सीमा गुप्ता
ख़ुद को आजमाने की एक ललक है ,
एक ग़ज़ल तुझ पे बनाने की तलब है...
लफ्ज को फ़िर आसुओं मे भिगो कर,
तेरे दामन पे बिछाने की तलब है ...
आज फ़िर बन के लहू का एक कतरा,
तेरी रगों मे दौड़ जाने की तलब है ...
अपने दिल-ऐ-दीमाग से तुझ को भुलाकर,
दीवानावार तुझको याद आने की तलब है...
दम जो निकले तो वो मंजर तू भी देखे,
रुखसती मे तुझसे नजर मिलाने की तलब है...
ख़ुद को आजमाने की एक ललक है ,
एक ग़ज़ल तुझ पे बनाने की तलब है...
लफ्ज को फ़िर आसुओं मे भिगो कर,
तेरे दामन पे बिछाने की तलब है ...
आज फ़िर बन के लहू का एक कतरा,
तेरी रगों मे दौड़ जाने की तलब है ...
अपने दिल-ऐ-दीमाग से तुझ को भुलाकर,
दीवानावार तुझको याद आने की तलब है...
दम जो निकले तो वो मंजर तू भी देखे,
रुखसती मे तुझसे नजर मिलाने की तलब है...
Comments
लेकिन निरन्तरता आवश्यक...
शुभकामनाएं...
magar ab to aapki tarah likhne ki talab hai....
Bahut hi sundar....
Congrats !!