महताब हैदर नक़वी
सुबह की पहली किरन पर रात ने हमला किया
और मैं बैठा हुआ सारा समां देखा किया
ऐ हवा ! दुनिया में बस तू है बुलन्द इक़बाल1 है
तूने सारे शहर पे आसेब2 का साया किया
इक सदा ऐसी कि सारा शहर सन्नाटे में गुम
एक चिनगारी ने सारे शहर को ठंण्डा किया
कोई आँशू आँख की दहलीज़ पर रुक-सा गया
कोई मंज़र अपने ऊपर देर तक रोया किया
वस्ल3 की शब को दयार-ए-हिज्र4 तक सब छोड़ आए
काम अपने रतजगों ने ये बहुत अच्छा किया
सबको इस मंजर में अपनी बेहिसी पर फ़ख़ है
किसने तेरा सामना पागल हवा कितना किया
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1. तेजस्वी 2. प्रेत-बाधा 3. मिलन 4. विरह-स्थल
सुबह की पहली किरन पर रात ने हमला किया
और मैं बैठा हुआ सारा समां देखा किया
ऐ हवा ! दुनिया में बस तू है बुलन्द इक़बाल1 है
तूने सारे शहर पे आसेब2 का साया किया
इक सदा ऐसी कि सारा शहर सन्नाटे में गुम
एक चिनगारी ने सारे शहर को ठंण्डा किया
कोई आँशू आँख की दहलीज़ पर रुक-सा गया
कोई मंज़र अपने ऊपर देर तक रोया किया
वस्ल3 की शब को दयार-ए-हिज्र4 तक सब छोड़ आए
काम अपने रतजगों ने ये बहुत अच्छा किया
सबको इस मंजर में अपनी बेहिसी पर फ़ख़ है
किसने तेरा सामना पागल हवा कितना किया
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1. तेजस्वी 2. प्रेत-बाधा 3. मिलन 4. विरह-स्थल
Comments
एक चिनगारी ने सारे शहर को ठंण्डा किया
बेहतरीन ग़ज़ल....वाह.
नीरज