जब हम तुम किसी दिन कही पर मिलेंगे कुछ दिल से कहेंगे कुछ दिल से सुनेंगे न सपनो की दुनिया, न परियों सी कहानी नही चाहिये कोई ख्वाब सूहानी हम तुम चलेंगे इक ऐसी गली मे होगी जहाँ सिर्फ दिल की कहानी न ख्वाबो मे आना, न दिल से तुम जाना रहेंगे हम हरदम बनके दिल की निशानी लल्ला लल्ला लल्ला ल ला ला हम्मह हम्मह हम्मह ह्म ह्म ह जब हम तुम किसी दिन कही पर मिलेंगे कुछ दिल से कहेंगे कुछ दिल से सुनेंगे होगी आँखो मे बाते, ना होंगी जुबानी ना कोई शिकायत ना रूसवा कहानी ना लेना, ना देना, ना ही कोई वादा होगी मुहब्बत दिल से सीधी साधी ना रस्मो के बन्धन, ना ही कच्चे धागे ना ही टूटने का कोई डर हो आगे रूरू रू... रूरू रू.... रूरू रू

पधारो म्हारे देस...

राजीव रंजन प्रसाद बालमवा..पधारो म्हारे देस... आदम ढूंढो, आदिम पाओ रक्त पिपासु, प्यास बुझाओ मेरी माँगें, तेरी माँगे खींचे इसकी उसकी टाँगे मेरा परिचय, मेरी जाती छलनी कर दो दूजी छाती नेताजी का ले कर नारा गुंडागर्दी धर्म हमारा हमें रोकने की जुर्ररत में खिंचवाने क्या केस पधारो म्हारे देस.. किसका ज्यादा चौडा सीना मैं गुज्जर हूँ, वो है मीणा दोनों मिल कर आग लगायें रेलें रोकें बस सुलगायें कितना अपना भाईचारा मिलकर हमने बाग उजाडा बीन जला दो, धुन यह किसकी भैंस उसी की लाठी जिसकी मरे बिचारे आम दिहाडी गोली के आदेस पधारो म्हारे देस.. ईंट ईंट कर घर बनवाओ जा कर उसमें आग लगाओ और अगर एसा कर पाओ हिम्मत वालों देश जलाओ अपनी पीडा ही पीडा है

खुदगर्ज

सीमा गुप्ता उसकी खैरियत की ख़बर हो जाती मुझको, एक बार अगर मेरे हालत का जयाजा लेता... बडा ही "खुदगर्ज" रहा था वो हर तकाजे मे, "मुझे गुमान हो उसकी सलामती का भी " कैसे मगर इतना भी वो मेरा एहसान लेता???

पुस्तक पर चर्चा

पुस्तक पर चर्चा हिन्दी साक्षात्कार उद्भव और विकास नामक पुस्तक के सम्पादक डा. एम. फीरोज अहमद . विवेकानंद पी.जी. कालेज के हिन्दी प्रवक्ता इकरार अहमद ने विस्तार से इसका वर्णन किया. उनका कहना था कि इस तरह की पहली पुस्तक है जिसमें सैद्धान्तिक एवं व्यवहारिक पक्ष को लेकर लिखा गया है जिसमें सैद्धान्तिकी पर बहुत सारे पठनीय आलेख ही नहीं बहुत सारे साक्षात्कार भी एक साथ है. शिवकुमार मिश्र, काशीनाथ, जाबिर हुसेन,नासिरा शर्मा और मधुरेश के साक्षात्कार बहुत अच्छे है.धर्म ज्योति कालेज के प्राचार्य डा. सर्वोत्तम दीक्षित ने कहा कि यह पुस्तक बहुमूल्य है ही साहित्य के अध्येताओं एवं शोधकर्ताओं के लिये यह एतिहासिक दस्तावेज का काम करेगी.इसी कालेज के सचिव डा. धर्मेन्द्र सिहं ने अपने वक्तव्य में कहा हिन्दी के साक्षात्कार विधा के सिद्धान्तों मान्यताओं एवं उद्भव और विकास की विस्तृत जानकारी देकर इस पुस्तक ने ध्यान आकृष्ट किया है . मथुरा से आये युवा कहानीकार एम.हनीफ. मदार ने इस पुस्तक पर चर्चा करते हुए कहा कि इसमें साक्षात्कारों की विविधता है. इसमें लोक साहित्य ,कहानी,शायरी आदि लेखकों के तो साहित्यिक साक्षात्कार है

