अशोक गुप्ता़
मैं कर्म्पाटमॅन्ट के अन्दर हूं
एक कोहनी खिड़की पर टिकाए
तुम बाहर प्लॅटफॉर्म पर खड़ी हो
मेरी पसन्द की नीली साड़ी पहने
लगता है मैं फिर बारह साल का हूं
र्बोडिंग स्कूल की ट्रेन में
डरा हुआ़ गले में दुखती गांठ लिए
एक भयानक दुथ स्वप्न की जकड़ में
तुम ट्रेन चलने का इंतज़ार कर रही हो
अपनी घड़ी दो बार देख चुकी हो
मैं नज़र बचाकर आंसू पोंछता हूं
वह तुम्हारा इंतज़ार कर रहा होगा
स्टेशन के बाहर
कि तुम कार में बैठो
और चैन की सांस ले कर कहो
वह चला गया आखिरकार
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