कवि कुलवंत सिंह
चुभा काँटा चमन का फूल माली ने जला डाला
बना हैवान पौधा खींच जड़ से ही सुखा डाला
चला मैं राह सच की हर बशर मेरा बना दुश्मन
जो रहता था सदा दिल में जहर उसने पिला
डाला बड़ी हसरत से उल्फ़त का दिया हमने जलाया था
उसे काफ़िर हवा ने एक झटके में बुझा डाला
सताया डर कि दौलत बँट न जाए पैसे वालों को
थे खुश हम खा के रूखी छीन उसको भी सता डाला
उजाड़े घर हैं कितने उसने पा ताकत को शैतां से
बसाने घर कुँवर का अपनी बेटी को गला डाला
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चुभा काँटा चमन का फूल माली ने जला डाला
बना हैवान पौधा खींच जड़ से ही सुखा डाला
चला मैं राह सच की हर बशर मेरा बना दुश्मन
जो रहता था सदा दिल में जहर उसने पिला
डाला बड़ी हसरत से उल्फ़त का दिया हमने जलाया था
उसे काफ़िर हवा ने एक झटके में बुझा डाला
सताया डर कि दौलत बँट न जाए पैसे वालों को
थे खुश हम खा के रूखी छीन उसको भी सता डाला
उजाड़े घर हैं कितने उसने पा ताकत को शैतां से
बसाने घर कुँवर का अपनी बेटी को गला डाला
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