रचना गौड़ भारती
पेड़ के ओखल में
कठफोड़वे का घर था
वन पेड़ों से बेजोड़ था
बीहड़ जंगल, लकड़ियों का खजाना जैसे
जीव जन्तुओं से नहीं इसे
खुदग़र्ज आदमियों से डर था
वहीं हाथों में कुल्हाड़ी लिए
कुछ लकड़ी चोरों का भी दल था
कठफोड़वे और लोगों को जंगल से
बराबरी का आसरा था
पहली कुल्हाड़ी की ठेस
वृक्ष व कठफोड़वे को एक साथ हिला गई
तब कठफोड़वे की निगाह अपनी प्रहारी
चोंच के प्रहार पर गई
तने को आश्वासित कर वो
उन लोगो पे जा टूटा
अपने आसरे का सिला एक
कठफोड़वे ने ऐसे दिया
अब वृक्ष की हर शाखा भी झूम उठी
तेज पवन के झौंकों से जैसे
निकली ध्वनि, शुक्रिया कह उठी
ये पेड़ एक विद्यालय के प्रांगण में था
लोग जहां के अशिक्षित पर
वृक्ष शिक्षा की तहजीब में था
परोपकारिता और शिष्टता का पाठ
एक वृक्ष व कठफोड़वा पढ़ गया
अफ़सोस इतना ही रहा कि
इंसानियत का मानव इससे
क्यों निरक्षर रह गया ।
पेड़ के ओखल में
कठफोड़वे का घर था
वन पेड़ों से बेजोड़ था
बीहड़ जंगल, लकड़ियों का खजाना जैसे
जीव जन्तुओं से नहीं इसे
खुदग़र्ज आदमियों से डर था
वहीं हाथों में कुल्हाड़ी लिए
कुछ लकड़ी चोरों का भी दल था
कठफोड़वे और लोगों को जंगल से
बराबरी का आसरा था
पहली कुल्हाड़ी की ठेस
वृक्ष व कठफोड़वे को एक साथ हिला गई
तब कठफोड़वे की निगाह अपनी प्रहारी
चोंच के प्रहार पर गई
तने को आश्वासित कर वो
उन लोगो पे जा टूटा
अपने आसरे का सिला एक
कठफोड़वे ने ऐसे दिया
अब वृक्ष की हर शाखा भी झूम उठी
तेज पवन के झौंकों से जैसे
निकली ध्वनि, शुक्रिया कह उठी
ये पेड़ एक विद्यालय के प्रांगण में था
लोग जहां के अशिक्षित पर
वृक्ष शिक्षा की तहजीब में था
परोपकारिता और शिष्टता का पाठ
एक वृक्ष व कठफोड़वा पढ़ गया
अफ़सोस इतना ही रहा कि
इंसानियत का मानव इससे
क्यों निरक्षर रह गया ।
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