ख्वाबों की तावीर

राही मासूम रजा पर आधारित अंक वाडमय पत्रिका मूल्य 70 रूपये india अपनी प्रति सुरक्षित कराये बी-4 लिबर्टी होम्स अब्दुल्लाह कालेज रोड अलीगढ 202002 09412277331 सम्पादकीय कहानी प्रताप दीक्षित : राही मासूम रजा की कहानियाँ: मनुष्य के ख्वाबों की तावीर राही मासूम रजा : एक जंग हुई थी कर्बला में राही मासूम रजा : सिकहर पर दही निकाह भया सही राही मासूम रजा : खुशकी का टुकड़ा राही मासूम रजा : एम०एल०ए० साहब राही मासूम रजा : चम्मच भर चीनी राही मासूम रजा : खलीक अहमद बुआ राही मासूम रजा : सपनों की रोटी आलेख/लेख राही मासूम रजा : फूलों की महक पर लाशों की गंध राही मासूम रजा : रामायण हिन्दुस्तान के हिन्दुओं की धरोहर है? राही मासूम रजा : नेहरू एक प्रतिमा राही मासूम रजा : शाम से पहले डूब न जाये सूरज शिव कुमार मिश्र : राही मासूम रजा कुरबान अली : हिन्दोस्तानियत का सिपाही हसन जमाल : राही कभी मेरी राह में न थे सग़ीर अशरफ़ : राष्ट्रीय एकता के सम्वाहकः राही बाकर जैदी : राही और १८५७ मेराज अहमद : राही का रचनात्मक व्यक्तित्व मूलचन्द सोनकर : रही मासूम रजा की अश्लीलता? जोहरा अफ़जल : राही मासूम रजा और आधा गाँव आदित्य प्रचण्डिया

पिता नहीं आए

रजनी मेहता लेने गये थे मेरे लिये खिलौना, पर पिता नहीं आए! जिनकी आंखों के कहलाते थे हम तारा, उनसे छूट न जाये साथ हमारा, दादा-दादी के जो थे सहारा, जिनके आने से रोशन होता था घर हमारा, पिता नहीं आए! पिता नहीं आए पर आई उनकी लाश, जिस बात पर होता नहीं मुझे विश्वास! लेने गये थे मेरे लिये खिलौना, पर पिता नहीं आए!

मुलाकात

सीमा गुप्ता चलो कागज के पन्ने पर ही आज , छोटी सी हसीं मुलाकात कर लें कुछ पूरे ,कुछ अधूरे लफ्जों मे फ़िर , "आमने सामने बैठ कर बात कर लें " कुछ अपनी कहें , कुछ तुमसे सुने, दिल की बातें बे -आवाज़ सही, " एक साथ कर लें " "आमने सामने बैठ कर बात कर लें" युग एक बीता जो हम साथ थे, ना जाने कब से मिलने को बेताब थे, इस मिलन की घड़ी को आबाद कर लें , आमने सामने बैठ कर बात कर लें वो बेकल पहर आ गया है , मुझे सामने तू नज़र आ गया है, एक ज़रा देर काबू में जज्बात कर लें "आमने सामने बैठ कर बात कर लें" एक दूजे में खो जाएँ आओ चलो, फिर ना बिछरे कभी ऐसे मिल जाएं चलो, अब तो पूरी अपनी "मुलाकात " कर लें , "आमने सामने बैठ कर बात कर लें"

