Skip to main content

गुरू

अश्फाक कादरी
भैयाजी चुनाव जीत गये! सलि जयघोष से गूंज उठा । जीत के ढोल बनजे लगे। उनके समर्थक खुशी से नाचने लगे। गुलाल उछलने लगा। कार्यकर्ताओं ने चैन भरी सांस ली। उनके प्रमाण पत्र लेकर जब भैयाजी बाहर निकले तो जाने-अनजाने समर्थकों ने उन्हें फूल मालाओं से लाद दिया। कंधों पर उठाकर जीप पर बिठा दिया और जुलूस बस्ती की ओर चल पड़ा।

तभी भैयाजी की नजर दूर खड़े एक फटेहाल आदमी पर पड़ी, जो काफी समय से हाथ हिलाकर उनका अभिवादन कर रहा था। उन्हें कुछ याद आने लगा इस शहर में अपने गांव से खाली हाथ आये भैयाजी का खुले आसमान के नीचे बसेरा था।

बेरोजगारी ने उन्हें जुर्म की दुनिया में धकेल दिया था। नई-नई बसी बस्ती में भैयाजी ने जमीनों पर कब्जा, जुआ, सट्टे का कारोबार शुरू कर दिया था जिससे उनका ठोर ठिकाना बनने लगा था, मगर पुलिस के रिकार्ड में वे जल्द ही हिस्ट्रीशीटर बन गये। उनके घर पुलिस के छापे पड़ने लगे। एक बार जब पुलिस का छापा पड़ा तो उनकी हाथापाई पुलिस से हो गयी। इसी लुका छिपी में भैया की मुलाकात एक मस्त मौला आदमी से हुई, जिसने उन्हें सबक दिया कि अगर तुम्हें इज्जत की जिन्दगी गुजारनी है तो नेता बन जा, नहीं तो कुत्ते की मौत मारा जायेगा ।

वह दिन और आज का दिन भैयाजी ने नेतागिरी की राह पकड़ी तो विपक्षी पार्टी के कार्यकर्ता बन गये। विपक्षी पाटी के नेताजी का इतिहास भी भैयाजी जैसा ही था जो वे आज नेतागिरी की आड़ में गुण्डागर्दी कर रहे थे। उनके इशारे में भैयाजी अपनी बस्ती में काम करने लगे, अब पुलिस उन पर हाथ डालने से कतराने लगी। नेताजी के साथ रात दिन काम करते हुये भैया ने अपनी स्थिति और मजबूत कर ली इस बार जब चुनाव आये तो उन्हें इस क्षेत्र का टिकट मिला और वे साम दाम दंड के बल पर यह चुनाव जीत गये। आज यह मुकाम उसी मस्तमौला आदमी की सीख पर मिला था। जो सामने फटेहाल हालत में खड़ा था, जो उनका गुरू था।

भैयाजी ने जीप रूकवाई और उस फटेहाल आदमी के पांव छू लिये। समर्थक कुछ समझ नहीं सके। भैयाजी का यह पांव छूना गरीबों के प्रति उनका सम्मान के रूप में लिया। वे जय जय कार कर उठे और जुलूस आगे बढ़ गया।

Comments

Popular posts from this blog

लोकतन्त्र के आयाम

कृष्ण कुमार यादव देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद में कुम्भ मेले में घूम रहे थे। उनके चारों तरफ लोग जय-जयकारे लगाते चल रहे थे। गाँधी जी के राजनैतिक उत्तराधिकारी एवं विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के मुखिया को देखने हेतु भीड़ उमड़ पड़ी थी। अचानक एक बूढ़ी औरत भीड़ को तेजी से चीरती हुयी नेहरू के समक्ष आ खड़ी हुयी-''नेहरू! तू कहता है देश आजाद हो गया है, क्योंकि तू बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिले में चलने लगा है। पर मैं कैसे मानूं कि देश आजाद हो गया है? मेरा बेटा अंग्रेजों के समय में भी बेरोजगार था और आज भी है, फिर आजादी का फायदा क्या? मैं कैसे मानूं कि आजादी के बाद हमारा शासन स्थापित हो गया हैं। नेहरू अपने चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुराये और बोले-'' माता! आज तुम अपने देश के मुखिया को बीच रास्ते में रोककर और 'तू कहकर बुला रही हो, क्या यह इस बात का परिचायक नहीं है कि देश आजाद हो गया है एवं जनता का शासन स्थापित हो गया है। इतना कहकर नेहरू जी अपनी गाड़ी में बैठे और लोकतंत्र के पहरूओं का काफिला उस बूढ़ी औरत के शरीर पर धूल उड़ाता चला गया। लोकतंत...

