सीमा सचदेव
मुझे
जीना है
मुझे जीने दो
हे जननी
तुम तो समझो
मुझे दुनिया में आने तो दो
तुम
जननी हो माँ
केवल एक बार तो
मान लो मेरा भी कहना
नहीं
सह सकती मैं
और बार-बार अब
और नही मर सकती मैं
कोई
तो मुझे
दे दो घर में शरण
अपावन नही हैं मेरे चरण
क्यों
हर बार मुझे
तिरस्कार ही मिलता है?
मेरा आना सबको ही खलता है
हे जनक
मैं तुम्हारा ही तो बोया हुआ बीज हूँ
नहीं कोई अनोखी चीज़ हूँ
बोलो
मेरी क्या ग़लती है?
क्यों केवल मुझे ही
तुम्हारी ग़लती की सज़ा मिलती है?
कब तक
आख़िर कब तक
मैं यह सब सहूंगी?
दुनिया में आने को तड़पती रहूंगी?
क्या
माँ का गर्भ ही
है मेरा सदा का ठिकाना?
बस वहीं तक होगा मेरा आना जाना?
क्या
नही खोलूँगी मैं
आँख दुनिया में कभी?
क्यों
निर्दयी बन गये हैं माँ बाप भी?
कहाँ तक
चलेगी यह दुनिया
बिना बेटी के आने से?
बेटी बन कर
मैने क्या पाया जमाने से?
मैं
दिखाऊंगी नई राह
दूँगी नई सोच ज़माने को
मुझे
दुनिया में आने तो दो
मैं जीना चाहती हूँ
मुझे जीने तो दो
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मुझे
जीना है
मुझे जीने दो
हे जननी
तुम तो समझो
मुझे दुनिया में आने तो दो
तुम
जननी हो माँ
केवल एक बार तो
मान लो मेरा भी कहना
नहीं
सह सकती मैं
और बार-बार अब
और नही मर सकती मैं
कोई
तो मुझे
दे दो घर में शरण
अपावन नही हैं मेरे चरण
क्यों
हर बार मुझे
तिरस्कार ही मिलता है?
मेरा आना सबको ही खलता है
हे जनक
मैं तुम्हारा ही तो बोया हुआ बीज हूँ
नहीं कोई अनोखी चीज़ हूँ
बोलो
मेरी क्या ग़लती है?
क्यों केवल मुझे ही
तुम्हारी ग़लती की सज़ा मिलती है?
कब तक
आख़िर कब तक
मैं यह सब सहूंगी?
दुनिया में आने को तड़पती रहूंगी?
क्या
माँ का गर्भ ही
है मेरा सदा का ठिकाना?
बस वहीं तक होगा मेरा आना जाना?
क्या
नही खोलूँगी मैं
आँख दुनिया में कभी?
क्यों
निर्दयी बन गये हैं माँ बाप भी?
कहाँ तक
चलेगी यह दुनिया
बिना बेटी के आने से?
बेटी बन कर
मैने क्या पाया जमाने से?
मैं
दिखाऊंगी नई राह
दूँगी नई सोच ज़माने को
मुझे
दुनिया में आने तो दो
मैं जीना चाहती हूँ
मुझे जीने तो दो
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