किसको पता

सीमा गुप्ता कोई गोली कहाँ चलेगी , किसको पता, कोई बम्ब कहाँ फटेगा, किसको पता, आज अभी तुम मांग सजा लो, बिंदीया लगा लो, कब ये मांग सूनी हो जाए किसको पता??? हरी-हरी ये कांच की चूडी जो मन भाए, गोरे-गोरे हाथों पर तुम इन्हे सजा लो, कब ये हाथ सुने हो जायें किसको पता??? अपने बाबा की गोदी पर आज ही चढ़कर, अपने सारी की सारी जिद्द पुरी कर लो, कब तुम भी लावारिस बन जाओ किसको पता??? नन्ही आँखों से सपना मत देखो , की तुम पायलट बनोगे, कब नीला अम्बर शमशान बन जाए किसको पता??? आओ हम सब मिलकर कुछ ऐसा कर जायें, हम हिन्दुस्तानी नही झुकेंगे- नही झुकेंगे, चल जाएगा सब को पता -सब को पता"

वहीं पर तुम जहाँ हो काग़जों पर

सीमा गुप्ता वहीं पर तुम जहाँ हो काग़जों पर, वहीं मैं आजकल रहने लगा हूँ ....... जिगर के दिल के हर एक दर्द से मैं, रवां दरिया सा इक बहने लगा हूँ ....... सुना दी आईने ने दिल की बातें, तुम्हे मैं आजकल पहने लगा हूँ ......... तुम्हारे साथ हूँ जैसे अज़ल से, तुम्हारी बात मैं कहने लगा हूँ........ सुनी सीमा हमारे दिल की बातें ??? तुम्हीं से तो मैं सभी कहने लगा हूँ..........

दुआ करे

सीमा गुप्ता तजवीज़ कोई मुझ को वो क्यूँ कर सज़ा करे, जो बात कहनी हो वो निगाहें मिला करे.... कब तक सुकून -ऐ -दिल के लिये वो मकान करे, घर को मिटा के मुझ को मगर बे-अमां करे.... है तो सदा बुलंद मगर कियूं सुनाई दे, दिल से निकल रही हो जो उसके दुआ करे.... दागे फिराक देके वो गुलचीन चला गया, किसके लिये तू बाग़ अब आशियाँ करे.... 'सीमा शहर में हो कोई जो सरफिरा बने , होगा वो किस गली में यह कैसे गुमान करे , झोली में मेरी डाल के हीरा किया करम, दानी उसे बचाने की रब से दुआ करे..........

आशनाई

सीमा गुप्ता 'नज़र से नज़र" कभी मिलाई तो होती.... दिल की बात कभी हमसे भी, बनाई तो होती.... क्यूँ कर रही शबे-फुरकत से' आशनाई सारी रात..... कभी मेरी तरह अंधेरों मे, "आईने से आंख लडाई तो होती "

निगाहे-नाज़

सीमा गुप्ता बेज़ारी जान की थी या, किसी गम की गीरफ्तारी थी, अंधेरी रात मे भी, " रोशन रूखे- यार देखा" शायद ये निगाहे-नाज़ की बीमारी थी (बेज़ारी - उदासीनता ) (रूखे- यार - प्रेमिका का चेहरा) (निगाहे-नाज़ - चंचल आँख)

आंख भर के

सीमा गुप्ता ना आंख भर के देखा ही किए , ना सरगोशीयों की कोई बारात थी , मुद्दत से जिसकी तडपते रहे क्या ये वही मुलाकत थी ...????

