राजश्री ख़त्री
वर्षा का हुआ आगमन,
हर्षित हुआ वैरागी मन,
कुसुमों ने मदिरा हलवाई,
सुरमई हो गई पवन॥
रिमझिम बरखा बरसी,
यादों से ऑखें भर आई
बिन बदरा, बरसा सावन,
खग वृन्दों ने भी छेड़ा वादन॥
अश्रु ने प्यास बुझा डाली,
प्रेम की रीते निभा डाली,
सुधि की इक आस बची,
किन्तु आई न बेला पावन॥
वर्षा का हुआ आगमन,
हर्षित हुआ वैरागी मन,
कुसुमों ने मदिरा हलवाई,
सुरमई हो गई पवन॥
रिमझिम बरखा बरसी,
यादों से ऑखें भर आई
बिन बदरा, बरसा सावन,
खग वृन्दों ने भी छेड़ा वादन॥
अश्रु ने प्यास बुझा डाली,
प्रेम की रीते निभा डाली,
सुधि की इक आस बची,
किन्तु आई न बेला पावन॥
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