देवमणि पाण्डेय
कौन सुने अब किसकी बात
ज़ख्मी हैं सबके जज़्बात.
रात में जब जब चांद खिला
गुज़री यादों की बारात.
तेरा साथ नहीं तो क्या
ग़म का लश्कर अपने साथ.
सावन- भादों का मौसम
फिर भी आंखों से बरसात.
महफ़िल में भी दिल तनहा
चाहत ने दी यह सौगात.
पास कहीं है तू शायद
होंठो पर हैं फिर नगमात.
जिसने देखे ख़्वाब नये
बदले हैं उसके हालात.
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कौन सुने अब किसकी बात
ज़ख्मी हैं सबके जज़्बात.
रात में जब जब चांद खिला
गुज़री यादों की बारात.
तेरा साथ नहीं तो क्या
ग़म का लश्कर अपने साथ.
सावन- भादों का मौसम
फिर भी आंखों से बरसात.
महफ़िल में भी दिल तनहा
चाहत ने दी यह सौगात.
पास कहीं है तू शायद
होंठो पर हैं फिर नगमात.
जिसने देखे ख़्वाब नये
बदले हैं उसके हालात.
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