सुरेश कुमार
समय के साथ नया सोचने लगा मैं भी
मुझे भी लगने लगा बेवफ़ा हुआ मैं भी
उदासियों से घिरा चाँद था बुलन्दी पर
तेरे ख़याल की छत पर उदास था मैं भी
उमड़-घुमड़ के वो बादल रहा वहीं का वहीं
झुलसती रेत का एक ख्वाब हो गया मैं भी
पता नहीं उसे किस की तलाश थी मुझमें
तमाम उम्र किसे ढूढता रहा मैं भी
हुनर पे आँच न आये जमीर भी न बिके
इसी उमीद पे बाजार को चला मैं भी
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समय के साथ नया सोचने लगा मैं भी
मुझे भी लगने लगा बेवफ़ा हुआ मैं भी
उदासियों से घिरा चाँद था बुलन्दी पर
तेरे ख़याल की छत पर उदास था मैं भी
उमड़-घुमड़ के वो बादल रहा वहीं का वहीं
झुलसती रेत का एक ख्वाब हो गया मैं भी
पता नहीं उसे किस की तलाश थी मुझमें
तमाम उम्र किसे ढूढता रहा मैं भी
हुनर पे आँच न आये जमीर भी न बिके
इसी उमीद पे बाजार को चला मैं भी
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Comments
मुझे भी लगने लगा बेवफ़ा हुआ मैं भी
bahut khuub!!!
badiya sher kaha hai!!!!