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शैशव से श्मशान तक

सी.आर.राजश्री
शैशव का पल है काफी प्यारा,
हर लम्हा है आकर्षक और लुभावना,
अपने ढ़ग से होता अलग एवं निराला,
न कभी लौट आता फिर दुबारा।
माँ के आँचल की छाँव में,
आँखें मूँदें दिन भर सोए रहना,
न काम की चिंता न रोटी की फ़िक्र,
न मन की बातों का होता कभी जिक्र।
शैशव गुजर फिर आता बचपन,
खेलना, कूदना, पढ़ना, लिखना,
हर पल खुशियों को समेटे रहता मन,
परिवार के लाड़-प्यार में बीत जाता बचपन।
बचपन गुजर जब आता यौवन,
कल्पनात्मक तरंग में उड़ता है मन,
अच्छे-बुरे का करना है सही चयन,
मेहनत लगन से ही सँवरता जीवन।
बच्चों की किलकारियों में,
प्यारे जीवन साथी के संग हर कदम में,
भविष्य के सपने संजोएँ नयनों में,
कट जाता पल-पल परिवार के ही देख-रेख में।
जीवन के ढ़लती उम्र में भी,
सफ़र के आखिरी पड़ाव में भी,
जीने की तमन्ना प्रचुर रहती है,
मरने की जरा भी ख्वाईश न रहती है।
कभी बीमारी के शिकंजे में फँसा तन,
कभी प्यार-स्नेह से वंछित बेरौनक जीवन,
लगता है बहुत वीरान, घिर जाता अकेलापन,
खमोशी तोड़ कर मन चाहता अपनापन।
मृत्यु जब द्वार आती है,
जीवन सहम कर रह जाती है,
खट्ठी-मीठी यादों को संग ले जाती है,
सगे-संबंधियों को तड़पा जाती है।
शैशव से श्मशान तक का सफर,
मुश्किल नहीं है, आसान है ये डगर,
समझ लो यारों! जीवन एक ही बार जीना है,
कुछ नया करके, नाम अपना लिखना है,
मानवता को और सबल बनाना है,
सत्य और प्रेम के रास्ते पर ही चलना है,
वांछित मंजिल पाकर दुनिया को मुट्ठी में लेना है,
तकदीर का रोना छोड़ कर खुद ही अपना तकदीर लिखना है।
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