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कविता


RAJAN DEEP




कोई दर तो खटखटाओ बहरी इस सरकार का,
कब तलक चलता रहेगा
सिलसिला तलवार का!
मौज तो ले जाएगी पल में बहाके नाव को,
न मिला माझी को ग़र कोई पता
पतवार का!
डाल के डेरा रहेंगे जो शिकारी बाग़ में,
बागबाँ होगा हशर क्या उस हसीं गुलज़ार का?
यूँ नहीं रोना ओ बुलबुल बनना तुमको बाज है,
सबको लेना अब है बदला मार से इस मार का.
कब तलक बिलखेंगे बच्चे और उजडेंगे सुहाग
कब तलक होगा फ़ना हर मुखिया परिवार का?
जिस तरफ़ दहके हैं शोले और उठे यह धुआं
अब दबा दो वो धुआं उठता जो सरहद पार का.
हो गयी है इंतहा जुलम-ओ-सितम-ओ-कहर की,
वक़त आया जन्म लो अब दीप कलिक अवतार का.

Comments

Manuj Mehta said…
सुंदर और गहन भाव. सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिए आभार.
www.merakamra.blogspot.com

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