रचना गौड़ भारती
जज्बात और महक जो काबू में आ जाते
इंसान भी फ़रिश्तें की गिनती में आ जाते
खत्म होगई थी रोशनाई लिखते लिखते
वरना जज्बात हमारे भी कागज पे आ जाते
पहले ही क्या कम थे यहां सागर खारे
काबू कर न पाते तो आंख में आंसू आ जाते
हर जख्म भरता नहीं बिना मरहम के
कुछ शब्द ही होते जो इसके काम आ जाते
शब्द स्पर्श से बड़े हैं हम भी ये बताते
कुछ तो शब्द कहते हम और करीब आ जाते
जज्बात और महक जो काबू में आ जाते
इंसान भी फ़रिश्तें की गिनती में आ जाते
खत्म होगई थी रोशनाई लिखते लिखते
वरना जज्बात हमारे भी कागज पे आ जाते
पहले ही क्या कम थे यहां सागर खारे
काबू कर न पाते तो आंख में आंसू आ जाते
हर जख्म भरता नहीं बिना मरहम के
कुछ शब्द ही होते जो इसके काम आ जाते
शब्द स्पर्श से बड़े हैं हम भी ये बताते
कुछ तो शब्द कहते हम और करीब आ जाते
Comments
काबू कर न पाते तो आंख में आंसू आ जाते
"very touching one"