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ग़ज़ल

बशीर बद्र



ख़ानदानी रिश्तों में अक़्सर रक़ाबत है बहुत
घर से निकलो तो ये दुनिया खूबसूरत है बहुत

अपने कालेज में बहुत मग़रूर जो मशहूर है
दिल मिरा कहता है उस लड़की में चाहता है बहुत

उनके चेहरे चाँद-तारों की तरह रोशन हुए
जिन ग़रीबों के यहाँ हुस्न-ए-क़िफ़ायत1 है बहुत

हमसे हो नहीं सकती दुनिया की दुनियादारियाँ
इश्क़ की दीवार के साये में राहत है बहुत

धूप की चादर मिरे सूरज से कहना भेज दे
गुर्वतों का दौर है जाड़ों की शिद्दत2 है बहुत

उन अँधेरों में जहाँ सहमी हुई थी ये ज़मी
रात से तनहा लड़ा, जुगनू में हिम्मत है बहुत

————————————
1. पर्याप्त सौंदर्य 2. कष्ट

Comments

वर्षा said…
बहुत सुंदर ग़ज़ल। बशीर बद्र की कुछ ग़ज़लें पढ़ी हैं, किताब का नाम शायद साये में धूप है। जुगनू की हिम्मत आम लोगों को भी हिम्मत देती है।
"अर्श" said…
बहोत ही पसिंदादा ग़ज़ल है ये .. शायद टाइपिंग में कहीं त्रुटी होगी अन्यथा न ले मगर दुसरे शे'र के मिश्रा सनी में चाहत है बहोत होनी चाहिए कृपया इसे ठीक कर लें ... आपको ढेरो बधाई इसके लिए '''....

अर्श
Anonymous said…
bashir badra kaa kamaal he..

aasaam shabdo me gahari baat kah jaate he..

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