राजश्री खत्री
कभी याद हमने किया,
कभी खुद याद आ गये,
हम उदासियों में खो गये ॥
न हॅसी है, न रूदन है,
बची केवल खामोशी है ।
हम धुन कोई न बजा सके ॥
जिन्दगी वही, पर मंजिल नही,
रास्ते वही, पर महफिल नहीं,
बहुत दूर तुम निकल गये ॥
बढ़ा हाथ, पकड़ना चाहा,
बढ़े पैर, मुड़कर न देखा तुमने
दामन बचा तुम चले गये॥
इक चॉद आसमान में खोया,
भीगा ऑचल, तार-तार हुआ,
पर ढाढस तुम न दिला सके॥
पास तुम न आ सके॥
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एफ-१८७०, राजाजी पुरम
लखनऊ
कभी याद हमने किया,
कभी खुद याद आ गये,
हम उदासियों में खो गये ॥
न हॅसी है, न रूदन है,
बची केवल खामोशी है ।
हम धुन कोई न बजा सके ॥
जिन्दगी वही, पर मंजिल नही,
रास्ते वही, पर महफिल नहीं,
बहुत दूर तुम निकल गये ॥
बढ़ा हाथ, पकड़ना चाहा,
बढ़े पैर, मुड़कर न देखा तुमने
दामन बचा तुम चले गये॥
इक चॉद आसमान में खोया,
भीगा ऑचल, तार-तार हुआ,
पर ढाढस तुम न दिला सके॥
पास तुम न आ सके॥
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एफ-१८७०, राजाजी पुरम
लखनऊ
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