Skip to main content

सुख की नींद

- ध्रुव जायसवाल
देशराम के दरवाजे पर एक मुस्टंड और माफिया किस्म का व्यक्ति आया। उसके पीछे-पीछे काफी लोग बंदूक लेकर आये।
देशराम उस मुस्टंड व्यक्ति को देखकर सहम गया। उसने मुस्टंड से कहा, ''आपके बिठलाने के लिये मेरे पास आपके योग्य कोई आसन या कुर्सी नहीं है। इसी टूटे तख्त पर बैठ जाइये। वैसे मैंने दशहरे के दिन कहीं मैदान में देखा है।''
मुस्टंड हँसा और बोला, ''तुमने ठीक पहचाना। मैं कुम्भकरण राजा रावण का ही भ्राता हूं। लेकिन अब मात्र याचक रह गया हूं।''
देशराम बोला, ''प्रभु, वह आपकी राक्षसी काया नहीं। बस आपकी बड़ी-बड़ी मूंछे और आंखें आज भी डराने वाली लगती हैं। यह खद्दर का कुर्ता यह खद्दर की टोपी आप पर बहुत बेमेल सी लगती है। वैसे मैं आपसे उस नींद की गोलियों के बारे में जरूर पूछूंगा। जिसे खाकर आप साल-साल भर सुख की नींद सोते रहते थे। मुझे बहुत टेंशन रहता है। समस्यायें इतनी रहती हैं कि नींद नहीं आती है।''
कुम्भकरण हँसा और बोला, ''उन नींद की गालियों का नाम लिखवा दूगा। मैं इस वक्त एक याचक बनकर तुम्हारे पास आया हूं। मैं चुनाव लड़ रहा हूं। तुम्हें मुझे वोट देना है।''
देशराम बोला, ''हम सब जाति धर्म के नाम पर पार्टी के व्यक्ति होते हैं फिर उसी के लिहाज से अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं।''
मुस्टंड ने मूंछों पर ताव देते हुये गरजती और धमकाने की आवाज में कहा, ''हमारी कोई पार्टी, पार्टी नहीं है। अवसर पाकर हम उनके आफर को देखते हुये उनकी पार्टी में शामिल हो जाते हैं। सभी पार्टी वाले मेरे चरणों पर बिछे रहते हैं। वे हमसे गिड़गिड़ा कर कहते हैं कि आप मेरी पार्टी में आ जाइये। मैं बड़े सम्मान के साथ पार्टी में बड़ा ओहदा दूंगा, यदि सत्ता में आया तो वरिष्ठ विभाग वाला मन्त्री बना दूंगा। तुम यदि मुझे वोट इस याचना को स्वीकार करके देते हो तो ठीक, नहीं तो मेरे पीछे बंदूकधारियों की जो फौज है वह तुमसे वोट दिलवा देगी।''
चुनाव के दिन देशराम बूथ पर पहुँचा, देखा कुम्भकरण अपनी मूंछों पर ताव देता हुआ खड़ा था। देशराम ने कुम्भकरण को देखकर बहुत विनम्रता के साथ नमन किया और बोला, ''प्रभु, मैं आपको ही वोट दूंगा। अरे यही क्या कम है कि आप इस मामूली नागरिक के दरवाजे पर वोट मांगने आये। बस कभी-कभी हमारे गाँव इसी तरह आते रहियेगा। या फिर..........।''
कुम्भकरण ने डपटते हुये पूछा, ''या फिर क्या।''
देशराम बोला, ''कहीं आप अपनी कुम्भकरणीय प्रवृत्ति में न आ जाइयेगा।''
कुम्भकरण ने पूछा, ''क्या मतलब।''
देशराम ने सहमते हुये कहा, ''आप आज वोट के दिन और चुनाव जीतने के बाद आप सो जायेंगे फिर आप पांच वर्षों तक सोते ही रहेंगे। पहले आप वर्ष में एक दिन जगते थे और अपना पूरा आहार लेकर फिर सो जाया करते थे।''
कुम्भकरण बोला, ''पूर्ण आहार तो मैं अब भी लूंगा और फिर सुख की नींद सोता रहूंगा।''
देशराम ने धीमे स्वरों में कहा, ''प्रभु, आपने वायदा किया था कि मुझे उन नींद की गोलियों का नाम लिखवा देंगे। आज अभी मुझे वह नाम लिखवा दीजिये ताकि मैं सभी समस्याओं से मुक्त होकर सोता रहूं।''
कुम्भकरण ने हंसते हुये कहा, ''क्या करोगे उन गोलियों का नाम लिखकर। परिवार नियोजन वालों की टीम मेरे चुनाव क्षेत्र में जायेगी और आज इस मतदान के दिन के बाद कोई भी नागरिक या मतदाता जगता नहीं मिले, वे सब उन नागरिकों को नींद की गोलियां बांट रहे हैं। आप सब पांच वर्षों तक मेरी तरह सुख की नींद सोते रहियेगा। आप सब सभी टेंशन से मुक्त होकर पांच सालों तक सोते रहियेगा, सुख की नींद।''
देशराम कुम्भकरण के चरणों पर गिरता हुआ बोला, ''धन्य हो प्रभु, आप भी पांच वर्षों तक खर्राटा भरकर सुख की नींद में सोइयेगा। और हम नागरिक लोग भी पांच वर्षों तक सभी टेंशन और सभी समस्याओं से जैसे मुक्त होकर सोते रहेंगे। न आपको अपने वायदे याद रहेंगे और हम भी आप के सारे वायदों को भूल जायेंगे। आजकल पल्स पोलियो वाले भी दरवाजे-दरवाजे जाकर पोलियो ड्राप पिला रहे हैं, उसी तरह हम सभी सुख की नींद लेने वाले दो-दो बूंद का ड्राप्स पिलवा दीजियेगा। जय हो प्रभु। जैसे राजा सुखी वैसी ही प्रजा सुखारी रहेगी।''
टांडा (अम्बेडकर नगर) उ०प्र०
********************************