हो जाने दो

सीमा गुप्ता ना छुपाओ अपने वजूद को इस जमाने से , की ,दुनिया मे ख़ुद की पहचान हो जाने दो. आईना हूँ , तेरा त्स्सब्बुर नज़र आऊंगा , की , मुझे अपने अक्स मे एक बार ढल जाने दो. मोहब्बत गुनाह ही सही, पर खूबसूरत तो है , की , इश्क मे आज अपने बदनाम हो जाने दो. दिल की धड़कन , शोला -ऐ - एहसास ही सही की , इस आग मे आज मुझको जल जाने दो. हाँ, मोहब्बत है मुझसे , ये इकरार कर लो की , अपने आगोश मे मुझको बिखर जाने दो .....

बिजली

सीमा गुप्ता खो ना दूँ तुझको इस डर से तुझे कभी मैं पा न सका , चाहता रहा शीद्त्त से मगर तुझे कभी जता ना सका. वीरान आँखों के समुंदर मे अपने आंसुओं को पीता रहा , दिल के दर्द की एक झलक भी मगर तुझे दिखा ना सका . तेरा ख्याल बन कर बिजली और एक तूफान मुझे सताता रहा , इश्क मे जलने का सबब मगर तुझे कभी समझा ना सका . तू बदनाम न हो जाए , मैं जमाने मे गुमनाम सा जीता रहा लबों पे नाम तो था पर आवाज देकर तुझे बुला ना सका . तु कभी गैर की न हो जाए ये ख्याल हर पल मुझे डराता रहा शिकवा आज भी है इस डर से तुझे कभी अपना भी ना सका उपर वाला बस बेदर्द हो गम की "बिजली" मुझपे ही गीराता रहा, तुझसे जुदा होके भी अपना आशियाँ झुलसने से मैं बचा ना सका ……-

हॉं मैं

Sanat Kumar Jain वे कहते हैं मै पलायनवादी हॅू, मै निराशवादी हूं हॉ मैं वृक्षों के पत्तों के बीच बहने वाली हवा की छुअन चाहता हूं हॉ मैं गाय बैलों के खुरों से पगडंडियों की उडती धूल चाहता हूं हां मै पहली बरसा की बॅदों और धूल के सानिय से उठती गंध चाहता हूं हॉ मैं महॅए की महक और आम के बौर की गंध चाहता हूं हॉं मैं चिडियों का कलख चाहता हूं हॉ मैं सांझ में उडते पंछियों का बादल चाहता हूं हॉ मैं पलों के जीवन का काई पल खोना नहीं चाहता हूं हॉं मैं पलायनवादी हूं हॉं मैं निराशावादी हूं

जीवाणु अनंतकाली

Sanat Kumar Jain कौन सा जीवाणु तेरे शरीर में है अंनतकाल से और अब तक जागृत है मैं तो इसे कहता हूं जीवाणु तो मुखौटा पहनने करता है मजबूर और कहता है अपने से ही चेहरा छुपा नकाबपोश जीवाणु कहता है माया का तिलस्मी जाल ओढ़ तब मुझे मानसिक शांति देगा क्षितिज का सौदागर जीवाणु मुद्रा की मुद्राओं में घुंघरूओं की झनक सुनाता है सपनों का सौदागर जीवाणु गरीबी का हल आंखों पर नोटों की पट्टी बांधकर बताता है अभियंता जीवाणु अपनी पीड़ा का निदान दूसरों की ज्यादा पीडा में दिखाता है पीडाघरी जीवाणु अपनी खुशी बढ़ाने के लिए चार दुखियारों को पैदा करना सीखता है खुशहाल जीवाणु शायद इस जीवाणु का टीका ईश्वर भी नहीं बना पाया

दरिया की कहानी

सीमा गुप्ता चश्मे-पुरआब के आगे, क्या होगी किसी दरिया की रवानी, रु-ऐ-चश्मतर के आगोश मे पढ़ ले, हर दरिया की कहानी (रु-ऐ-चश्मतर- भीगी आंख) (चश्मे-पुरआब- आंसू भरी आँख)

