रजनी मेहता
लेने गये थे मेरे लिये खिलौना,
पर पिता नहीं आए!
जिनकी आंखों के कहलाते थे हम तारा,
उनसे छूट न जाये साथ हमारा,
दादा-दादी के जो थे सहारा,
जिनके आने से रोशन होता था घर हमारा,
पिता नहीं आए!
पिता नहीं आए पर आई उनकी लाश,
जिस बात पर होता नहीं मुझे विश्वास!
लेने गये थे मेरे लिये खिलौना,
पर पिता नहीं आए!
लेने गये थे मेरे लिये खिलौना,
पर पिता नहीं आए!
जिनकी आंखों के कहलाते थे हम तारा,
उनसे छूट न जाये साथ हमारा,
दादा-दादी के जो थे सहारा,
जिनके आने से रोशन होता था घर हमारा,
पिता नहीं आए!
पिता नहीं आए पर आई उनकी लाश,
जिस बात पर होता नहीं मुझे विश्वास!
लेने गये थे मेरे लिये खिलौना,
पर पिता नहीं आए!
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