एम० षण्मुखन
हम, पति पत्नी
हर रोज
नीम रोशनी में
टहलने निकलते हैं।
साथ चलते,
दूरी पार करने
दूर होते हैं
एक दूसरे से
मन से।
गुम होते हैं
अपनी धुन
और ख्यालों में।
पर जब एकाएक
दोराहा या चौराहा
नजर आता है
सकपका जाते हैं हम।
निर्णय नहीं ले पाते
किस ओर मुड़ना है?
फिर एक दूसरे को
इस तरह ताकते हैं कि
पहली मुलाकात हो
या अजनबी हो
सालों से।
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हम, पति पत्नी
हर रोज
नीम रोशनी में
टहलने निकलते हैं।
साथ चलते,
दूरी पार करने
दूर होते हैं
एक दूसरे से
मन से।
गुम होते हैं
अपनी धुन
और ख्यालों में।
पर जब एकाएक
दोराहा या चौराहा
नजर आता है
सकपका जाते हैं हम।
निर्णय नहीं ले पाते
किस ओर मुड़ना है?
फिर एक दूसरे को
इस तरह ताकते हैं कि
पहली मुलाकात हो
या अजनबी हो
सालों से।
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