फर्जे-इश्क

सीमा गुप्ता बेजुबानी को मिले कुछ अल्फाज भी अगर होते पूछते कटती है क्यूँ आँखों ही आँखों मे सारी रात .., सनम-बावफा का क्या है अब तकाजा मुझसे , अपना ही साया है देखो लिए पत्थर दोनों हाथ .... पेशे-नजर रहा महबूब-ऐ-ख्याल गोश-ऐ-तन्हाई मे, आईना क्यूँ कर है लड़े फ़िर मुझसे ले के तेरी बात... दिले-बेताब को बख्श दे अब तो सुकून-ऐ-सुबह, दर्दे-फिराक ने अदा किया है फर्जे-इश्क सारी रात... (सनम-बावफा - सच्चा-प्रेमी ) (पेशे-नजर - आँखों के सामने) (गोश-ऐ-तन्हाई -एकांत) (दर्दे-फिराक -विरह का दर्द) (फर्जे-इश्क - प्रेम का कर्तव्य)

सीमा गुप्ता

परिचय- 11-10-1971 को अम्बाला में जन्मी कवयित्री सीमा गुप्ता ने अपनी पहली कविता 'लहरों की भाषा' तब ही लिख ली थी जब वो चौथी कक्षा की छात्रा थीं। यहीं से इन्हें लिखने की प्रेरणा मिली। वाणिज्य में परास्नातक कवयित्री सीमा गुप्ता नव शिखा पोली पैक इंडस्ट्रीज, गुड़गाँव में महाप्रबंधक की हैसियत से काम कर रही हैं। इनकी रचनाएँ 'हरियाणा जगत', 'रेपको न्यूज़' आदि जैसे कई समाचार पत्रों में कई बार प्रकाशित हो चुकी हैं। मुख्यरूप से ये दुःख, दर्द और वियोग आदि पर कविताएँ लिखती हैं, जिसका ये कोई कारण नहीं बता पाती हैं, बस्स खुद को सहज महसूस करती हैं।साहित्य से अलग इनकी दो पुस्तकें 'गाइड लाइन्स इंटरनल ऑडटिंग फॉर क्वालिटी सिस्टम' और 'गाइड लाइन्स फॉर क्वालिटी सिस्टम एण्ड मैनेज़मेंट रीप्रीजेंटेटीव' प्रकाशित हो चुकी हैं। संपर्क-सीमा गुप्तामहा प्रबंधक, नव शिखा पोली पैक इंडस्ट्रीजप्लॉट नं॰ १९४, फेज़-१उद्योग विहार, गुड़गाँव- १२२००१

शबे-फुरकत

सीमा गुप्ता " शबे-फुरकत थी , "और" जख्म - पहलु में, कोहे - गम ने की , शब- बेदारीयाँ हमसे... (शबे फुरकत- विरह की रात , कोहे - गम- दुःख का पहाड़ , शब - बेदारीयाँ - रात को जागना )

मंजिल

सीमा गुप्ता मंजिल नहीं थी कोई मगर गामज़न हुए ख़ुद राह चुन के तेरी तमन्ना लिए हुए फिर साया मेरा देके दगा चल दिया किधर हम आईने को तकते रहे जाने किस लिए दिलदार ने भुला दिया पर हमने उसको यूँ सजदे सुकून-ऐ-दिल के लिए कितने कर लिए अल्फाज़ धोका दे गए जब आखिरश हमें हमने भी उम्र भर के लिए होंठ सी लिए

"कैसे भूल जाए"

सीमा गुप्ता जिन्दगी की ढलती शाम के , किसी चोराहे पर, तुमसे मुलाकात हो भी जाए... "वो दर्द गम", तेरे लिए जो सहे मैंने, उनको दिल कैसे भूल जाए

अमानत

सीमा गुप्ता अमानत मे अब और खयानत ना की जाए , आहें-शरर -फीशां आज उन्हें लौटाई जाए... हिज्र-ऐ-यार मे जो हुआ चाक दामन मेरा, दरिया-ऐ-इजतराब उनके सामने ही बहाई जाए (आहें-शरर -फीशां - चिंगारियां फैंकने वाली आहें हिज्र-ऐ-यार - प्रेमी का विरह दरिया-ऐ-इजतराब- बेचेनी का दरीया)

