वीरेन्द्र जैन
नाच उठे चूहे पेटों में
भूख गीत गाये
ऐसे सांस्कृतिक आयोजन
के अवसर आये
वस्त्रों के अभाव में
नारी अंग प्रदशर्न हो
हर निर्धन बस्ती आयोजित
ऐसे फैशनो
वीतराग हो गये आदमी
बिन दीक्षा पाये
ऐसे सांस्कृतिक आयोजन
के अवसर आये
हैं धृतराष्ट्र शिखंडी जैसे
नायक नाटक के
दशर्क की किस्मत में लिक्खे
हैं केवल धक्के
उठती गिरती रही यवनिका
दाएं से बाएं
ऐसे सांस्कृतिक आयोजन
के अवसर आये
नाच उठे चूहे पेटों में
भूख गीत गाये
ऐसे सांस्कृतिक आयोजन
के अवसर आये
वस्त्रों के अभाव में
नारी अंग प्रदशर्न हो
हर निर्धन बस्ती आयोजित
ऐसे फैशनो
वीतराग हो गये आदमी
बिन दीक्षा पाये
ऐसे सांस्कृतिक आयोजन
के अवसर आये
हैं धृतराष्ट्र शिखंडी जैसे
नायक नाटक के
दशर्क की किस्मत में लिक्खे
हैं केवल धक्के
उठती गिरती रही यवनिका
दाएं से बाएं
ऐसे सांस्कृतिक आयोजन
के अवसर आये
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