कवि कुलवंत सिंह इस काव्य रचना में मात्रिक छंदों के साथ लय बद्धता का ध्यान तो रखा ही गया है साथ ही दो नये प्रयोग भी किए गये हैं । एक - पूरी काव्य रचना सिर्फ दो अक्षरीय शब्दों के साथ की गई है । दूसरा - किसी भी शब्द की पुनरावृत्ति नही है । नायक (नायिका से) : हम तुम हर पल संग धरा पर, सुख दुख तम गम धूप छांव उर । तन मन प्रण कर प्रीत गीत ऋतु छल, काल, जाल, विष पान हेतु । कोटि भाव नित, होंठ नव गान, झूम यार मद, लग अंग प्रान । तरु लता बंध, भेद चिर मिटा, काम, रस, प्रेम, बाण कुछ चला । भय भूल झूल, राग रति निभा, रीत मधु मास, रास वह दिखा । छवि कांति देह, मुख जरा उठा, ताल शत धार, आग वन लगा । * * * * * नेपथ्य से : नीर रंग भर, सात सुर सजा, झरें फूल नभ, गान युग बजा । जप-तप-व्रत, दीप रोली हार, जगा जग रैन, नत ईश द्वार । शील सेवा रत, हरि हाथ सर, प्यार रब संग, देव देवें वर । शूल, शैल, शर, बनें फूल खर ढ़ाल खुद खुदा, खुशी अंक भर । तज राज यश, मिटा पाप ताप, माया भ्रम क्षुधा, तोड़ डर शाप । ठान सत्य मूल, रोम रग धार बल बुद्धि धूल, रूह नर सार । चूर दिन रात, भज राम नाम, अश्रु आह मरु, शांति शि...