- सिद्धेश्वर
क्या समय आ गया है यार! आजकल खुलेआम क्या नहीं हो रहा है?
बात क्या है मित्र? कौन-सी बात तुम्हें परेशान कर रखा है?
कल मैंने रेलवे प्लेटफार्म पर देखा कि एक टी.सी. ने एक यात्री को, बिना टिकट यात्रा करने के जुर्म में पकड़ा और फिर कुछ रुपये लेकर उसे छोड़ दिया।
आजकल तो हर विभाग में रिश्वत लेना-देना आम बात हो गई है। इसमें नयापन क्या है?
थोड़ा रुकने के बाद राघव ने पुनः कहा - जिस टी.सी. की बात तुम कर रहे हो, वह भी अपना काम करवाने के लिए, जहाँ कहीं भी जाता होगा, रिश्वत देने के लिए मजबूर हो जाता होगा। अब तुम ही बतलाओ यार! वह रिश्वत लेगा नहीं, तो रिश्वत देगा कहाँ से? ...
मजबूरी की बात अलग है, राघव! वह अपना दामन तो पाक रख सकता है या नहीं? ...
कैसे पाक रख सकता है, वह अपना दामन? गंदे पानी के जमाव से बचने के लिए, पहले गंदे नाली के बहाव को रोकना होगा, कृष्णा! देखते नहीं, नेता हो या अधिकारी, सभी अपनी-अपनी जेबें भर रहे हैं। खुद रिश्वत लेते हैं और अपने से नीचे वाले कर्मचारियों को रिश्वत लेने के जुर्म में दंडित करने की बात करते हैं।
कथनी-करनी में यही अंतर, हमारे समाज को नहीं बदल पा रही है। इसलिए कहते हैं कि स्वच्छ समाज के लिए, स्वच्छ प्रशासन बहुत जरूरी है, मित्र! ... एक के लिए स्वेच्छा से ली जा रही रिश्वत ... दूसरे के लिए रिश्वत लेने की मजबूरी बनती जा रही है, क्या तुम इस बात से इंकार कर सकते हो? ...''
वह निरुत्तर तो हो गया, मगर संतुष्ट नहीं हो सका!
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