वीरेन्द्र जैन
सैनिक चुप्पी साधे बैठे
सीमा पर बन्दूकें ताने
अपने पर तौले बैठे हैं
अनगिन बाज लगाए निशाने
जिसके हाथ आ गया अवसर
वही झपट्ठा दे जाता है
शांति नहीं है सन्नाटा है
सुलग रहा है एक पलीता
धीरे-धीरे धीरे-धीरे
जाने कब वह क्षण आये
जो चट्ठानों की छाती चीरे
विष्फोटों के पहले क्षण तक
कोई नहीं समझ पाता है
शांति नहीं है सन्नाटा है
सैनिक चुप्पी साधे बैठे
सीमा पर बन्दूकें ताने
अपने पर तौले बैठे हैं
अनगिन बाज लगाए निशाने
जिसके हाथ आ गया अवसर
वही झपट्ठा दे जाता है
शांति नहीं है सन्नाटा है
सुलग रहा है एक पलीता
धीरे-धीरे धीरे-धीरे
जाने कब वह क्षण आये
जो चट्ठानों की छाती चीरे
विष्फोटों के पहले क्षण तक
कोई नहीं समझ पाता है
शांति नहीं है सन्नाटा है
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