Sanat Kumar Jain
कौन सा जीवाणु तेरे शरीर में है अंनतकाल से
और अब तक जागृत है
मैं तो इसे कहता हूं
जीवाणु तो मुखौटा पहनने करता है मजबूर
और कहता है अपने से ही चेहरा छुपा
नकाबपोश जीवाणु
कहता है माया का तिलस्मी जाल ओढ़
तब मुझे मानसिक शांति देगा
क्षितिज का सौदागर जीवाणु
मुद्रा की मुद्राओं में घुंघरूओं की झनक सुनाता है
सपनों का सौदागर जीवाणु
गरीबी का हल
आंखों पर नोटों की पट्टी बांधकर बताता है
अभियंता जीवाणु
अपनी पीड़ा का निदान
दूसरों की ज्यादा पीडा में दिखाता है
पीडाघरी जीवाणु
अपनी खुशी बढ़ाने के लिए
चार दुखियारों को पैदा करना सीखता है खुशहाल जीवाणु
शायद इस जीवाणु का टीका
ईश्वर भी नहीं बना पाया
कौन सा जीवाणु तेरे शरीर में है अंनतकाल से
और अब तक जागृत है
मैं तो इसे कहता हूं
जीवाणु तो मुखौटा पहनने करता है मजबूर
और कहता है अपने से ही चेहरा छुपा
नकाबपोश जीवाणु
कहता है माया का तिलस्मी जाल ओढ़
तब मुझे मानसिक शांति देगा
क्षितिज का सौदागर जीवाणु
मुद्रा की मुद्राओं में घुंघरूओं की झनक सुनाता है
सपनों का सौदागर जीवाणु
गरीबी का हल
आंखों पर नोटों की पट्टी बांधकर बताता है
अभियंता जीवाणु
अपनी पीड़ा का निदान
दूसरों की ज्यादा पीडा में दिखाता है
पीडाघरी जीवाणु
अपनी खुशी बढ़ाने के लिए
चार दुखियारों को पैदा करना सीखता है खुशहाल जीवाणु
शायद इस जीवाणु का टीका
ईश्वर भी नहीं बना पाया
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