- डॉ० वी०के० अग्रवाल विकास दर विकास, मानव मूल्यों का हृास। गरीब और मेहनतकश की रोजी-रोटी और अमन चैन सभी का सभी, माफिया, भ्रष्टों और गुण्डों का ग्रास, विकास दर...। नाले में पड़ी चील-कउओं और कुत्तों की खायी नवजात शिशु की लाश... आप कहते हैं विकास, मैं कहता हूँ विनाश...। विनाश दर विनाश...। मानवता बदहवास...। विनाश दर विनाश...। ****************** अध्यक्ष-वाणिज्य विभाग पी०सी० बागला (पी०जी०) कालेज, हाथरस २०४१०१ (उ०प्र०) ********************
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