Comments

Popular posts from this blog

हिन्दी साक्षात्कार विधा : स्वरूप एवं संभावनाएँ

डॉ. हरेराम पाठक हिन्दी की आधुनिक गद्य विधाओं में ‘साक्षात्कार' विधा अभी भी शैशवावस्था में ही है। इसकी समकालीन गद्य विधाएँ-संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, आत्मकथा, अपनी लेखन आदि साहित्येतिहास में पर्याप्त महत्त्व प्राप्त कर चुकी हैं, परन्तु इतिहास लेखकों द्वारा साक्षात्कार विधा को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाना काफी आश्चर्यजनक है। आश्चर्यजनक इसलिए है कि साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा साक्षात्कार विधा ही एक ऐसी विधा है जिसके द्वारा किसी साहित्यकार के जीवन दर्शन एवं उसके दृष्टिकोण तथा उसकी अभिरुचियों की गहन एवं तथ्यमूलक जानकारी न्यूनातिन्यून समय में की जा सकती है। ऐसी सशक्त गद्य विधा का विकास उसकी गुणवत्ता के अनुपात में सही दर पर न हो सकना आश्चर्यजनक नहीं तो क्या है। परिवर्तन संसृति का नियम है। गद्य की अन्य विधाओं के विकसित होने का पर्याप्त अवसर मिला पर एक सीमा तक ही साक्षात्कार विधा के साथ ऐसा नहीं हुआ। आरंभ में उसे विकसित होने का अवसर नहीं मिला परंतु कालान्तर में उसके विकास की बहुआयामी संभावनाएँ दृष्टिगोचर होने लगीं। साहित्य की अन्य विधाएँ साहित्य के शिल्पगत दायरे में सिमट कर रह गयी...

प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से संबंधित साक्षात्कार की सैद्धान्तिकी में अंतर

विज्ञान भूषण अंग्रेजी शब्द ‘इन्टरव्यू' के शब्दार्थ के रूप में, साक्षात्कार शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसका सीधा आशय साक्षात्‌ कराना तथा साक्षात्‌ करना से होता है। इस तरह ये स्पष्ट है कि साक्षात्कार वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति विशेष को साक्षात्‌ करा दे। गहरे अर्थों में साक्षात्‌ कराने का मतलब किसी अभीष्ट व्यक्ति के अन्तस्‌ का अवलोकन करना होता है। किसी भी क्षेत्र विशेष में चर्चित या विशिष्ट उपलब्धि हासिल करने वाले व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी जिस विधि के द्वारा प्राप्त की जाती है उसे ही साक्षात्कार कहते हैं। मौलिक रूप से साक्षात्कार दो तरह के होते हैं -१. प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार २. माध्यमोपयोगी साक्षात्कार प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार का उद्देश्य और चरित्रमाध्यमोपयोगी साक्षात्कार से पूरी तरह भिन्न होता है। इसका आयोजन सरकारी या निजी प्रतिष्ठानों में नौकरी से पूर्व सेवायोजक के द्वारा उचित अभ्यर्थी के चयन हेतु किया जाता है; जबकि माध्यमोपयोगी साक्षात्कार, जनसंचार माध्यमों के द्वारा जनसामान्य तक पहुँचाये जाते हैं। जनमाध्यम की प्रकृति के आधार पर साक्षात्कार...

नयी सदी की पहचान श्रेष्ठ महिला कथाकार

ममता कालिया समकालीन रचना जगत में अपने मौलिक और प्रखर लेखन से हिन्दी साहित्य की शीर्ष पंक्ति में अपनी जगह बनाती स्थापित और सम्भावनाशील महिला-कहानीकारों की रचनाओं का यह संकलन आपके हाथों में सौंपते, मुझे प्रसन्नता और संतोष की अनुभूति हो रही है। आधुनिक कहानी अपने सौ साल के सफ़र में जहाँ तक पहुँची है, उसमें महिला लेखन का सार्थक योगदान रहा है। हिन्दी कहानी का आविर्भाव सन् 1900 से 1907 के बीच समझा जाता है। किशोरीलाल गोस्वामी की कहानी ‘इंदुमती’ 1900 में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई। यह हिन्दी की पहली कहानी मानी गई। 1901 में माधवराव सप्रे की ‘एक टोकरी भर मिट्टी’; 1902 भगवानदास की ‘प्लेग की चुड़ैल’ 1903 में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की ‘ग्यारह वर्ष का समय’ और 1907 में बंग महिला उर्फ राजेन्द्र बाला घोष की ‘दुलाईवाली’ बीसवीं शताब्दी की आरंभिक महत्वपूर्ण कहानियाँ थीं। मीरजापुर निवासी राजेन्द्रबाला घोष ‘बंग महिला’ के नाम से लगातार लेखन करती रहीं। उनकी कहानी ‘दुलाईवाली’ में यथार्थचित्रण व्यंग्य विनोद, पात्र के अनुरूप भाषा शैली और स्थानीय रंग का इतना जीवन्त तालमेल था कि यह कहानी उस समय की ज...