Ed. Dr. M. Firoz Khan
इसी पुस्तक से....
... कितना उजला रहा होगा 15 अप्रैल, 2014 का दिन! भारतीय संविधान ने गर्व और पुलक से भरकर देखा होगा इस दिन को! आखिर उसके आत्म-तत्व को अभूतपूर्व विस्तार जो मिल गया था इस दिन! ‘स्वतंत्रता’ और ‘समानता’ जैसे मौलिक अधिकारों से निर्मित उसका अत्म-तत्व निश्चित ही प्रशंसनीय तो था मगर भारतीय समाज का एक बड़ा वर्ग अब तक इस आत्म-तत्त्व की घनी छाया से वंचित ही रहा था। इस वर्ग के लिए इसी छाया तले आने का मार्ग खुल गया था 15 अप्रैल, 2014 के ऐतिहासिक दिन! यही वह दिन था जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक युगांतकारी निर्णय द्वारा ‘हिजड़ों’ और ‘ट्रांसजेंडर’ मनुष्यों को ‘तीसरे लिंग’ (थर्ड जेंडर) के रूप में कानूनी मान्यता प्रदान कर मानवाधिकारों से उनका पहला परिचय कराया था।...
...कानून का बन जाना महत्त्वपूर्ण है- निश्चय ही एक ऐतिहासिक कदम। बेहद जरूरी भी। मगर उससे भी ज़रूरी है, समाज की मानसिकता में स्वस्थ बदलाव का आना। जिस समाज के लिए यह वर्ग सदियों से हास-परिहास और उपहास का विषय रहा हो, उसकी मानसिकता एकाएक बदल भी कैसे सकती है, हाँ, यह सच है कि अतीत में इस वर्ग का उपयोग रनिवासों की सुरक्षा के लिए होता रहा है मगर क्या इन्हें भी केवल और केवल एक मनुष्य मानते हुए वे सब अधिकार दिए गए जिन पर एक सामान्य मनुष्य का सहज अधिकार होना चाहिए। क्यों इनसे इनके माता-पिता की ममता भरी गोद छीन ली जाती है?...
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