प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से संबंधित साक्षात्कार की सैद्धान्तिकी में अंतर

विज्ञान भूषण अंग्रेजी शब्द ‘इन्टरव्यू' के शब्दार्थ के रूप में, साक्षात्कार शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसका सीधा आशय साक्षात्‌ कराना तथा साक्षात्‌ करना से होता है। इस तरह ये स्पष्ट है कि साक्षात्कार वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति विशेष को साक्षात्‌ करा दे। गहरे अर्थों में साक्षात्‌ कराने का मतलब किसी अभीष्ट व्यक्ति के अन्तस्‌ का अवलोकन करना होता है। किसी भी क्षेत्र विशेष में चर्चित या विशिष्ट उपलब्धि हासिल करने वाले व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी जिस विधि के द्वारा प्राप्त की जाती है उसे ही साक्षात्कार कहते हैं। मौलिक रूप से साक्षात्कार दो तरह के होते हैं -१. प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार २. माध्यमोपयोगी साक्षात्कार प्रतियोगितात्मक साक्षात्कार का उद्देश्य और चरित्रमाध्यमोपयोगी साक्षात्कार से पूरी तरह भिन्न होता है। इसका आयोजन सरकारी या निजी प्रतिष्ठानों में नौकरी से पूर्व सेवायोजक के द्वारा उचित अभ्यर्थी के चयन हेतु किया जाता है; जबकि माध्यमोपयोगी साक्षात्कार, जनसंचार माध्यमों के द्वारा जनसामान्य तक पहुँचाये जाते हैं। जनमाध्यम की प्रकृति के आधार पर साक्षात्कार...

हिन्दी साक्षात्कार विधा : स्वरूप एवं संभावनाएँ

डॉ. हरेराम पाठक हिन्दी की आधुनिक गद्य विधाओं में ‘साक्षात्कार' विधा अभी भी शैशवावस्था में ही है। इसकी समकालीन गद्य विधाएँ-संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, आत्मकथा, अपनी लेखन आदि साहित्येतिहास में पर्याप्त महत्त्व प्राप्त कर चुकी हैं, परन्तु इतिहास लेखकों द्वारा साक्षात्कार विधा को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाना काफी आश्चर्यजनक है। आश्चर्यजनक इसलिए है कि साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा साक्षात्कार विधा ही एक ऐसी विधा है जिसके द्वारा किसी साहित्यकार के जीवन दर्शन एवं उसके दृष्टिकोण तथा उसकी अभिरुचियों की गहन एवं तथ्यमूलक जानकारी न्यूनातिन्यून समय में की जा सकती है। ऐसी सशक्त गद्य विधा का विकास उसकी गुणवत्ता के अनुपात में सही दर पर न हो सकना आश्चर्यजनक नहीं तो क्या है। परिवर्तन संसृति का नियम है। गद्य की अन्य विधाओं के विकसित होने का पर्याप्त अवसर मिला पर एक सीमा तक ही साक्षात्कार विधा के साथ ऐसा नहीं हुआ। आरंभ में उसे विकसित होने का अवसर नहीं मिला परंतु कालान्तर में उसके विकास की बहुआयामी संभावनाएँ दृष्टिगोचर होने लगीं। साहित्य की अन्य विधाएँ साहित्य के शिल्पगत दायरे में सिमट कर रह गयी...