तुम्हारी याद है

सीमा गुप्ता एक तरफ़ तुम हो तुम्हारी याद है, दूसरी जानिब ये दुनिया है कोई बरबाद है, तीसरी जानिब कोई मासूम सी फरियाद है .... वस्ल के लम्हों में भी तनहा रहे, तुम को गुज़रे वक्त याद आते रहे, तुम से मिल कर भी तो दिल नाशाद है ...... दर्द-ओ-गम की ताब जो न ला सके, वो कहाँ दिल को कहीं बहला सके, पास आकर भी तुम्हें ना पा सके, इश्क में तेरे ये दिल बर्बाद है....... एक तरफ़ तुम हो तुम्हारी याद है..............

सजा

सीमा गुप्ता आज ख़ुद को एक बेरहम सजा दी मैंने , एक तस्वीर थी तेरी वो जला दी मैंने तेरे वो खत जो मुझे रुला जाते थे भीगा के आंसुओं से उनमे भी, " आग लगा दी मैंने ..."

अच्छा था

सीमा गुप्ता तेरी यादों में जल जाते तो अच्छा था, शबनम की तरह पिघल जाते तो अच्छा था. इन उजालों में मिले हैं वो दर्द गहरे, हम अंधेरों में बदल जाते तो अच्छा था. मेरी परछाईं से भी था शिकवा उनको, ये चेहरे ही बदल जाते तो अच्छा था. क्यों माँगा था तुझे उमर भर के लिए, अपना ही सहारा बन जाते तो अच्छा था. यूं बरसा के भी सावन प्यासा ही रहा, हम ही समुंदर बन जाते तो अच्छा था. क्यों संभाला था ख़ुद को एक मुकाम के लिए, हम यूं ही टूट के बिखर जाते तो अच्छा था. चाँद और सितारे तो नहीं मांगे थे हमने, काश अपने भी मुकद्दर सँवर जाते तो अच्छा था

कतरा कतरा

सीमा गुप्ता कतरा कतरा दरया देखा , कतरे को दरया में न देखा , लम्हा लम्हा जीवन पाया, जीवित एक लम्हे को न पाया, आओ हम दोनों मिलकर एक लम्हे को जिंदा कर दें, प्रेम प्रणव से जीवन भर दें

जरूरी तो है

सीमा गुप्ता मुझको मिले तेरा प्यार ये जरूरी तो है, तेरे दिल पे हो मेरा इख्त्यार ये जरूरी तो है, दर्द कितना भी सताये है, मुझे पर वो तेरा है, तेरे गम मे हो मेरा दामन तार तार ये जरूरी तो है. कोई भी एक पल तेरे बगैर सोचु भी तो मैं कैसे, हर घड़ी हो तेरा मेरा साथ ये जरूरी तो है जिसकी झलक पाने को सदयीओं से ये ऑंखें थमी हैं, मैं करू उसका जिन्दगी भर इंतजार, ये जरूरी तो है. तू है मेरी सांसों मे मुझे हर नब्ज कहती है, मैं करूं तुझे हर पल टूट के प्यार ये जरूरी तो है. ये इंतजार भी तेरा, ये आंसू भी तेरा, ये गम भी तेरा..... ये प्यार भी तेरा , ये ऐतबार भी तेरा ये............. फिर क्यों न करूं किस्मत से तकरार , "ये जरूरी तो है"

