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GAZAL

बशीर बद्र


लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में

तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में

और जाम टूटेंगे इस शराबख़ाने में
मौसमों के आने में मौसमों के जाने में

हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है दिल को दिल बनाने में

फ़ाख़्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती
कौन साँप रखता है उसके आशियाने में

दूसरी कोई लड़की ज़िन्दगी में आयेगी
कितनी देर लगती है उसको भूल जाने में

Comments

"अर्श" said…
बशीर बद्र साहब की ये ग़ज़ल बहोत ही मशहूर है .बहोत ही उम्दा ग़ज़ल पढ़ने को मिला ..ढेरो बधाई आपको भी,....

अर्श

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