सीमा गुप्ता
यूँ ही बेवजह किसी से, करते हुए बातें,
यूँ ही पगडंडियो पर सुबह-शाम आते जाते
कभी चलते चलते रुकते, संभलते डगमगाते.
मुझे याद किया तुमने या नही जरा बताओ..
सुलझाते हुए अपनी उलझी हुई लटों को
फैलाते हुए सुबह बिस्तर की सिलवटों को
सुनकर के स्थिर करतीं दरवाजी आहटों को
मुझे याद किया तुमने या नही जरा बताओ..
बाहों कर करके घेरा,चौखट से सर टिकाके
और भूल करके दुनियाँ सांसों को भी भुलाके
खोकर कहीं क्षितिज में जलधार दो बुलाके
मुझे याद किया तुमने या नही जरा बताओ.
सीढ़ी से तुम उतरते , या चढ़ते हुए पलों में
देखुंगी छत से उसको,खोकर के अटकलों में
कभी दूर तक उड़ाकर नज़रों को जंगलों में
मुझे याद किया तुमने या नही जरा बताओ..
बारिश में भीगते तो, कभी धूप गुनगुनाते
कभी आंसुओं का सागर कभी हँसते-खिलखिलाते
कभी खुद से शर्म करते कभी आइने से बातें
मुझे याद किया तुमने या नही जरा बताओ..
तुमसे दूर मैने, ऐसे हैं पल गुजारे .
धारा बिना हों जैसे नदिया के बस किनारे..
बिन पत्तियों की साखा बिन चाँद के सितारे..
बेबसी के इन पलों में...
मुझे याद किया तुमने या नही जरा बताओ....
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