याद किया तुमने या नही

सीमा गुप्ता यूँ ही बेवजह किसी से, करते हुए बातें, यूँ ही पगडंडियो पर सुबह-शाम आते जाते कभी चलते चलते रुकते, संभलते डगमगाते. मुझे याद किया तुमने या नही जरा बताओ.. सुलझाते हुए अपनी उलझी हुई लटों को फैलाते हुए सुबह बिस्तर की सिलवटों को सुनकर के स्थिर करतीं दरवाजी आहटों को मुझे याद किया तुमने या नही जरा बताओ.. बाहों कर करके घेरा,चौखट से सर टिकाके और भूल करके दुनियाँ सांसों को भी भुलाके खोकर कहीं क्षितिज में जलधार दो बुलाके मुझे याद किया तुमने या नही जरा बताओ. सीढ़ी से तुम उतरते , या चढ़ते हुए पलों में देखुंगी छत से उसको,खोकर के अटकलों में कभी दूर तक उड़ाकर नज़रों को जंगलों में मुझे याद किया तुमने या नही जरा बताओ.. बारिश में भीगते तो, कभी धूप गुनगुनाते कभी आंसुओं का सागर कभी हँसते-खिलखिलाते कभी खुद से शर्म करते कभी आइने से बातें मुझे याद किया तुमने या नही जरा बताओ.. तुमसे दूर मैने, ऐसे हैं पल गुजारे . धारा बिना हों जैसे नदिया के बस किनारे.. बिन पत्तियों की साखा बिन चाँद के सितारे.. बेबसी के इन पलों में... मुझे याद किया तुमने या नही जरा बताओ....

सुकून है

सीमा गुप्ता एक अजब खुमार है , एक अजब जूनून है, तुम अगर नही मिले ,मेरे दिल का खून है तू ही बता मेरे मन हो क्या अब ऐसा जतन, हम तुम थोडी देर के लिये कह सकें होके मगन "सुकून है" "सुकून है" "सुकून है" "सुकून है"

बेखबर

सीमा गुप्ता अचानक चुप हो जातें हैं "वो इस कदर यूँ", "की' "बेखबर" को हमारी रुकी साँसों का "ख्याल तक नही रहता"

तेरा ख्याल

सीमा गुप्ता ख्याल भी तेरा, " आज" मुझे रुला ना सका , शरारा -ऐ-रंज का दिल से कोई सौदा हुआ शायद (शरारा -ऐ-रंज - दुःख की चिंगारी)

मलाना जहां हमारे कायदे कानून नहीं चलते

सूरज प्रकाश हिमाचल की कुल्लू घाटी में मलाना नदी से सटी खूबसूरत पहाडियों पर लगभग 8500 फुट की ऊंचाई पर बसा मलाना गांव शहरी सभ्‍यता और आधुनिकता से कोसों दूर है। इदस गांव तक पहुंचने के लिए कम सये कम 15 किमी का ट्रैक करना पड़ता है। इस गांव के बारे में कई किम्वदंतियां हैं। कहते हैं जब सिकंदर भारत पर हमला करने आया था तो उसके कुछ सैनिक उसकी सेना छोड़ कर भाग गए थे। इन्हीं भगोड़े सैनिकों ने मलाना नाम के गांव को बसाया था। उनके ग्रीक होने के कुछ पुष्ट प्रमाण भी हैं। लकड़ी के बने उनके अत्यन्त लेकिन कलात्मक मंदिरों में जो उकेरी हुई आकृतियां हैं, उनमें घुड़सवार सैनिक, हाथी, शराब पीते हुए सैनिक हैं, जिन्होंने फ्राकनुमा एक वस्त्र पहन रखा है। यह मूलतः उस युग के ग्रीक सैनिकों की पोशाक हुआ करती थी। साथ ही गांव वासियों के शरीर की बनावट, चेहरे-मोहरों में और गतिविधियों में भारतीयता का अभाव है। इसके अलावा कई लोगों और बच्चों की आंखे नीली हैं। कहा जाता है कि इन सैनिकों ने आसपास के गांवों की लड़कियों से शादी - विवाह किये और वे भेड़ें चराकर और गेहूं की खेती करके गुजर-बसर करने लगे। शुरू-शुरू में इन भगोड़े सैनिकों

दस्तक

सीमा गुप्ता अपने ही साये से , "आज" खौफजदा से हैं, फ़िर किसी तूफ़ान ने, दस्तक दी होगी...............

