बशीर बद्र
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में
और जाम टूटेंगे इस शराबख़ाने में
मौसमों के आने में मौसमों के जाने में
हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है दिल को दिल बनाने में
फ़ाख़्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती
कौन साँप रखता है उसके आशियाने में
दूसरी कोई लड़की ज़िन्दगी में आयेगी
कितनी देर लगती है उसको भूल जाने में
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में
और जाम टूटेंगे इस शराबख़ाने में
मौसमों के आने में मौसमों के जाने में
हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है दिल को दिल बनाने में
फ़ाख़्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती
कौन साँप रखता है उसके आशियाने में
दूसरी कोई लड़की ज़िन्दगी में आयेगी
कितनी देर लगती है उसको भूल जाने में
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अर्श