खालिदा अंसारी
निकली हूँ इस इरादे से
कि दुनिया देख लूँ
रस्ते में कुछ लोग मिले हैं
देखने में खूब भले
अच्छी-सी बातें कर
जताई दोस्ती
पर जब उनसे पानी माँगा,
चटा दिया नमक,
मुँह का मजा बिगड़ा
फिर भी,
जबरदस्ती सड़ी-सी मुस्कुराहट ओढ़कर,
करके सलाम,
ठान लिया, आगे चलूँ
पर मेरा नफस इतना शरीफ नहीं है
वह नमक उसके कलेजे पर
छुरा बनकर चला और उसकी अकल को
चढ़ा जुनून
आसमान सर पर उठाकर
चिल्ला रहा है रूक जा!
मैं प्यासा हूँ!
यह तै हैं कि वे आब न देंगे
इसलिये मेरे सुकून के वास्ते
तू उन का खून पी जा!
वरना मैं तेरे दिन के चैन और रात की नींद में
आग लगा दूंगा।
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निकली हूँ इस इरादे से
कि दुनिया देख लूँ
रस्ते में कुछ लोग मिले हैं
देखने में खूब भले
अच्छी-सी बातें कर
जताई दोस्ती
पर जब उनसे पानी माँगा,
चटा दिया नमक,
मुँह का मजा बिगड़ा
फिर भी,
जबरदस्ती सड़ी-सी मुस्कुराहट ओढ़कर,
करके सलाम,
ठान लिया, आगे चलूँ
पर मेरा नफस इतना शरीफ नहीं है
वह नमक उसके कलेजे पर
छुरा बनकर चला और उसकी अकल को
चढ़ा जुनून
आसमान सर पर उठाकर
चिल्ला रहा है रूक जा!
मैं प्यासा हूँ!
यह तै हैं कि वे आब न देंगे
इसलिये मेरे सुकून के वास्ते
तू उन का खून पी जा!
वरना मैं तेरे दिन के चैन और रात की नींद में
आग लगा दूंगा।
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