जूनून-ऐ-इश्क

सीमा गुप्ता जूनून की बात निकली है तो मेरी बात भी सुन लो, जूनून-ऐ-इश्क सच्चा है तो फिर हारा नहीं करता मुक़द्दस है जगह वो क्यूंकि घर माशूक का है वो, कोई मजनूँ कभी भी अपना दिल मारा नहीं करता तजस्सुस यह के वोह बोलेगा सच या झूट बोलगा, जूनून में रह के कोई काम यह सारा नही करता वो मजनू है और उसके दिल में ही है बसी लैला, हर एक हूरे नज़र पर अपना दिल वारा नहीं करता

अदा

सीमा गुप्ता फिर वही आतिशफिशानी कर रही उसकी अदा फिर वही मदिरा पिला डाली है उसके जाम ने .......... जब भी गुज़रा वो हसीं पैकर मेरे इतराफ़ से दी सदा उसको हर एक दर ने हर एक बाम ने...... एक अजब खामोश सा एहसास था दिल में मेरे उसका नज़ारा किया है पहले हर इक गाम ने...

ऐतबार

सीमा गुप्ता वो पूछते हैं मुझसे किस हद तक प्यार है, मैंने कहा जहाँ तक ये अनंत नीला आकाश है, वो पूछते हैं किसका तुम्हारे दिल पे इख्तियार है , मैंने कहा जिसका दर्द मेरे दिल मे शुमार है वो पूछते हैं किस तोहफे का तुमको इन्तजार है , मैंने कहा उसका तसुब्ब्र्र जिसके लिए दिल बेकरार है वो पूछते है मेरा साथ कहाँ तक निभाना है , मैंने कहा जहाँ तक चमकते सितारों का संसार है वो पूछते है , मैं किस तरह ऐतबार करू तुम पर , मैंने कहा मेरा वजूद ख़ुद मे एक ऐतबार है...!

जातिसूचक शब्दों की यथार्थता

राम शिवमूर्ति यादव पुराने समय की बात है। एक बार धरती पर रहने वाले सभी प्राणियों ने मेल-जोल बढ़ाने के लिए एक आम सभा का आयोजन किया। इसमें हर प्राणी वर्ग के एक-एक प्रतिनिधि शामिल हुए पर मानव-वर्ग से कोई नहीं शामिल हुआ। बाद में पता चला कि मानव वर्ग किसी एक सर्वमान्य प्रतिनिधि को भेजने पर सहमत नहीं हो सका वरन उसकी माँग थी कि हर जाति और धर्म से कम से कम एक प्रतिनिधि इस सभा में शामिल होगा। नतीजन, मानव वर्ग से कोई भी प्रतिनिधि उक्त सभा में शामिल न हो सका और आज भी समाज में मानव अपना सर्वमान्य प्रतिनिधि न चुनकर जाति और धर्म के आधार पर ही प्रतिनिधि चुनता आ रहा है। यद्यपि लोकतंत्र सभी को समान अवसरों की गारण्टी देता है पर निहित तत्व अपने-अपने स्वार्थों के मद्देनजर विभिन्न औपचारिक एवं अनौपचारिक गुटों में बंटे नजर आते हैं। जहाँ तक भारतीय समाज का सवाल है, यह विभिन्न जातियों, धर्मों, त्यौहारों, बोलियों, भाषाओं, पहनावों इत्यादि का देश है पर भारतीय समाज का आधार जाति व्यवस्था है। उत्तर वैदिक काल में विकसित वर्णाश्रम व्यवस्था भले ही कर्म आधारित रही हो पर कालान्तर में कर्म पर जन्म हावी हो गया और फिर जातियों